तंबाकू की वजह से साल भर में 15 लाख लोग मर रहे हैं, क्या कोरोना इससे भी ज्यादा खतरनाक है?

गुटखा निर्माता विदेशों से आयात होने वाले तंबाकू उत्पादों में जहरीले रसायन मिला रहे हैं। एक किलो केसर की कीमत करीब 1 लाख रुपये है और गुलाब भी बहुत महंगा है, तो फिर ये निर्माता 5 से 10 रूपए की कीमत पर मिलने वाले गुटखे के पैकेट में केसर कैसे डाल सकते हैं।
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देश में कोरोना लॉकडाउन के दौरान तंबाकू प्रोडक्ट्स (tobacco products) बेचने वाले लोगों ने भारी मुनाफा कमाया है। खैर, विषय ये नहीं है, विषय ये है कि सरकार एक मुंह के कैंसर(Mouth Cancer) के रोगी के इलाज पर 2 लाख रुपये का भुगतान कर रही है।

यह मुंह के कैंसर(Mouth Cancer) वाली बीमारी मुख्य रूप से तंबाकू, गुटखा सेवन करने से होती है जो बाजार में लगभग 2 रुपए की कीमत पर उपलब्ध है। उसी 2 रूपए के गुटखे से होने वाले कैंसर का इलाज़ अगर किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में कराया जाए तो इस पर करीब 6 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं।

हाल ही, गुटखा सामग्री आपूर्तिकर्ता विजय तिवारी ने गंदे एवं घटिया तम्बाकू व्यवसाय का पर्दाफाश किया है। खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि गुटखा में केसर, गुलाब, इलाइची आदि मिलाने के निर्माताओं के दावे निराधार हैं क्योंकि निर्माता इन उत्पादों में कैंसर पैदा करने वाले रसायनों का उपयोग कर रहे हैं।

भारत में मुंह के कैंसर की बीमारी के इलाज़ में कितनी लागत आती है?

टाटा मेमोरियल सेंटर(Tata Memorial Center) द्वारा मुंह के कैंसर(Mouth Cancer) की बीमारी के इलाज़ को लेकर एक नई स्टडी की है। इसी स्टडी को आधार बनाते हुए जाने-माने ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ पंकज चतुर्वेदी(Oncologist Dr Pankaj Chaturvedi) ने कहा, 'मुंह के कैंसर(Mouth Cancer) के बड़े स्तर में पहुंचने पर इसके इलाज़ में लगभग 2,02,892 रुपये की लागत आती है जो प्रारंभिक अवस्था कैंसर के इलाज़ से 42 प्रतिशत अधिक है। प्रारंभिक अवस्था कैंसर इलाज़ की लागत लगभग 1,17,135 रुपये है।

"मुंह के कैंसर के बढ़ते जोखिम और तंबाकू कानून कैसे रोक सकते हैं" विषय पर आयोजित एक वेबिनार के माध्यम से श्री चतुर्वेदी ने बताया कि ट्रीटमेंट के दौरान मरीज बेरोजगार हो जाते हैं, वे काम करने की स्थिति में नहीं होते और अपने दोस्तों और परिवार पर आर्थिक बोझ बन जाते हैं।

आपको बता दें, डॉ. पंकज चतुर्वेदी(Dr Pankaj Chaturvedi) टाटा मेमोरियल अस्पताल (Tata Memorial Hospital), मुंबई(Mumbai) में हेड नेक कैंसर सर्जन(Head Neck Cancer Surgeon) और सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजी(Centre for Cancer Epidemiology) में उप निदेशक हैं।

गुटखा सामग्री आपूर्तिकर्ता विजय तिवारी ने सच्चाई खुलासा किया!

इसी वेबिनार में मुंह के कैंसर से जंग जीत चुके तिवारी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, 'गुटखा निर्माता विदेशों से आयात होने वाले तंबाकू उत्पादों में जहरीले रसायन मिला रहे हैं। एक किलो केसर की कीमत करीब 1 लाख रुपये है और गुलाब भी बहुत महंगा है, तो फिर ये निर्माता 5 से 10 रूपए की कीमत पर मिलने वाले गुटखे के पैकेट में केसर कैसे डाल सकते हैं।'

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विजय तिवारी(Vijay Tiwari), जो तंबाकू उद्योग में एक कम्पोनेंट सप्लायर(Component Supplier) थे, उन्होंने कहा, "गुटखा का एक पाउच दो दशक पहले भी 1 रुपये या 2 रुपये में उपलब्ध था और वर्तमान में भी यह समान मूल्य सीमा में उपलब्ध है। यह कैसे संभव हो सकता है जब सामग्री की लागत बढ़ गई है?"

इसी के साथ ही देश के जाने-माने ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ चतुर्वेदी(Oncologist Dr Chaturvedi) ने कहा, 'केंद्र और राज्य सरकारों ने अभी तक तंबाकू से होने वाली मौतों को रोकने के लिए कोई उचित नीति नहीं बनाई है, जैसा कि देश में कोविड-19 से हो रही मौतों को नियंत्रित करने में लगातार किया जा रहा है।

अब तक, कोविड -19 के कारण लगभग 4 लाख लोगों की मौत हो चुकी है और सरकार ने तुरंत इलाज की रणनीति के रूप में लॉकडाउन(Lockdown) का इस्तेमाल किया, लेकिन तंबाकू के कारण होने वाली 13 लाख वार्षिक मौतों को रोकने के लिए अभी तक कोई मजबूत कार्रवाई नहीं की गई है। TCP India Survey के मुताबिक, साल 2020 में 15 लाख लोगों की मृत्यु तंबाकू की वजह से हुई।

इसके आगे डॉ. चतुर्वेदी(Dr Chaturvedi) ने कहा, 'टाटा मेमोरियल अस्पताल(Tata Memorial Hospital) में हर साल इलाज के लिए आने वाले लगभग 60,000 कैंसर रोगियों में से लगभग 20 प्रतिशत मरीज सिर्फ मुंह के कैंसर के होते हैं। भारत में, हर साल सिर्फ मुंह के कैंसर के लगभग एक लाख मरीज़ों का इलाज किया जाता है और इनमें से हर साल करीब 50,000 मरीजों की मौत हो जाती है।'

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27 करोड़ लोग करते हैं तंबाकू सेवन

'यह सच है कि भारत में 27 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। एक वैश्विक वयस्क सर्वेक्षण (global adult survey) के अनुसार, 96 प्रतिशत लोग इस तथ्य को जानते भी हैं कि तंबाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

हालांकि, हम इसके नियंत्रण और रोकथाम की चर्चा सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि यह एक नशे की लत वाला उत्पाद है उजबकि मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामले तंबाकू, सुपारी और शराब के सेवन के कारण होते हैं।' यह सिर्फ नशे की लत वाला उत्पाद नहीं बल्कि जानलेवा उत्पाद है।

सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 (COTPA) में प्रस्तावित संशोधनों पर चर्चा करते हुए डॉ. चतुर्वेदी(Dr Chaturvedi) ने कहा, "यह कानून 2003 में लागू किया गया था और तंबाकू उद्योग एक वायरस की तरह म्यूटेट(mutate) हो चुका है और बहुत अधिक शक्तिशाली हो गया है।

इसलिए, हमारे कानूनों को तंबाकू उद्योग के डिजाइन के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है। COTPA में संशोधन बहुत जरूरी है।" उन्होंने जोर देते हुए कहा, 'हमें केवल एक तारीख तय करने की आवश्यकता है जब से तंबाकू कानूनी नहीं होगी और यह एक वर्गीकृत उत्पाद होगा जिसे लोग डॉक्टर के लिखे प्रेस्क्रिप्शन के बाद ही खरीद पाएंगे।'

तंबाकू से संबंधित नीति निर्माताओं को दोषी ठहराते हुए वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा (Reporter Narendra Nath Mishra) ने कहा, तंबाकू के खतरे से निपटने के लिए एक मजबूत तंत्र बनाने में नीति निर्माताओं के अनिच्छुक दृष्टिकोण को दोषी ठहराते हुए, वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा(Narendra Nath Mishra) ने कहा, 'तंबाकू उद्योग लॉबी इतनी शक्तिशाली है कि अंतिम कानून को मंजूरी मिलने के बाद भी मसौदा नियमों में कड़े मानदंड कमजोर हो जाते हैं।

ऐसा नहीं है कि तंबाकू की रोकथाम के लिए कमजोर कानूनों के लिए सिर्फ सत्ताधारी दल ही जिम्मेदार है, विपक्षी दल भी तंबाकू के सेवन से मरने वाले लोगों की जान बचाने को लेकर तनिक भी चिंतित नहीं हैं।'

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