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झारखंड के 'डिशोम गुरु' शिबू सोरेन का निधन: आदिवासी आंदोलन के युग का अंत

Manthan

झारखंड के 'डिशोम गुरु' शिबू सोरेन का निधन: आदिवासी आंदोलन के युग का अंत

रांची/नई दिल्ली: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और आदिवासी समाज के प्रखर नेता शिबू सोरेन का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे ‘डिशोम गुरु’ ने शनिवार शाम (3 अगस्त 2025) को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन की पुष्टि बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की। इस दुखद क्षण ने न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश को शोक में डुबो दिया है।

आदिवासी समाज की आवाज: धरती से संसद तक का सफर

शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के दुमका जिले के नेमरा गांव में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक साधारण ग्रामीण किसान परिवार से की, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा में जो ऊँचाइयाँ हासिल कीं, वह असाधारण हैं।

1972 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। उस दौर में जब आदिवासी समाज शोषण और उपेक्षा झेल रहा था, शिबू सोरेन ने नारा दिया—"धरती अपनी है, राज भी अपना होगा।" यह आवाज धीरे-धीरे झारखंड राज्य के निर्माण की बुनियाद बन गई।

‘डिशोम गुरु’ क्यों कहलाते थे शिबू सोरेन?

आदिवासी भाषा में 'डिशोम गुरु' का अर्थ होता है "जनजातीयों का संरक्षक और मार्गदर्शक"। शिबू सोरेन ने न केवल आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी, बल्कि उन्हें राजनीतिक चेतना भी दी। उन्होंने भूमि अधिग्रहण, वनाधिकार और स्थानीय स्वशासन जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाया।

उनकी इसी भूमिका के कारण वे जनजातीय समाज के बीच ‘डिशोम गुरु’ के नाम से पूजनीय हो गए। कई बार संसद सदस्य और तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे सोरेन की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वे संसद में भाषण देते, तो विपक्षी सांसद भी ध्यान से सुनते।

अस्पताल में अंतिम क्षण, बेटे हेमंत की आँखों में आँसू

पिछले कुछ महीनों से शिबू सोरेन की तबीयत नाजुक बनी हुई थी। उन्हें किडनी संबंधी समस्याएं थीं और वे वेंटिलेटर पर थे। हाल ही में उन्हें स्ट्रोक भी आया था। जब उनके निधन की खबर आई, तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन टूट गए।

पीएम मोदी भी गंगाराम अस्पताल पहुंचे और हेमंत सोरेन को गले लगाकर सांत्वना दी। इस भावनात्मक दृश्य की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। हेमंत ने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:

“डिशोम गुरुजी नहीं रहे... मैं शून्य हो गया हूँ।”

राष्ट्रीय शोक और राजकीय सम्मान की घोषणा

झारखंड सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। इस दौरान सभी सरकारी दफ्तरों में झंडा आधा झुका रहेगा और कोई सरकारी उत्सव नहीं मनाया जाएगा। शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार 4 अगस्त 2025 को नेमरा गांव में राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा:

“शिबू सोरेन जी एक साहसी नेता थे जिन्होंने आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए जीवन समर्पित कर दिया। उनके योगदान को देश कभी नहीं भूलेगा।”

राजनीतिक गलियारों से लेकर जनता तक शोक की लहर

शिबू सोरेन के निधन पर न सिर्फ झारखंड बल्कि बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासी संगठनों ने शोक व्यक्त किया।
लालू यादव, नीतीश कुमार, अमित शाह, ममता बनर्जी और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी ट्वीट कर संवेदनाएं प्रकट कीं।

एक प्रेरणा: संघर्ष, प्रतिबद्धता और सेवा का प्रतीक

शिबू सोरेन की कहानी भारतीय राजनीति में उन नेताओं की याद दिलाती है, जिन्होंने ज़मीन से जुड़कर राजनीति की। उनके पास कोई बड़ी डिग्री नहीं थी, लेकिन उन्होंने जो समझ और समर्पण दिखाया, वह कई विश्वविद्यालयों में नहीं सिखाया जा सकता।

उनकी संपत्ति भले ही मामूली रही हो (करीब ₹7 करोड़ की घोषणा 2019 चुनावी हलफनामे में की थी), लेकिन उनकी राजनीतिक और सामाजिक विरासत अमूल्य है।

निष्कर्ष: ‘डिशोम गुरु’ की विरासत अमर रहेगी

शिबू सोरेन का निधन भारतीय राजनीति और आदिवासी समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। वे भले ही अब हमारे बीच न हों, लेकिन उनका संघर्ष, उनका आदर्श और उनका नाम—झारखंड की मिट्टी में हमेशा जीवित रहेगा।

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