
समुद्र हमेशा से ही मनुष्य की उत्सुकता का केंद्र रहा है। स्थल मंडल से कई अधिक जैव पारिस्थिकी गहरे महासागरों में मौजूद है। स्थलमंडल से ज़्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन जलमंडल में मौजूद जैविक राशियाँ करती है। स्थलमंडल में ज़्यादा अकूत खनिज सम्पदा महासागरों में मिलते है। 16 जून, 2021 को भारत सरकार द्वारा गहरे समुद्र में खोजने के लिए "डीप ओशन मिशन" को मंज़ूरी प्रदान की है।
यह मिशन भारत की समुद्री सीमा के भीतर समुद्र जीवन, खनिज, ऊर्जा आदि का अनुसन्धान करेगा। योजना का मुख्य उद्देश्य समुद्री संसाधनों का पता लगाना है, गहरे समंदर में काम करने की तकनीक विकसित करना, ब्लू इकोनॉमी को तेज़ी से बढ़ावा देना है। इस मिशन को चरणबद्ध तरीके से लागू किया और डीप ओशन मिशन भारत सरकार की ब्लू इकोनॉमी को आगे ले जाने के लिए अहम परियोजना मानी जा रही है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय इस महत्वाकांक्षी मिशन को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा।
संसद में 15 मार्च को पेश पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की साल 2022-23 की अनुदान की मांगो पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से संबंधित स्थायो समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यह योजना सागरों-महासागरों के जल के नीचे की दुनिया के खनिज, ऊर्जा और समुद्री विविधता की खोज करेगा या जानकारी प्राप्त करेगा। जिसका बड़ा भाग अभी भी अस्पष्टीकृत है और इसके बारे में व्यापक शोध और अध्ययन किया जाना अभी बाकी है। इस मिशन की लागत 4,000 करोड़ से ज़्यादा है। यह मिशन भारत के विशाल विषेश आर्थिक क्षेत्र और महाद्वीपीय शेल्फ का पता लगने के प्रयासों को बढ़ावा देगा। मंत्रालय के सचिव एम राजीवन ने कहा कि "भविष्यवादी और खेल परिवर्तन" मिशन के लिए आवश्यक अनुमोदन प्राप्त किए जा रहे है और यह अगले 3-4 महीनों में शुरू होने की संभावना है।
विज्ञान बताता है कि पृथ्वी का लगभग 70% भाग पानी से घिरा है जिसमें अलग-अलग प्रकार के समुद्री जीव-जंतु हैं। हैरानी की बात यह है कि तमाम आधुनिक तकनीक और विज्ञान के बावजूद भी गहरे समुद्र का लगभग 95.8% हिस्सा आज भी मनुष्य के लिए रहस्य ही है। समुद्र में 6 हज़ार मीटर नीचे कई प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। इन खनिजों के बारे में अब तक अध्ययन नहीं हुआ है। इस मिशन के तहत इन खनिजों के बारे में अध्ययन एवं सर्वेक्षण का काम किया जाएगा।
इसलिए भारतीय समुद्री सीमा के अंदर आने वाले समुद्र की गहराइयों को टटोलने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डीप ओशन मिशन को मंज़ूरी दी है। गहरे समुद्र में ऊर्जा, खनिज तथा जैव विविधता की खोज और अनुसंधान के लिए भारत सरकार ने 4,000 करोड़ रूपए की इस योजना को मंज़ूरी प्रदान की है। डीप ओशन मिशन का नोडल मंत्रालय केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय है। इस मिशन को 5 साल के लिए मंज़ूरी प्रदान की गयी है। इस मिशन को दो चरणों में पूरा किया जाएगा। इसका प्रथम चरण 2021-24 तक 3 सालों के लिए कार्यकारी रहेगा।
इस योजना के तकनीकी विकासों के कार्यों को महासागर सेवा, प्रौद्योगिकी, अवलोकन संसाधन मॉडलिंग और विज्ञान के तहत वित्तपोषित किया जाएगा। डीप ओशन मिशन के तहत समुद्र में 6 हज़ार मीटर नीचे पाए जाने वाले कई प्रकार के खनिजों के बारे में अध्ययन एवं सर्वेक्षण का काम किया जाएगा। यह मिशन जलवायु परिवर्तन एवं समुद्र के जलस्तर के बढ़ने के साथ समुद्र में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी अध्ययन कार्य करेगा।
डीप ओशन मिशन का मुख्य उद्देश्य समुद्र के नितल पर पॉलीमेंटॉलिक नोड्यूल्स को खोजना और उनको बाहर निकालना है। गहरे समुद्र में धातुओं का पता लगाने और तीन लोगों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ "मानव युक्त सवमर्सिबल के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास" करना है। इस योजना के मुख्य उद्देश्य में गहरे समुद्र में खनन और मानव युक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करना, महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास करना, गहरे समुद्र में जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए तकनीकी नवाचार करना और गहरे समुद्र में सर्वेक्षण और अन्वेषण करना शामिल है।
साथ ही यह मिशन उन्नत तकनीकों के द्वारा महासागर से ऊर्जा और मीठा पानी प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। योजना तहत समुद्र जीव विज्ञान के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन की स्थापना की जाएगी। मानव जीवन की उत्पत्ति एवं आधार समुद्र है यह धरती को चरों तरफ से ढके हुए है तथा धरती के 70% भाग में विद्यमान है। समुद्र के 95% भागों को अभी खोजा जाना बाकी है और यहाँ पर खोज संबंधित कार्यों के लिए अपार संभावनाएँ हैं। भारत अरब सागर, हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी के साथ जुड़ा हुआ है इसका तात्पर्य यह हुआ कि भारत के पास तीन अलग-अलग जल राशियों में जैव विविधता, समुद्री परिस्थितियों तथा अनुसंधान के अवसर हैं।
भारत सरकार के साल 2030 तक के लक्षित बिंदुओं में ब्लू इकोनमी प्रमुखता से है। डीप ओशन भारत सरकार के ब्लू इकॉनोमी निर्भरता को बढ़ावा देता है। अभी तक केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस,चीन तथा जापान ही ऐसे देश हैं जो समुद्र अनुसन्धान के लिए इस तरह के मिशन का क्रियान्वयन कर रहे है और भारत के पास विशाल समुद्र में जीवन की असीम संभावनाओं, खनिज, ऊर्जा भंडारों को खोज निकलने का एक अच्छा मौका है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्रतल का केवल 20% और पृथ्वी पर केवल 70% भूमि की सतह में मनुष्य द्वारा खोजी गई है। इस नियोजित गतिविधि का उद्देश्य तब तैयार किया जाना है जब इस क्षेत्र में नियमों को औपचारिक रूप दिया जाता है। गहरे महासागरीय सीमांत का पता लगाया जाना अभी बाकी है। अधिकारी ने कहा कि हम इस पर काम कर रहे है लेकिन अब ज़ोर से मिशन मोड़ पर काम करना है। मिशन में अन्वेषण के लिए अधिक उन्नत गहरे समुद्र के जहाजों की खरीद भी शामिल होगी।
मौजूदा पोत सागर कन्या लगभग साढ़े तीन दशक पुराना है। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतराष्ट्रीय संघ के अनुसार यह गहरे दूरस्थ स्थान कई विशेष समुद्री प्रजातियों के घर भी हो सकते है। इस प्रजातियों ने स्वयं को कम ऑक्सीजन, कम प्रकाश, उच्च दबाव और बेहद कम तापमान जैसी स्थितियों के लिए अनुकूलित किया है। इसलिए हो सकता है कि इस प्रकार के खनन कार्यों से उनकी प्रजाति और उनके निवास स्थान पर खतरा उत्पन्न हो। साथ ही ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस प्रकार के खनन अभियान उनकी खोज के पहले ही उन्हें विलुप्त कर सकते है।