
एक अच्छे और कुशल राज्य की सफलता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े व्यक्ति के विकास को सुनिश्चित करने के लिए क्या कर रही है। भारत में बेरोज़गारी और आजीविनि कमाने में कठिनाई को देखते हुए सरकार ने 2005 में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का शुभ आरम्भ किया।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कृषि क्षेत्र पर आए संकट और आर्थिक मंदी के दौर में मनरेगा ने ग्रामीण किसानों और भूमिहीन मज़दूरों के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में काम किया।
यह योजना हर साल वित्तीय वर्ष में ग्रामीण परिवार के व्यस्क सदस्यों को 100 दिन का रोज़गार उपलब्ध करती है। इस योजना को मुख्य रूप से ग्रामीण लोगों के लिए ही शुरू किया गया था ताकि ग्रामीण व्यक्ति की खरीद शक्ति बढ़ सके। शुरुआत में इसे राष्ट्रिय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कहा जाता था फिर इसका नाम 2 अक्टूबर, 2009 में महात्मा गाँधी राष्ट्रिय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कर दिया गया।
मनरेगा एक राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम है। अभी इस कार्यक्रम में पूर्णरूप से शहरों की श्रेणी में आने वाले कुछ जिलों को छोड़कर देश के सभी जिले शामिल है। मनरेगा के तहत मिलने वाले वेतन को केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें तय कर सकती हैं।
मनरेगा भारत सरकार द्वारा लागू किया गया एक रोज़गार गारंटी योजना है जिसे 7 सितम्बर, 2005 को विधान सभा में पारित किया गया और 2 फरवरी, 2006 को 200 जिलों में इसकी शुरुआत की गई। यह योजना विश्व की एकमात्र ऐसी योजना है जो 100 दिन रोज़गार की गारंटी देता है।
देश के गरीब और बेरोज़गार परिवार अपनी आजीविका के लिए इस योजना का लाभ उठा रहे है। आय वर्ग में कमज़ोर लोगों को उनके ही ग्राम पंचायत में रोज़गार दिया जाता है जिस से पलायन की समस्या को भी काफी हद तक रोका गया है। 2010-11 में इस योजना के बजट में केंद्र सरकार ने 40,100 करोड़ रुपए दिए।
ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्यों को ग्राम पंचायत में अपनी एक फोटो, नाम, उम्र और पता प्रमाण पत्र जमा करवाना पड़ता है। जाँच-पड़ताल करने के बाद पंचायत घरों को पंजीकृत करता है और एक जॉब कार्ड देता है। जॉब कार्ड में पंजीकृत वयस्क सदस्य का ब्यौरा और उसकी फोटो शामिल होती है।
उसके बाद पंजीकृत व्यक्ति पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को काम करने के लिए लिखित रूप में आवेदन देता है। इस पूरी प्रक्रिया में 14 दिनों का समय लग जाता है। इस योजना के अधिनियम के तहत महिलाओं और पुरुषों में किसी भी प्रकार के भेदभाव की अनुमति नहीं दी गई है और पुरुषों और महिलाओं को एकसमान वेतन देने का नियम है।
एक परिवार के सभी व्यस्क रोजगार के लिए आवेदन कर सकते है। इस योजना का उद्देश्य मुख्य रूप से सरकार की पहुँच गरीबों तक बढ़ाना और उनके विकास के लिए अवसर लाना है। मनरेगा का उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का गारंटी शुदा कुशल या गैर-कुशल रोजगार देना है।
पंचायत द्वारा सर्वप्रथम एक प्रस्ताव ब्लॉक कार्यालय में दिया जाता है फिर ब्लॉक कार्यालय काम के महत्वपूर्ण होने न होने पर निर्णय लेता है।
रिपोर्ट तैयार करने के बाद ब्लॉक कार्यालय राज्य सरकार को मनरेगा अधिनियम को लागू करने के लिए पात्र भेजता है जिसके बाद केंद्र सरकार के बजट में मजदूरी लागत, माल लागत का तीन चौथाई और प्रशासनिक लागत का कुछ प्रतिशत शामिल हो जाता है और राज्य सरकार के बजट में बेरोज़गारी भत्ता, माल लागत का एक चौथाई और राज्य परिषद की प्रशासनिक लागत जुड़ जाती है। बेरोज़गारी भत्ता की राशि को राज्य सरकार तय करती है।
क्योंकि इस योजना का मुख्य उद्देश्य भी है और मनरेगा के निष्पादन के लिए ज़रूरी भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इसका लाभ ज़्यादा-से-ज़्यादा हो इस लिए ग्राम पंचायत द्वारा नियमित रूप से ग्राम सभाओं का आयोजन करवाना अनिवार्य है। और साथ ही सभी सभा की वीडियो फिल्म भी बनाई जानी चाहिए।
मनरेगा विकास और रोज़गार के लक्ष्यों पर काम करता है। इस योजना में जल संरक्षण और संचयन, नए टैंक और तालाबों की खुदाई, छोटे बांधों का निर्माण, भूमि समतल, वृक्षारोपण, ग्रामीण संपर्क तंत्र, बांध नियंत्रण, तटबंधों का निर्माण और मरम्मत अदि कार्य शामिल किए गए हैं।
2011 में कार्यक्रम को भयंकर आलोचना का सामना करना पड़ा क्योंकि अन्य योजना की तुलना में मनरेगा कम प्रभावशाली था। और तर्क दिया गया कि यह योजना भी गरीबी को जड़ से ख़त्म करने की अन्य योजनाओं से अधिक प्रभावी नहीं हो रही है।
उसके बाद इस योजना को सार्वजनिक कार्य से जुडी आलोचना का सामना करना पड़ा। आलोचना थी कि सार्वजनिक कार्य जैसे जल संरक्षण, भूमि विकास, वनीकरण, सिंचाई प्रणाली का प्रावधान, सड़क निर्माण या बाढ़ नियंत्रण पर अमीर वर्ग द्वारा कब्ज़ा किया जा सकता है।
2020 में कोरोना की मार से पुरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर खासी चोट लगी जिसके बाद भारत के प्रधानमंत्री ने बहुत सारी योजनाओं में परिवर्तन किए और साथ ही नई योजनाएँ शुरू की। मोदी सरकार ने मनरेगा के तहत मज़दूरी के अलावा नए प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया।
जिसकी खास बात है कि प्रशिक्षण के दौरान हर दिन मज़दूरों को भत्ता भी दिया जाएगा। इन प्रशिक्षण में एग्रीकल्चर टेक्निकल ट्रेनिंग के साथ-साथ आर्गेनिक खाद, और अन्य कृषि से जुड़े कार्य शामिल है। इसका फायदा 18 से 35 साल के लोगों द्वारा लिया जा सकता है।
भूमि सुधार, खेत-तालाब, चरागाह विकास और नर्सरी जैसे नए काम भी इसमें शामिल है। 1 अप्रैल, 2020 को मनरेगा मज़दूरी को संशोधित किया गया और 2020-2021 की पहली किश्त राज्यों को जारी कर दी गई।
संशोधित मनरेगा योजना के अंतर्गत लगभग 12 करोड़ जॉब कार्ड ग्रामीण क्षेत्रों में बांटे गए। इस योजना के तय 264 कार्यों में से 162 कार्य कृषि से सम्बंधित है जिस पर मनरेगा के पुरे बजट का 66 प्रतिशत खर्च किया जाता है।