देश के पहले राष्ट्रपति व भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
देश के पहले राष्ट्रपति व भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।

देश के पहले राष्ट्रपति व भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, तो भारतीय संविधान के निर्माण में भी अहम योगदान दिया। देश के पहले राष्ट्रपति बनने से पहले वह मंत्रिमंडल में 1946 और 1947 में कृषि और खाद्य मंत्री थे।

लोग प्यार और सम्मान से उन्हें "राजेन्द्र बाबू(Rajendra Babu)" कहा करते थे। राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) ने देश के विकास के लिए बड़े काम किए है।

विकास के क्षेत्र में उनका बड़ा योगदान रहा है। वह जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल(Sardar Vallabhbhai Patel) और लाल बहादुर शास्त्री(Lal Bahadur Shastri) के साथ भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल थे।

देश की आज़ादी के संघर्ष से आज़ाद होने के बाद नवजात राष्ट्र को आकार देने तक, राजेंद्र बाबू (Rajendra Babu) ने सब बड़े लगन और उत्साह से किया।

जीवन परिचय

बिहार(Bihar) के सारण(Saran)(सीवान(Siwan)) जिले के जीरादेई(Jiradei) में 03 दिसंबर, 1884 को डॉ.साहब (Dr.Sahab) का जन्म हुआ था।

उनके पिता महादेव सहाय(Mahadev Sahay) संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी(Kamleshwari Devi) एक धार्मिक महिला थीं।

राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। कहा जाता है उनको अपनी माँ और बड़े भैया से बड़ा लगाव था, वह उन्हें बड़ा मानते थे।

क्योंकि राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) के दादा पढ़े-लिखे थे, उन्हें हथुआ जो की जीरादेई (Jiradei) के पास एक छोटी सी रियासत है, वहाँ की दीवानी मिल गई।

दादा के बाद पिता और चाचा जगदेव सहाय(Jagdev Sahay) ने दीवानी और ज़मींदारी का काम संभाला। जब डॉ.बाबू(Dr.Babu) पांच साल के थे तब समुदाय की प्रथा के तहत उन्हें एक मौलवी के पास भेजा जाने लगा जहाँ वह फ़ारसी सीखा करते थे, बाद में उन्हें हिंदी और अंकगणित सिखाई गई।

राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) अपनी प्राथमिक शिक्षा के लिए छपरा के जिला स्कूल जाया करते थे। जब डॉ.बाबू(Dr.Babu) 13 साल के थे तब उनकी शादी राजवंशी देवी (Rajvanshi Devi) से हो गई थी लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और पटना के टी.के.घोष से आगे की शिक्षा प्राप्त की।

उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुख भरा रहा जिसने उनकी पढ़ाई और दूसरे कामों पर रोक नहीं लगाई। लेकिन वह जल्द ही छपरा वापस आ गए और वही से कोलकाता विश्वविद्यालय (Kolkata University) के दाख़िले के लिए तैयारी करने लगे।

उस परीक्षा में राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ और उन्होंने कोलकाता(Kolkata) के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज(Presidency College) में दाखिला ले लिया। कॉलेज में उन्हें गोपाल कृष्ण गोखले(Gopal Krishna Gokhale) और बिहार-विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा(Narayan Sinha) भी मिले।

1915 में उन्होंने स्वर्ण पद के साथ एल.एल.एम(LLM) की परीक्षा पास की और बाद में लॉ के क्षेत्र में डॉक्ट्रेट की डिग्री भी ली। वह लॉ की प्रैक्टिस भागलपुर(Bhagalpur),बिहार (Bihar) में किया करते थे।

देश के पहले राष्ट्रपति व भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
भारत के पहले रक्षा प्रमुख या चीफ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ(सी.डी.एस) जनरल विपिन सिंह रावत

सादा जीवन

राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) की वेशभूषा बड़ी ही सादा और सरल हुआ करती थी। उनके चेहरे को देख कर कोई बता ही नहीं सकता था की वह इतने कामयाब और प्रतिभाशाली है।उन्हें देख कर तो यह लगता था कि वह बस एक मामूली से किसान है।

सरोजिनी नायडू(Sarojini Naidu) ने उनके बारे में एक बार कहा था कि उनकी सादगी, त्याग और ठहराव की वजह से गांधी जी के निकटतम शिष्यों में उनकी वही जगह है जो ईसा मसीह(Jesus Christ) के निकट सेंट जॉन(St. John) का था।

डॉ.बाबू और आज़ादी की लड़ाई

जब डॉ.बाबू(Dr.Babu) वकालत में अपने भविष्य की ओर जा ही रहे थे तब से ही उनका झुकाव राष्ट्रपिता बापू(Father of the Nation Bapu) की तरफ हो गया था।

राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) बापू(Bapu) की निष्ठा, समर्पण और सादगी से बहुत आकर्षित होते थे। जब गाँधी जी(Gandhi Ji) ने विदेशी संस्थानों और नौकरियों को छोड़ने का कहा तो उन्होंने अपने बेटे मृत्युंजय प्रसाद(Mrityunjay Prasad) को कोलकाता विश्वविद्यालय (Kolkata University) से हटा कर बिहार विद्यापीठ(Bihar University) में दाखिल करवा दिया।

उन्होंने सर्चलाईट और देश जैसे अखबारों और पत्रिकाओं में बहुत से लेख लिखे। डॉ.बाबू (Dr.Babu) इन अख़बार व पत्रिका के लिए पैसे जुटाया करते थे।

1914 में बंगाल(Bengal) और बिहार(Bihar) में भयानक बाढ़ आई जिसमें दोनों राज्यों को बड़ा कष्ट व नुकसान हुआ तब राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) ने लोगों की सहायता के लिए बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और काम किया।

सिंध और क्वेटा(Sindh and Quetta) के भूकंप के वक्त भी उन्होंने कई राहत-शिविर के इंतज़ाम को अपने हाथ में ले लिया था।

1934 में कांग्रेस की मुंबई(Mumbai) वाली बैठक में उन्हें अध्यक्ष चुना गया। फिर जब नेता जी सुभाषचंद्र बोस(Netaji Subhash Chandra Bose) ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो 1939 में एक बार फिर उस पद का भार डॉ.बाबू (Dr.Babu) ने संभाला।

देश की आज़ादी के बाद वह निर्वाचित राष्ट्रपति बने और देश की ज़िम्मेदारी संभाली। लगातार 12 साल तक उन्होंने राष्ट्रपति पद की ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया

और 1962 में उन्होंने अवकाश लेने की घोषणा कर दी जिसके बाद उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया।

डॉ.बाबू के आखिरी पल

अवकाश लेने के साथ ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया। पत्नी के जाने के बाद भी डॉ.बाबू(Dr.Babu) ने सारी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई।

अपने अंतिम समय में वह पटना के पास वाले सदाकत आश्रम चले गए और 28 फरवरी, 1963 को उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर ली।

देश ने एक काबिल वकील और बहुत अच्छा नेता खो दिया। राजेंद्र बाबू(Rajendra Babu) को लिखने का बहुत शौख था।

उन्होंने अपनी आत्मकथा के सिवा भी कई सी किताबें लिखी जैसे "बापू के पीछे बाबू(Babu behind Bapu)", "इण्डिया डिवाइडेड(India Divided)", "सत्याग्रह एंड चम्पारण (Satyagraha and Champaran)", "गाँधी जी की देन(Legacy of Gandhiji)", "भारतीय संस्कृति(Indian culture)", और "खादी(khadi)".... डॉ.बाबू(Dr.Babu) को गाँधी जी से बहुत लगाव था जो की उनकी रचनाओं से पता भी चलता है।

देश के पहले राष्ट्रपति व भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त अँग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान के साथ से "आज़ाद हिन्द फौज" का गठन किया और देश को "जय हिन्द" का नारा भी दिया
देश के पहले राष्ट्रपति व भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
आधुनिक भारत के निर्माता "लोकमान्य" बाल गंगाधर तिलक

Related Stories

No stories found.
logo
Pratinidhi Manthan
www.pratinidhimanthan.com