

गुरुग्राम, 15 दिसंबर 2025: वहनी स्कॉलरशिप ट्रस्ट ने गुरुग्राम में प्रदर्शित किया वृत्तचित्र ‘राइट टू ड्रीम’। इस अवसर पर शिक्षाप्रदाता, नीतिनिर्माता, जनस्वास्थ्य के अग्रणी और समाजसेवी एकजुट हुए और उन्होंने देश में उच्च शिक्षा तक पहुंच, समानता और आकांक्षा के बारे में विचार-विमर्श किया।
वृत्तचित्र में वहनी द्वारा किए गए कार्यों को दर्शाया गया है जिनमें उन्होंने प्रथम-पीढ़ी के शिक्षार्थियों और वंचित वर्गों से आने वाले विद्यार्थियों की मदद की है। इसमें यह भी दिखाया गया कि कैसे वित्तीय सहायता, संरक्षण और निरंतर संस्थागत सहयोग से उन कमियों को दूर कर के शिक्षा की राह बनाई जा सकती है, जो कमियां अक्सर ढांचागत होती हैं। एक छात्र की कहानी के ज़रिए यह फिल्म उच्च शिक्षा को महज़ एक समापन बिंदु के तौर पर नहीं, बल्कि स्कूलिंग, नीतिगत चयन और सामाजिक संदर्भ से प्रभावित एक निरंतर विस्तार के तौर पर दिखाती है।
वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग के बाद एक पैनल चर्चा हुई जिसमें शामिल थेः- पद्म श्री वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र एस. चौहान, पूर्व चेयरमैन, यूजीसी और एनएएसी; सेक्रेटरी-रोड्स इंडिया; सदस्य-इनलैक्स और फेलिक्स सिलेक्शन कमिटीज़, नई दिल्ली; सुश्री रीवा मिश्रा, संस्थापक व चेयरपर्सन, वहनी स्कॉलरशिप ट्रस्ट; श्री अनीश गवांडे, माननीय राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी; और डॉ. आयशा चौधरी, इंडिया डायरेक्टर, विमेनलिफ्ट हैल्थ। इस पैनल चर्चा का संचालन किया इनलैक्स स्कॉलर और ईटीआई की सीईओ डॉ. सुकृति चौहान ने।
इस चर्चा के दौरान डॉ. वीरेंद्र एस. चौहान ने कहा कि 60 और 70 के दशक में शिक्षा तक पहुंच पाना ही एक बड़ी चुनौती थी, और इतने सालों बाद भी, तरक्की के बावजूद, ’’स्कॉलरशिप बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धी हैं और आसानी से नहीं मिल पाती हैं,’’ वहनी के काम की तारीफ करते हुए, उन्होंने कहा कि असल में बड़े स्तर पर काम करने के लिए ’’एक वहनी नहीं, बल्कि सौ वहनियों की ज़रूरत होगी।’’
वहनी के दस वर्षों के सफर पर बात करते हुए सुश्री रीवा मिश्रा ने कहा, ’’शिक्षा और स्वास्थ्य तक पहुंच एक समान जीवन के बुनियादी सिद्धांत हैं,’’ उन्होंने इस विरोधाभास पर प्रकाश डाला कि प्रौद्योगिकी में प्रगति के बावजूद इसका सर्वोत्तम उपयोग कर पाने में अभी भी बहुत कमियां हैं। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे उद्देश्य को कार्य के साथ जोड़ें, और वो परिवर्तन बनें जो वे दुनिया में देखना चाहते हैं।
श्री अनीश गवांडे ने ज़ोर देकर कहा कि ’’समानता और पहुंच गहरे राजनीतिक मुद्दे हैं,’’ उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य और टेक्नोलॉजी को अभिजात संस्थानों से आगे बढ़ाने और व्यापक पहुंच प्रभाव डालने की अपील की। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मेरिट और पहुंच के बीच के संकट को सही मायने में दूर करने के लिए सरकार और निजी संस्थाओं को अहम भूमिका निभानी होगी।
डॉ. आयशा चौधरी ने पीएचडी एडमिशन के अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए महिलाओं के लिए लीडरशिप गैप पर रोशनी डाली, जो चयन समितियों के उनके बारे में ‘फर्स्ट इंप्रेशन’ से आता है। उन्होंने कहा कि नीतियां ज़रूरी हैं, लेकिन ’’सिस्टम को लीडर बनाते हैं,’’ और उन्होंने मेंटरशिप तथा संस्थागत हमदर्दी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
चर्चा में इस बात पर गौर किया गया कि अकादमिक और फैसले लेने की जगहों पर प्रतिनिधित्व सीमित क्यों है, तथा स्कॉलरशिप मॉडल, नीतिगत इरादा और इंस्टीट्यूशनल प्रैक्टिस को मिलकर ऐसे रास्ते किस प्रकार बनाने चाहिए जो न सिर्फ सुगम हों, बल्कि सस्टेनेबल और सम्मानजनक भी हों।
बातचीत में इस बात पर बल दिया गया कि उच्च शिक्षा तक पहुंच को नीति, संस्थागत अभिप्राय, नेतृत्व और लगातार समर्थन से बने एक अबाध क्रम के तौर पर देखा जाना चाहिए। जैसा कि पैनलिस्टों ने कहा, बड़े पैमाने पर अवसर बढ़ाने के लिए पारदर्शी व्यवस्था, सबको साथ लेकर चलने वाला नेतृत्व और साझी ज़िम्मेदारी की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उम्मीदों को इज्ज़त और संभावना के साथ पूरा किया जाए।
वहनी स्कॉलरशिप ट्रस्ट, उच्च शिक्षा की अकादमिक, सामाजिक और भावनात्मक वास्तविकताओं में विद्यार्थियों को वित्तीय मदद के अलावा सहयोग करके शिक्षा व्यवस्था में ढांचागत कमियों को दूर करने के अपने मिशन को जारी रखे हुए है।