उत्तर प्रदेश की वेशभूषा पूरे भारत की संस्कृति को रिप्रेजेंट करती है, क्या ख़ास है? जानिए

यहां की संस्कृति पुरानी चली आ रही प्रथाओं और भारतीय पारंपरिक रीति रिवाजों की पालन करती है। उत्तर प्रदेश में विभिन्न तरह के त्यौहार बहुत ही अच्छे तरह से, पूरे हर्षौल्लास के साथ मनाएं जाते हैं उत्तर प्रदेश ने सांस्कृतिक तत्वों की विरासत को भी बहुत प्रेम से ग्रहण किया है। उत्तर प्रदेश की संस्कृति, परिधान, जीवन शैली आदि, इसको देव भूमि के रूप में दर्शाती है।
उत्तर प्रदेश की वेशभूषा पूरे भारत की संस्कृति को रिप्रेजेंट करती है, क्या ख़ास है? जानिए
उत्तर प्रदेश की वेशभूषा पूरे भारत की संस्कृति को रिप्रेजेंट करती है, क्या ख़ास है? जानिए

उत्तर प्रदेश की वेशभूषा पूरे भारत की संस्कृति को रिप्रेजेंट करती है, क्या ख़ास है? जानिए

उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) हमेशा से हिन्दू धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। प्रयागराज (Prayagraj) के कुम्भ मेले का महत्व तो पुराणों में भी वर्णित है। त्रेता युग में प्रभु श्री राम का जन्म भी अयोध्या जिले में ही हुआ था। प्रभु श्री राम के 14 वर्ष के वनवास में भी चित्रकूट (Chitrakoot), प्रयागराज(Prayagraj) आदि का बहुत महत्व है भगवान् श्री कृष्ण का जन्म भी मथुरा(Mathura) में हुआ और भगवान् विष्णु के दसम अवतार का भी अवतरण उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) में ही वर्णित है। वाराणसी(Varanasi) में स्थित विश्वनाथ मंदिर का सनातन धर्म में एक अलग ही महत्व रहा है।

भारत और उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) का व्यस्थित इतिहास सातवीं शताब्दी के अंत से आरम्भ होता है। जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद अपनी अपनी श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे तब उनमे से 7 महाजनपद उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) की सीमा के अंतर्गत थे।

वाराणसी(Varanasi) के पास स्थित सारनाथ में बुध ने अपना पहला उपदेश दिया था और तब एक ऐसे धर्म की नींव रखी गयी थी जो न केवल भारत में ही बल्कि जापान और चीन जैसे दूर - दूर तक देशो में भी फ़ैल गया। ऐसा कहा जाता है की बुध को परिनिर्वाण भी कुशीनगर में प्राप्त हुआ था।

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उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) में कुल 18 संभाग तथा 75 जिले है । उत्तर प्रदेश में कुल 332 तहसीलें है । यहाँ के स्थित विश्वविद्यालयों की संख्या 55 है । उत्तर प्रदेश का विधान मंडल द्विसदनात्मक है। विधानसभा के सदस्यों की संख्या 404 है तथा विधान परिषद के सदस्यों की संख्या 100 है। उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) का उच्य न्यायलय प्रयागराज(High Court Prayagraj) में स्थित है तथा इसका खंड पीठ लखनऊ(Lucknow) में है।

उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) की पहली भाषा हिंदी तथा दूसरी भाषा उर्दू मानी जाती है। उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) का राजकीय पेड़ अशोक और राजकीय पुष्प पलाश है। यहाँ का राजकीय पक्षी सारस या क्रौंच है। उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) का राजकीय चिन्ह मछली और तीर कमान है।

यहां की संस्कृति पुरानी चली आ रही प्रथाओं और भारतीय पारंपरिक रीति रिवाजों की पालन करती है। उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) में विभिन्न तरह के त्यौहार बहुत ही अच्छे तरह से, पूरे हर्षौल्लास के साथ मनाएं जाते हैं उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) ने सांस्कृतिक तत्वों की विरासत को भी बहुत प्रेम से ग्रहण किया है। उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) की संस्कृति, परिधान, जीवन शैली आदि, इसको देव भूमि के रूप में दर्शाती है।

उत्तर प्रदेश की वेशभूषा की बात करें तो महिलाओं के लिए साड़ी, सलवार कुर्ता तथा पुरुषों के लिए पैन्ट शर्ट और कुर्ता पज़ामा ज्यादा देखने को मिलते हैं।

साड़ी को बहुत से स्थानों पर सारी भी कहा जाता है। साड़ी भारतीय स्त्रियों का मुख्य परिधान माना जाता है यह विश्व के सबसे पुराने परिधानों में से एक है। साड़ी लगभग 5-6 मीटर लम्बी होती है, इसको ब्लाउज और साया के साथ पहना जाता है, साड़ी को बहुत तरीकों से पहना जाता है।

अलग-अलग शैलियों की साड़ियां जैसे बनारसी साड़ी, पटोला साड़ी, कांजीवरम साड़ी, चंदेरी साड़ी, महेश्वरी साड़ी, रेश्मी साड़ी आदि साड़ियों के मुख्य प्रकार हैं। साड़ी का उल्लेख अधिवासस (सर पर ढकने वाला कपड़ा) के रूप में हमें वेदों में देखने को मिलता है। साड़ी शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख यजुर्वेद में देखने मिलता है वहीं ऋग्वेद(Rigveda) में हवन या यज्ञ के समय स्त्रियों को साड़ी पहनने का विधान है।

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शाटिका या सात्तिका साड़ी का संस्कृत रूप है।

तमिलनाडु(Tamil Nadu) की कांजीवरम साड़ियां(Kanjivaram saree) कांचीपुरम शहर (Kanchipuram city)में बनाई जाती हैं, ऐसा कहा जाता है कि कांजीवरम साड़ियां के बुनकर महर्षि मार्कण्डेय जी के वंशज थे जो कमल के फूल के रेशों से स्वयं देवताओं के लिए बुनाई करते थे।

राजा कृष्णदेव राय के समय से कांजीवरम साड़ियां अपनी विशेष कारीगरी के लिए बहुत प्रसिद्ध है सिल्क साड़ी का अधिक उत्पादन होने के कारण कांचीपुरम को सिल्क सिटी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं बनारसी साड़ियां बहुत ही विशेष तरह की साड़ियां है, इन्हें लोग अपने विवाह आदि शुभ अवसरों पर पहनते हैं। बनारसी साड़ियों का कच्चामाल बनारस(Banaras) से आता है।

बनारस में बुनाई के साथ-साथ रेशम(Ramesh) की साड़ियों पर जरी की डिजाईन से मिलाकर तैयार होने वाली रेशमी साड़ियों को बनारसी रेशमी साड़ी कहते है यह काम बहुत सालों से चला आ रहा है, कभी-कभी तो इनमे शुद्ध सोने के तारों का प्रयोग भी होता है।

इसमें अनेक प्रकार के नमूने भी बनाये जाते हैं इनको मोटिफ के नाम से जाना जाता हैं। भारत में बहुत तरह के मोटिफों का प्रचलन बहुत तेज़ी से चल रहा है कुछ परंपरागत मोटिफ तो आज भी अपनी अलग एक बनारसी पहचान बनाये हुए है जैसे- जंगला,जाल,बेल,कोनिया,बूटा आदि।

स्त्रियों के लिए सलवार कुर्ता भी एक पारंपरिक भारतीय पोशाक के रूप में जाना जाता है। इसमें एक लम्बी कमीज़ होती है, जो हमारे घुटनों तक लम्बी होती है और इसमें सलवार तथा दुपट्टा भी पाया जाता है। कुर्ते को आम और ख़ास दोनों अवसरों पर पहना जाता है। सलवार कुर्ता सूती,रेशमी और ऊनी आदि विभिन्न सामग्री से बनते हैं।

पुरुषों के लिए कुर्तो की परंपरा भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी रही है इसमें शेरवानी और पठानी सूट आदि प्रमुख हैं।

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