मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका

मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका
मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका

मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका

मोहन दास करमचन्द गाँधी(Mohan Das Karamchand Gandhi) जिन्हें सब महात्मा गाँधी(Mahatma Gandhi) या बापू के नाम से जानते है भारतीय राजनीति के इतिहास में बड़े लोकप्रिय व सम्मानित नेता है जिन्होंने देश की आज़ादी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अहिंसा के समर्थक जिन्होंने सत्याग्रह(Satyagraha) के मार्ग पर चल कर अत्याचार का विरोध किया और भारत को आज़ादी दिलाई उन्हें हम राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी(Father of the Nation Mahatma Gandhi) के नाम से भी जानते है।

पर बहुत काम लोगों को पता है की सुभास चंद्र बोस(Subhash Chandra Bose) ने गाँधी जी को "राष्ट्रपिता" की उपाधि दी थी। 4 जून, 1944 को सिंगापूर रेडिओ(Singapore Radio) से संदेश देते वक्त सुभास चंद्र बोस(Subhash Chandra Bose) ने गाँधी जी को "राष्ट्रपिता(Father of the Nation)" कहा था जिसके बाद पूरा देश उन्हें राष्ट्रपिता कहने लगा। गाँधी जी राजनीति में आने से पहले एक काबिल वकील हुआ करते थे जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका(South Africa) में भारतीयों के हक़ के लिए सत्याग्रह शुरू किया था।

1915 में वह भारत आ गए और भारतीय किसानों और श्रमिकों को उनके साथ हो रहे भेदभाव व अत्याचार के खिलाफ एकजुट करने लगे। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(Indian National Congress) की बागडोर सँभालने के बाद बापू ने सबसे पहले देश को गरीबी मुक्त बनाने के लिए, महिलाओं के अधिकारों को बढ़ाने और धार्मिक व जातीय रूप से एकता लाने के लिए बड़े सारे कदम उठाये।

उन्होंने विदेशी शासन से आज़ादी के लिए स्वराज आंदोलन(Swarāj) चलाया जो आज भी भारतीयों के दिलो में एक अलग जगह रखता है। गांधी जी ने नमक के उत्पादन में एकाधिकार के खिलाफ 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम(Sabarmati Ashram) से दांडी तक एक मार्च किया जिसका नाम "दांडी मार्च(dandi march)" रखा गया उसके बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement) को भी लोगों का बड़ा सहयोग मिला। उन्होंने बड़ा सादा सा जीवन साबरमती आश्रम(Sabarmati Ashram) से गुज़ारा और लोगों को भी सादा जीवन जीने की शिक्षा दी।

मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका
भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहा करते थे। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू महात्मा गाँधी के बेहद प्रिय थे

जीवन परिचय

मोहनदास(Mohandas) का जन्म पश्चिमी भारत के गुजरात(Gujarat) के एक तटीय नगर (coastal town) पोरबंदर(Porbandar) में 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गाँधी(Karamchand Gandhi) सनातन धर्म(sanaatan dharm) की पंसारी जाती के थे और ब्रिटिश राज में काठियावाड़(Kathiawar) की छोटी सी रियासत के दीवान थे। उनकी माँ पुतलीबाई(Putlibai) परनामी वैश्य समुदाय की थी जो करमचन्द की चौथी पत्नी थी।

उनकी तीन पत्नियाँ प्रसव (डिलीवरी) के वक्त गुज़र गई थीं। मई 1883 में जब गाँधी जी बस 13 साल के थे उनकी शादी कस्तूरबा बाई(Kasturba Bai) से करवा दी गई थी। जब गाँधी जी की शादी हुई तब देश में बाल विवाह का प्रचलन था। 12-13 साल में शादी करवा कर लम्बे समय तक गौने के लिए रुका जाता था जहाँ दुल्हन अपने माता-पिता के घर रहा करती और थोड़े वक्त बाद उसका गौना कर उसे विदा कर दिया जाता। गाँधी जी और कस्तूरबा बाई के साथ भी वही हुआ।

1885 जब गाँधी जी 15 साल के थे तब उनकी पहली संतान हुई लेकिन कुछ वक्त ज़िंदा रह कर उस बच्ची ने दम तोड़ दिया और साथ ही उनके पिता करमचन्द गाँधी का भी उस ही साल देहांत हो गया। मेट्रिक(Matric) की परीक्षा पास करने के बाद गाँधी जी 04 सितम्बर,1888 को यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन(University of London) चले गए लॉ(Law) की पढाई करने के लिए। इंग्लैंड(England) से भारत आये गाँधी ने वकालत में सफलता ना मिलने पर भारत फार्म के दक्षिण अफ्रीका(South Africa) के ब्रांच में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और 1893 में वह दक्षिण अफ्रीका(South Africa) चले गए।

मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका
"भारतीय इतिहास" में एक महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाला झाँसी, रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस के लिए पुरे देश में मशहूर है।

दक्षिण अफ्रीका का जीवन व संघर्ष

दक्षिण अफ्रीका(South Africa) में गाँधी जी को अलग कष्ट व भेद-भाव देखने को मिला, भारतीयों के साथ हो रहे भेद-भाव और अत्याचार ने नागरिक अधिकारों की क्रांति को जन्म दिया। गाँधी जी को प्रथम श्रेणी की टिकट लेने के बाद भी तीसरी श्रेणी में यात्रा करने की बात से इंकार करने पर ट्रेन से बहार फेंक दिया गया इतना ही नहीं प्रथम श्रेणी में यूरोपियन यात्री(european travelers) को अंदर आने की इजाज़त देने के लिए चालक की भी पिटाई की गई।

उन्होंने इस ट्रेन की यात्रा की वजह से कई और कष्ट झेले जैसे की अफ्रीका के कई होटलों ने उन पर रोक लगा दी और तो और अदालत में न्यायाधीश(judge) ने उन्हें उनकी पगड़ी उतारने को कहा जिसके इंकार के बाद उन्हें बहुत सी चीज़े झेलनी पड़ी। और इस घटना ने उनके जीवन को नया मोड़ दिया और अफ्रीका में भेदभाव के विरुद्ध आंदोलन ने जन्म लिया।

मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वह हमेशा आगे रहीं और गाँधी जी के साथ नज़र आई "भारत कोकिला"

भारत का संघर्ष और गाँधी

गाँधी 1915 में भारत लौट आए। गाँधी ने हक़ की पहली लड़ाई 1918 में बिहार(Bihar) के चम्पारण (Champaran) और गुजरात(Gujarat) के खेड़ा से शुरू की जहाँ नील की खेती(indigo farming) के लिए किसानों को मजबूर करते अँग्रेज़ों के खिलाफ गाँधी जी और साथियों ने आवाज़ उठाई।

उसके बाद पंजाब(Punjab) में हुए जलियावांला नरसंहार(jallianwala massacre) का विरोध करते हुए उन्होंने पूर्ण स्वराज(Complete independence) की पहली बार मांग की और उसके बाद हाथ से बने खादी पहनने और अँग्रेज़ों की चीज़ों का त्याग करने की जिसको स्वदेशी आंदोलन(Swadeshi movement) के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अंग्रेजी स्कूल-कॉलेज व शिक्षा का बहिष्कार करने की बात भी कही और तो और सरकारी नौकरियों से इस्तीफा और सरकारी सम्मान को लौटने का सुझाव भी दिया।

असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement) को उस वक्त पूरी सफलता मिल रही थी, देशवासी गाँधी जी की बात मान रहे थे लेकिन फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) के चौरी-चोरा में आंदोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को आग लगा दी जिसमें 22 पुलिस कर्मी ज़िंदा जल कर मर गए। गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन को हिंसक रूप लेता देख वही रोक दिया और अँग्रेज़ों ने उनपर राजद्रोह(treason) का मुक़दमा चला दिया जिसके बाद उन्हें 6 साल के लिए जेल जाना पड़ा।

जेल से वापस आने के बाद तो गाँधी जी ने कई आंदोलन किया जिसमें स्वराज(swaraj), नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha), दलित आंदोलन(dalit movement), भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement), और पूर्ण स्वराज(Complete independence) शामिल है। आखिर कार 1947 को भारत आज़ाद हो ही गया लेकिन अफ़सोस दो हिस्सों में बट कर।

बापू की हत्या

30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे(Nathuram Godse) ने दिल्ली के बिरला भवन (Birla Bhawan) में गाँधी जी की गोली मर कर हत्या कर दी। भारत-पाकिस्तान(India-Pakistan) के बटवारे से भारत को कमज़ोर करने के आरोप में उन्हें दोषी मानते हुए नाथूराम गोडसे(Nathuram Godse) ने उन्हें गोली मर कर उनकी हत्या कर दिया। हलांकि नाथूराम गोडसे(Nathuram Godse) को फँसी की सजा मिली लेकिन हमारे बिच से राष्ट्रपिता चले गए।

मोहन दास करमचन्द गाँधी जिन्हें सब महात्मा गाँधी या बापू के नाम से जानते है-आज़ादी में निभाई एक महत्वपूर्ण भूमिका
"सरहदी गाँधी" उर्फ़ ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान आज़ादी की लड़ाई के वह जाबाज़ राजनेता थे जिन्हें "बच्चा खान", "बादशाह खान", जैसे नाम से जाना जाता था

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