द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त अँग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान के साथ से "आज़ाद हिन्द फौज" का गठन किया और देश को "जय हिन्द" का नारा भी दिया

द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त अँग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान के साथ से "आज़ाद हिन्द फौज" का गठन किया और देश को "जय हिन्द" का नारा भी दिया
द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त अँग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान के साथ से "आज़ाद हिन्द फौज" का गठन किया और देश को "जय हिन्द" का नारा भी दिया

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा", का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस(Subhash Chandra Bose) जिन्हें सब नेता जी के नाम से भी जाते है भारत की आज़ादी के मशहूर और सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त अँग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान (Japan) के साथ से "आज़ाद हिन्द फौज" का गठन किया और देश को "जय हिन्द(Jai Hind)" का नारा भी दिया।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी जापान(Japan) और जर्मनी(Germany) से सहायता लेने का प्रयास कर रहे थे तब ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था।

05 जुलाई, 1943 को सिंगापूर(Singapore) के टाउन हॉल(Town hall) के सामने नेता जी ने "सुप्रीम कमाण्डर(supreme commander)" के रूप में सेना को "दिल्ली चलो(Delhi Chalo) " का नारा दिया और 21 अक्टूबर, 1943 को नेता जी ने आज़ाद हिंद फौज(Azad Hind Fauj) के सेनापति के तौर पर स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई जिसमें कई विदेशी सरकारों की मान्यता शामिल थी।

जर्मन(German), जापान(Japan), फिलीपींस(Philippines), कोरिया(Korea), चीन (China), इटली(Italy), मान्चुको(Manchu) और आयरलैंड(Ireland) मिला कर 11 देश की मान्यता शामिल थी। जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप(Andaman and Nicobar Islands) को इस अस्थायी सरकार के नाम कर दिया फिर नेता जी ने उन द्वीपों के नाम बदल दिए।

1944 को नेता जी की फौज ने अंग्रेज़ों पर दोबारा हमला किया और भारत के कुछ हिस्सों को आज़ाद भी कर दिया। 4 अप्रैल, 1944 से 22 जून,1944 तक चला कोहिमा का युद्ध एक भयानक युद्ध था जिसमें जापानी सेना(japanese army) को पीछे हटना पड़ा।

नेता जी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ एक तरफ जापान(Japan) में 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके घरवाले मानते है कि नेता जी की मृत्यु 1945 में नहीं बल्कि बाद में हुई थी। उनका मानना है कि 1945 के बाद उन्हें रूस में नज़दबन्द(under house arrest) रखा गया।

जीवन परिचय

23 जनवरी, 1897 को ओडिसा(Odisha) के कटक शहर(cuttack city) में हिन्दू कायस्त परिवार में नेता जी का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस(Janakinath Bose) और माँ प्रभावती(prabhavati) थीं।

जानकीनाथ बोस(Janakinath Bose) कटक शहर(cuttack city) के मशहूर वकील थे। पहले वह सरकारी वकील थे उसके बाद उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी। वह बंगाल विधानसभा के सदस्य रहे और अंग्रेज़ों ने उन्हें रायबहादुर(Raibahadur) का ख़िताब भी दिया।

प्रभावती और जानकीनाथ बोस(Janakinath Bose) की 14 संतान थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। नेता जी उनकी 9वी सन्तान थे। 1909 में उन्होंने कटक के प्रोटेस्टेण्ड स्कूल (protestant school) से पास हो कर रेवनशा कॉलेजियेट स्कूल(Revansha Collegiate School) में दाखिला ले लिया। 15 साल की उम्र में नेता जी विवेकानन्द(Vivekananda) के साहित्य पढ़ने और अध्ययन करने लगे।

1915 में उनकी तबियत खरब होने के कारन इंटर की परीक्षा उन्होंने सेकंड डिवीज़न (second division) से पास की और 1916 में बी.ए.(B.A.) करते समय छात्रों और शिक्षकों के बीच हुए झगड़े में छात्रों का नेतृत्व करने पर नेता जी को एक साल के लिये निकाल दिया गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त अँग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान के साथ से "आज़ाद हिन्द फौज" का गठन किया और देश को "जय हिन्द" का नारा भी दिया
"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा", का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस जिन्हें सब नेता जी के नाम से भी जाते है भारत की आज़ादी के मशहूर और सबसे बड़े नेता

बंगाल रेजीमेण्ट(Bengal Regiment) में 49वी भर्ती के लिए उन्होंने परीक्षा दी लेकिन आँखों के कमज़ोर होने की वजह से उनका दाखिला नहीं हुआ। पिता की इच्छा थी कि सुभाष आई.सी.एस(ICS) बनें लेकिन नेता जी का दिल तो सेना में जाने की ही गवाही देता इसी कारण से उन्होंने अपने पिता से परीक्षा देने ना देने के फैसले के लिए 24 घंटे मांगे और परीक्षा देने का निर्णय लिया।

15 सितम्बर, 1919 को नेता जी इंगलैंड(England) चले गए और वहाँ उन्होंने परीक्षा की तैयारी के लिये लंदन(London) के किसी स्कूल में दाखिला ना मिलने पर किसी तरह किट्स विलियम हॉल(kitts william hall) में मानसिक और नैतिक विज्ञानं की ट्राइपास की परीक्षा का अध्ययन करने के लिए उन्होंने दाखिला ले लिया। 1920 में उन्होंने वरीयता सूची में चौथा स्थान लेकर परीक्षा पास कर ली।

स्वतंत्रता संग्राम और नेता जी

कोलकाता(Kolkata) के स्वतंत्रता सेनानी देशबंदु चितरंजन दास(Deshbandhu Chittaranjan Das) के काम से प्रभावित हो कर नेता जी सुभाष दासबाबू(Netaji Subhash Dasbabu) के साथ काम करना चाहते थे। और इंग्लैंड(England) से उन्होंने दासबाबू(Dasbabu) को खत लिखा और उनके साथ काम करने की इच्छा जताई।

भारत वापस आने पर रवींद्रनाथ ठाकुर(Rabindranath Thakur) की सलाह मान कर वह सबसे पहले गाँधी जी(Gandhi Ji) से मिलने मुंबई(Mumbai) गए। गाँधी जी ने उन्हें कलकत्ता (Kolkata) जा कर दासबाबू(Dasbabu) के साथ काम करने की सलाह दी और नेता जी कलकत्ता(Kolkata) चले गए।

उस वक्त गाँधी जी ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement) शुरू किया था जिसका नेतृत्व दासबाबू(Dasbabu) बंगाल(Bangal) में कर रहे थे। 5 फरवरी, 1922 को जब चौरी-चौरा हत्या कांड(Chauri-Chaura murder case)के बाद गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement) वापस ले लिए तो दासबाबू(Dasbabu) ने कांग्रेस के अंदर स्वराज पार्टी(Swaraj Party) के नाम से नई पार्टी की स्थापना की।

जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) के साथ नेता जी ने कांग्रेस के अंदर ही इण्डिपेण्डेंस (Independence) लीग की स्थापना की। 1927 में साइमन कमीशन(simon commission) भारत आए और देश में "साइमन गो बैक(simon go back)" के नारो के साथ आंदोलन शुरू हो गया। कलकत्ता(Kolkata) में किए जा रहे इस आंदोलन का नेतृत्व नेता जी कर रहे थे।गाँधी जी उस वक्त पूर्ण-स्वराज(Complete independence) की मांग से असहमत थे लेकिन नेहरू जी और नेता जी पूर्ण स्वराज(Complete independence) की मांग पर डटे हुए थे। अपने क्रन्तिकारी जीवन में उन्हें कुल 11 बार जेल जाना पड़ा।

क्रन्तिकारी गोपीनाथ साहा(Gopinath Saha) के मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने के कारन अँग्रेज़ों ने उन्हें क्रांतिकारी को समर्थन करने और उन्हें उत्प्रेरित करने के इलज़ाम के तहत गिरफ्तार कर म्यांमार(Myanmar) के माण्डले कारागृह(Mandalay Prison) में बंद कर दिया। कारावास में नेता जी की तबियत बहुत बिगड़ गई, हालत इतनी ख़राब थी कि आखिर में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल से रिहा कर दिया जिसके बाद वह इलाज के लिए डलहौजी(dalhousie) आ गए।

जिसके बाद डॉक्टरों की सलाह मान कर उन्होंने यूरोप(Europe) जाने का फैसला कर लिया।नेता जी जब 1934 में ऑस्ट्रेलिया(Australia) में थे तब उनकी मुलाकात एमिली शेंकल(Emily Schenkel) से हुई जिनसे नेता जी को प्रेम हो गया और उन्होंने 1942 में उनसे हिन्दू रीती-रिवाज़ से शादी कर ली।

एमिली(Emily) ने वियान में बेटी अनिता बोस को जन्म दिया। 1945 में जब उनकी बेटी पौने तीन साल की थी तब ताइवान में विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।हलांकि परिवार को उनकी मृत्यु की ख़राब पर शक है और उन्हें लगता है की नेता जी को नज़रबंद कर के रखा गया था।

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