बड़े बाबा मंदिर के लिए जाने जाना वाला शहर, दमोह

बड़े बाबा मंदिर के लिए जाने जाना वाला शहर , दमोह
बड़े बाबा मंदिर के लिए जाने जाना वाला शहर , दमोह

बड़े बाबा मंदिर के लिए जाने जाना वाला शहर , दमोह

दमोह भारत के मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) का एक महत्वपूर्ण शहर है। यह शहर जैन तीर्थ स्थल कुंडलपुर(Kundalpur) में बड़े बाबा मंदिर के लिए जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) में पांचवां सबसे बड़ा शहरी समूह है। यह सिंगरामपुर झरना(Singrampur Waterfall), सिंगरगढ़ किला(Singrampur Fort), नोहलेश्वर मंदिर(Nohaleshwar Temple), नोहटा(Nohta) आदि के लिए भी जाना जाता है। इस शहर का नाम हिन्दू पौराणिक कथाओं के राजा नल(king Nal) की पत्नी दमयंती (damayanti) के नाम पर रखा गया है। अकबर(Akbar) के साम्राज्य में यह मालवा सूबे का हिस्सा था।

दमोह का महत्व 14वीं शताब्दी से रहा है जब खिलजी ने क्षेत्रीय प्रशासनिक केंद्र को चंदेरी के बटियागढ़ से दामोवा कर दिया। दमोह मराठा गवर्नर की सीट हुआ करती थी फिर अंग्रेजी शासन के दौरान यह मध्य प्रांत का भाग बन गया। दमोह में बहुत सारे बाजार भी लगते है जैसे पशु बाजार, वार्षिक मेला, जटा शंकर मेला आदि।

इस जगह की अधिकांश भूमि उपजाऊ है। जिले की सुनार और बैरमा नदी मुख्य नदिया हैं। 1861 में इस जिलों को पूर्ण जिला घोषित किया गया था। 1867 में दमोह को म्यूनिसिपैलिटी (municipality) बना दिया गया और फिर यहाँ का विकास शुरू हो गया।

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"भारतीय इतिहास" में एक महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाला झाँसी, रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस के लिए पुरे देश में मशहूर है।

इतिहास

प्राचीन और परिपूर्ण इतिहास रखने वाला दमोह 15वीं शताब्दी में पाटलिपुत्र(Pataliputr) के भव्य और शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य का हिस्सा था। 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दमोह जिले का कुछ हिस्सा चेदी साम्राज्य के अधीन आता था। जिस पर कलचुरी राजाओं का शासन था और उनकी राजधानी त्रिपुरी(Tripuri) थी।

10वीं शताब्दी में कलचुरी शासकों के शासन को प्रदर्शित करने का जीता जगता उदाहरण नोहटा का नोहलेश्वर मंदिर(Nohaleshwar Temple) है। ऐतिहासिक सबूतों से पता चलता है कि दमोह जिले के कुछ हिस्सों पर चंदेलो का शासन था जिसे जेजाक मुक्ति कहा जाता है।

सिंग्रामपुर(Singrampur) में रानी दुर्गावती(Rani Durgavati) मुग़ल साम्राज्य के प्रतिनिधि सेनापति आसफ खान(asaf khan) की सेना से बड़ी हिम्मत और साहस के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो हुई। अपने साम्राज्य की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए उनके संकल्प, समर्पण और साहस का ज़िक्र इतिहास में मौजूद है।

1888 में पेशवा की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने मराठों को उखाड़ फेक दिया। फिर 1947 में आज़ादी के बाद दमोह अखंड भारत का हिस्सा बन गया। 2017 के रेल स्वच्छता सर्वे में दमोह का भारत में 9व स्थान था और मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) में तीसरा स्थान था।

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घूमने की जगह

ऐतिहासिक रूप से परिपूर्ण दमोह में घूमने की बहुत सारी जगह है। यहाँ इतिहास को दर्शाती इमारतें और महल मौजूद है। यहाँ इतिहास के साथ-साथ धार्मिक स्थान भी देखने को मिलते है। यहाँ बहुत से लोकप्रिय मंदिर है जिनकी दमोह और आस-पास क जगहों पर बहुत मान्यता है।

1) प्राचीन जटा शंकर मंदिर:- दमोह का दर्शनीय स्थल जटा शंकर मंदिर(Jata Shankar Temple) दमोह-जबलपुर रोड(Damoh-Jabalpur Road) पर स्थित है। यह दमोह में महत्वपूर्ण मान्यता रखने वाले मंदिरों में से एक है। यह मंदिर शिव शंकर जी को समर्पित है जो चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति भी विराजमान है।

इस मंदिर में भगवान गणेश की बहुत ऊंची प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में भव्य प्रवेश द्वार हैं। मंदिर के द्वार सुबह 9 बजे खुल जाते है। यहाँ सावन के सोमवार और महाशिवरात्रि में बहुत भीड़ होती है।

2) राजनगर झील:- राजनगर झील(RajSagar Lake) या राजनगर बांध(RajSagar Dam) दमोह की लोकप्रिय जगह है। यहाँ आने का सबसे अच्छा समय बरसात का है जब बारिश के कारन झील झरने का रूप ले लेती है तो इसकी खूबसूरती देखने लायक होती है। झील के पास एक मंदिर भी है जो माँ दुर्गा को समर्पित है।

जहाँ बरसात में झील झरना बन जाती है तो वही गर्मी के वक्त यहाँ एक फव्वारा देखने को मिलता है। यह जगह दमोह बाईपास रोड(Damoh Bypass Road) के पास है जो देखने में बहुत ही ज़्यादा सुंदर है। दमोह में पिने का पानी भी इस झील से ही सप्लाई किया जाता है।

3) सिंगौरागढ़ का किला:- सिंगौरागढ़ का किला(Singrampur Fort) दमोह के रानी दुर्गावती अभ्यारण के अंदर स्थित है। यह किला ऊँची पहाड़ी पर है इस लिए वहाँ तक जाने के लिए पैदल सफर करना होता है। यह किला अब खंडर बन चूका है।

कहा जाता है रानी दुर्गावती अपने विवाह के बाद यहाँ रहा करती थीं और नीचे स्थित तालाब में स्नान कर कुल देवी को जल चढ़ाया करतीं थीं। किले के चारों तरफ जंगल का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है और इस किले में बहुत सारी प्राचीन प्रतिमाएं देखने को मिलती है।

4) गिरी दर्शन वाच टावर:- गिरी दर्शन वाच टावर(Giri Darshan Watch Tower) रानी दुर्गावती(Rani Durgavati) अभ्यारण्य के अंदर स्थित है। यह टावर जबलपुर-दमोह हाईवे रोड पर स्थित है इस लिए यहाँ दो पहिया या चार पहिया वाहन से आया जा सकता है।

यह जगह हाईवे रोड से करीब 1 किमी की दूरी पर है। यहाँ पर पहाड़, झिल और जंगल का दृश्य मंत्र मुक्त कर देता है जिसे देखने लोग बार-बार आते है। यह जगह बरसात के समय पूरी तरह स्वर्ग के जैसी लगती है। इस टावर के चारों तरफ हरियाली रहती है जो यहाँ की खूबसूरती को और बढाती है।

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कैसे जाए और कहा रुके??

दमोह सड़क के रास्ते देश के बड़े-बड़े शहरों से अच्छे से जुड़ा हुआ है। इस लिए टैक्सी, निजी साधन या बस का सफर वहाँ तक जाने के लिए किया जा सकता है।

अगर ट्रेन से जाने की बात करें तो ट्रेन से भी दमोह का जुड़ाव अच्छा है। इस लिए ट्रेन से वहाँ जाने में कोई परेशानी नहीं होती।

दमोह में लो-बजट से हाई-बजट, दोनों प्रकार के होटल मिल जायेंगे जिसे अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार बुक किया जा सकता है।

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