
"जय जवान, जय किसान" का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारत की आज़ादी के बाद दूसरे प्रधानमंत्री चुने गए। वह 9 जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966 तक प्रधानमंत्री रहे और बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने अंतिम साँसे ली। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि ली। आज़ादी के बाद शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश का संसदीय सजीव चुना गया तो वही गोविन्द वल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में उन्हें पुलिस और परिवहन मंत्रालय सोपा गया।
उनके नेतृत्व में पहली बार महिला कंडक्टर नियुक्ति होने लगी तो वही भीड़ को काबू करने के लिए लाठी की जगह पानी प्रयोग भी उनके कार्यकाल में शुरू हुआ। जब 27 मई, 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हो गई तो उनकी जगह शास्त्री जी को प्रधानमंत्री चुन लिया गया।
9 जून, 1964 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की सपथ ली और 1965 में भारत-पाक युद्ध शुरू हो गया। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में भारत की हार के बाद सबको यह डर था कि भारत फिर ना हार जाए लेकिन नेहरू जी के मुकाबले शास्त्री जी ने युद्ध का अच्छा नेतृत्व किया और पाकिस्तान को मूकी खानी पड़ी।
प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के बाद ताशकंद में युद्ध समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर किए। पर 4 जनवरी, 1966 की रात उनकी रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 1904 में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे और सब उन्हें मुंशी जी ही कहा करते थे।
बाद में मुंशी जी ने राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी की थी। घर में सबसे छोटे होने के कारण शास्त्री जी को माँ रामदुलारी और बाकि परिवारजनों से बेहद प्यार मिला। उन्हें सब प्यार से नन्हें कह कर पुकारा करते थे।
पर अफ़सोस जब नन्हें अठारह महीनें के थे तब उनके सर से पिता का साया छिन गया। पति के निधन के बाद रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं लेकिन नन्हें के नाना की भी कुछ वक्त बाद मृत्यु हो गई। नन्हें ने प्राथमिक शिक्षा मिर्ज़ापुर से ही ली।
उसके बाद हरिश्चंद्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ से उन्होंने आगे की पढाई पूरी की। और 1928 में उन्होंने मिर्ज़ापुर की ललिता से शादी कर ली।
गाँधी जी द्वारा चलाये असहयोग आंदोलन में शास्त्री जी ने बहुत बढ़-चढ़ कर भाग लिया जिसके बाद उन्हें 1921 में जेल जाना पड़ा। गाँधी जी के समर्थक के रूप में वह फिर से राजनीति में लौटे और कई बार जेल भी गए।
बाद में उन्हें कांग्रेस पार्टी में ऊँचे पद पर नियुक्त कर दिया गया। आज़ादी की लड़ाई के जिन आंदोलनों में उनका महत्वपूर्ण योगदान था उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन शामिल है।
दूसरे विश्वयुद्ध में इंगलैंड को बुरी तरह उलझता देख नेता जी ने "आज़ाद हिन्द फौज" को "दिल्ली चलो" का नारा दिया तो वही गाँधी जी ने 8 अगस्त,1942 की रात में बम्बई से अँग्रेज़ों के लिए "भारत छोड़ो" और भारतीयों के लिए "करो या मारो" के नारे जारी किए।
पर 9 अगस्त,1942 के दिन शास्त्री जी ने इलाहाबाद में गाँधी जी के नारे को बड़ी सूझ-बुझ से "मरो नहीं, मारो" में बदल दिया। 1929 में उनकी मुलाकात नेहरू जी से हुई और शास्त्री जी और नेहरू जी की अच्छी दोस्ती हो गई।
नेहरू मंत्रिमंडल में वह बतौर गृहमंत्री नियुक्त किए गए। गृहमंत्री का कार्यकाल उन्होंने 1951 तक संभाला। शास्त्री जी ने कांग्रेस की चुनावी जित के लिए 1952, 1957 और 1962 में जी-जान लगा दी।
पर 1964 में नेहरू जी की मृत्यु हो गई। 9 जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966 तक वह देश के प्रधानमंत्री रहे।
पाकिस्तान के हमले का जवाब देती भारतीय सैनिक ने लाहौर पर हमला कर दिया। पूरी दुनिया भारत के इस कदम से हैरान हो गया और सब युद्ध विराम की मांग करने लगे। फिर भारत के प्रधानमंत्री शास्त्री जी को रूस ताशकंद समझौते में बुलाया गया।
शास्त्री जी ने तो ताशकंद समझौते की हर बात मान ली लेकिन फिर शास्त्री जी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान को युद्ध समाप्ति पर हस्ताक्षर करना पड़ा। कुछ घंटे बाद भारतीय प्रधानमंत्री की रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो गई।
लोगों का कहना था उनको दिल का दौरा आया पर असल में सच किसी को नहीं पता। उनके परिवार वालो और बहुत से लोगों को लगता है कि उनको ज़हर दे कर मारा गया है।
कई ऐसी किताबें आई जिसने शास्त्री जी की मृत्यु पर सवाल उठाया। 1978 में आई "ललिता के आंसू" ने शास्त्री जी की मृत्यु और ललिता शास्त्री के सवालों को दर्शाया।
फिर आउट लुक नाम की पत्रिका ने भी शास्त्री जी की मृत्यु का सच बताने का दावा किया। पर उनका निधन अभी तक सबके लिए रहस्य ही है।