कैलाश पर्वत भूक्षेत्र बनेगा विश्व धरोहर, यूनेस्को हुआ राजी! अद्यभुत है यह जगह

कैलाश-पर्वत-भूक्षेत्र-बनेगा-विश्व-धरोहर,-यूनेस्को-हुआ-राजी!-अद्यभुत-है-यह-जगह,
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कैलाश पर्वत भूक्षेत्र बनेगा विश्व धरोहर, यूनेस्को हुआ राजी! अद्यभुत है यह जगह

Ashish Urmaliya | The CEO Magazine

हिन्दुओं की आस्था के केंद्र पवित्र कैलाश पर्वत को संरक्षण दिलाने की दिशा में भारत ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। 'संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने कैलाश पर्वत को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने पर अपनी सहमति दे दी है और इसे अपनी अंतरिम सूची में शामिल कर लिया है। विश्व धरोहर के लिए जो प्रस्ताव तैयार किया गया है, उसमें इस अंतर्राष्टीय महत्व वाले इस क्षेत्र को प्राकृतिक के साथ सांस्कृतिक (मिश्रित) श्रेणी की संरक्षित धरोहर का दर्जा मिलेगा।

वर्तमान में कैलाश पर्वत का भू-क्षेत्र तीन देशों की धरोहर है, भारत, चीन, नेपाल। कैलाश को विश्व धरोहर बनाने का प्रस्ताव चीन और नेपाल पहले ही यूनेस्को भेज चुके हैं। और अब भारत ने भी अपने हिस्से के 7120 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को संरक्षित कराने के लिए यूनेस्को से मजूरी प्राप्त कर ली है। जानकारों के मुताबिक, अगर किसी क्षेत्र को यूनेस्को द्वारा अंतरिम लिस्ट में शामिल कर लिए जाता है, तो नियमानुसार उस जगह पर एक साल तक विभिन्न स्तर पर काम करना होता है। इसके बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार कर यूनेस्को के समक्ष अंतिम प्रस्ताव भेजा जाता है, फिर निर्णायक प्रक्रिया होती है।

कैलास यात्रा का अधिकांश क्षेत्र भारत में-

कैलास यात्रा का सबसे अधिक लगभग 1433 किलोमीटर का हिस्सा भारत में है। जिसमें 1306 किलोमीटर की यात्रा वाहन से की जाती है और 127 किलोमीटर की यात्रा पैदल। यात्रा पूरी करने में 14 दिन लगते हैं। वहीं चीन के हिस्से में 464 किलोमीटर की यात्रा है, जिसमें 411 किमी की यात्रा वाहन के जरिये की जाती है और 53 किमी पैदल। इस क्षेत्र की यात्रा करने में 12 दिन का समय लगता है।

अब यात्रा का अनुभव और भी बेहतर हो जायेगा-

तीनो देशों के साझा प्रयासों से कैलास भूक्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया अपने अंतिम पड़ाव पर है। विश्व धरोहर का दर्जा मिलते ही कैलाश के समूचे भूक्षेत्र का विकास होगा और मानसरोवर की यात्रा बेहतर हो जाएगी।

कैलास पर्वत के बारे में जानते हैं???

हिन्दू धर्म में कैलाश मानसरोवर की यात्रा का एक अलग ही महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, यह भगवान शिव का निवास स्थल है। इसके साथ ही इसे दुनिया का एक अद्यभुत पर्वत भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि, जो एक बार कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर लेता है, उसके लिए मोक्ष के दरवाजे खुल जाते हैं।इसीलिए हर साल हजारों श्रद्धालु यहां की यात्रा करते हैं। यात्रा के बाद सभी श्रद्धालु दूर से ही कैलाश पर्वत के चरण स्पर्श करते हैं।

बता दें, यह पर्वत श्रद्धालुओं ही बस का नहीं, बल्कि दुनियाभर के पर्वतारोहियों का भी चहेता स्थान है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि, आज तक कोई भी पर्वतारोही इस पर्वत की चढ़ाई पूरी नहीं कर पाया है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6638 मीटर है, जो दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत माउंट एवरेस्ट से 2210 मीटर कम है। माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई अब तक लगभग 7 हजार लोग पूरी कर चुके हैं। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी माउंट एवरेस्ट से काम ऊंचाई वाले कैलाश की चढ़ाई आज तक कोई पूरी नहीं कर पाया।

अनगिनत कोशिशें नाकाम:

कैलाश पर्वत पर दुनियाभर के वैज्ञानिक रिसर्च कर चुके हैं और कुछ तो आज भी लगे हुए हैं। इन्हीं रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों में से एक वैज्ञानिक ह्यूरतालीज ने कैलास पर्वत की चढ़ाई को असंभव बताया है। सभी वैज्ञानिकों के साथ ही कई पर्वतारोही भी दावा कर चुके हैं कि, कैलास पर्वत पर चढ़ना असंभव है।

एक रूसी पर्वतारोही सरगे सिस्टियाकोव ने बताया कि, जब वह पर्वत के बिलकुल पास पहुंचे तो उनका दिल बहुत ही तेजी से धड़कने लगा। उन्होंने कहा, " मैं बिलकुल उस पर्वत के सामने था, जिसपर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया। लेकिन अचानक से मुझे कमजोरी महसूस होने लगी और मेरा मन जोर-जोर से चीखने लगा कि, अब तुम्हें एक पल भी यहां नहीं रुकना चाहिए। उसके बाद जैसे ही हम नीचे आते गए मन हल्का होता गया। "

क्या आप जानते हैं? कैलाश पर्वत चढ़ने की आखिरी नाकाम कोशिश लगभग 18 साल पहले 2001 में की गई थी। जब चीन ने स्पेन की एक एक्सपर्ट टीम को चढ़ाई की अनुमति दी थी। दरअसल चीन, भारत और नेपाल ने कैलास पर्वत की चढ़ाई को प्रतिबंधित कर रखा है क्योंकि, इसकी चढ़ाई करने की कोशिश करने की कोशिश करने वाले कई पर्वतारोही अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके साथ ही इस प्रतिबंध का एक और कारण है, दुनियाभर के लोगों का मानना है कि, यह पर्वत एक पवित्र स्थल है। इसलिए इस पर किसी को भी चढ़ाई नहीं करने देना चाहिए। तब से यह क्षेत्र पर्वतारोहियों के लिए प्रतिबंधित है।

कैलाश पर्वत दुनियाभर में प्रसिद्द है, क्यों?

दुनिया में कैलाश पर्वत का वर्चस्व इसकी ऊंचाई की वजह से नहीं बल्कि इसके विशेष आकर की वजह से है। बता दें, कैलाश पर्वत का अकार चौमुखी दिशा बताने वाले कम्पास की तरह है। यह धरती का केंद्र भी माना जाता है। कुछ सालों पहले, रूसी वैज्ञानिकों की एक स्टडी सामने आई थी, जिसमें अनुमानित रूप से कहा गया था कि, कैलास एक मानवनिर्मित पिरामिड हो सकता है। जिसका निर्माण किसी दैवीय शक्ति वाले व्यक्ति ने किया है।

कैलाश को पृथ्वी का केंद्र मानने की कई साड़ी वजहें सामने आती हैं, जैसे- कैलाश पर्वत पृथ्वी का भोगौलिक केंद्र है, कैलास पर आसमान और धरती का मिलन होता है, यह चरों दिशाओं का केंद्र बिंदु है और आखिरी कैलास ईश्वर और उनकी बनाई सृष्टि के बीच संवाद का केंद्र बिंदु है। एक मान्यता यह भी है कि, जब कैलाश पर्वत की बर्फ पिघलती है तब समूचे क्षेत्र में डमरू की आवाज सुनाई देती है। उस जगह पर साक्षात शिव मौजूद हैं।

और क्या है?

कैलास का इतना महत्त्व सिर्फ हिन्दू धर्म में ही बस नहीं है, कई अन्य धर्मों में भी इसके महत्व का विभिन्न तरीके से वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि, कैलास पर्वत एक तरफ स्फटिक, दूसरी तरफ माणिक, तीसरी तरफ सोने और चौथी तरफ नीलम से बना हुआ है। पर्वत के दक्षिण में सूर्य जैसी संरचना वाला ब्रह्म ताल है, जिसका दर्शन दुनियाभर के श्रद्धालु करते हैं। वहीं दूसरी ओर ब्रह्म ताल से ठीक एक किलोमीटर दूर, एक राक्षस ताल है जहां कोई भी नहीं जाता।

ब्रह्म ताल का पानी मीठा है और राक्षस ताल का पानी खारा। ब्रह्म ताल को सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है, वहीं दूसरी ओर राक्षस ताल को नकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है।

ऊपर से देखने पर कैलास पर्वत 6 पर्वत श्रंखलाओं के बीच कमल के फूल जैसा मालूम पड़ता है।

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