
भारत की "क्वीन ऑफ़ ट्रैक एंड फील्ड" पी.टी.उषा देश की महानतम एथलीटों में से एक हैं। वह लंबे स्ट्राइड के साथ-साथ एक बेहतरीन स्प्रिंटर भी थी। 1980 के दशक में वह एशियाई ट्रैक-एंड-फ़ील्ड प्रतियोगिताओं में छाई रहीं। जहाँ उन्होंने कुल 23 पदक जीते जिसमें 14 स्वर्ण पदक थे।
पी.टी.उषा का प्रदर्शन इतना अच्छा होता की जहाँ भी वह खेलने जाती वहाँ लोगों को अपने खेल का कायल कर लेतीं। पी.टी.उषा के खेल-कूद का सफर 1979 से शुरू हुआ और देखते ही देखते भारत के सर्वश्रेठ खिलाडियों में उनकी गिनती होने लगी। उषा को "पय्योली एक्स्प्रेस" और "सुनहरी कन्या" के नामों से भी जाना जाता है
केरल के कोज़िकोड जिले के पय्योली में 27 जून, 1964 में उषा का जन्म हुआ। उषा के पिता का नाम इ.पी.एम.पैतल और माँ का नाम टी.वी.लक्ष्मी है।
उषा बालपन में बड़ा बीमार रहा करती थी लेकिन उन्होंने प्राथमिक स्कूली दिनों में ही अपनी सेहत पर बड़ा काम किया और अपनी सेहत सुधर ली।
जब उषा चौथी कक्षा में थीं तब स्कूल की एक दौड में उन्होंने स्कूल के चैम्पियन को हरा दिया जो की उषा से 3 साल सीनियर थे।
कुछ साल बाद 1976 में केरल सरकार ने महिलाओं के लिए एक खेल विद्यालय खोला जहाँ उषा को जिले का प्रतिनिधि चुना गया। उषा को वहाँ ओ.एम.नाम्बिअर बतौर कोच मिले और 1979 में उषा देश भर में मशहूर हो गई जब उन्होंने नेशनल सस्पोर्ट्स गेम्स में व्यक्तिगत चैम्पियनशिप जीती। 1980 के मास्को ओलम्पिक में उनकी शुरुआत ज़्यादा अच्छी नहीं थी लेकिन 1982 में नई दिल्ली एशियाई खेलों में उन्हें 100मी. और 200मी. दौड में रजत पदक मिला और फिर एक साल बाद कुवैत में एशियाई ट्रैक और फ़ील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई रिकॉर्ड के साथ 400मी. में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता।
1983 से 1989 में उन्होंने 13 स्वर्ण पदक अपने नाम किए। 1984 में हुए लॉस एंजेलेस ओलम्पिक की 400मी. की बाधा दौड में वह प्रथम आई थी लेकिन फाइनल्स में वह पीछे रह गई। 400 मी. की बाधा दौड में सेमी फ़ाइनल में जीत कर वह किसी भी ओलंपिक्स में फाइनल्स में जाने वाली पहली महिला और पांचवी भारतीय थीं।
फिर सियोल में हुए 10वें एशियाई खेलो में उन्होंने 4 स्वर्ण और 1 रजत पदक जीता। 101 अंतराष्ट्रीय पदक जीतने वाली उषा अभी दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद का कार्य भार संभल रहीं हैं। उषा को 1985 में पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
1990 में बीजिंग में 3 रजत पदक जितने के बाद उषा ने खेलो से सन्यास ले लिया और 1991 में उन्होंने वी.श्रीनिवासन से शादी कर ली जिसके बाद उनका एक बेटा हुआ।
1998 में सबको हैरान करते हुए उषा ने 34 साल की उम्र में एथलेटिक्स में वापसी कर ली और उन्होंने जापान में आयोजित "एशियन ट्रैक फेडरेशन मीट" में हिस्सा लिया और 200मी. और 400मी. की दौड में ब्रोंज मैडल जीते।
उषा ने 200मी. की दौड में अपना ही टाइमिंग रिकॉर्ड तोड़ दिया और एक नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 34 साल की उम्र में यह रिकॉर्ड बना कर एक बात साबित की, कि प्रतिभा की कोई उम्र नहीं होती बस मन में विश्वास और दृढ़ निश्चय होना चाहिए। फिर 2000 में उन्होंने एथलेटिक्स से सन्यास लिया और वापस नहीं लोटी।
1977 में कोट्टयम में राज्य एथलीट बैठक में उषा ने एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया तो 1980 में उन्होंने मास्को ओलम्पिक में हिस्सा लिया उसके बाद पहली महिला एथलीट बानी जिन्होंने ओलम्पिक फाइनल्स में प्रवेश किया।
16 साल में मास्को ओलम्पिक में हिस्सा लेने के बाद 1980 में सबसे काम उम्र की भारतीय एथलीट बन गई। उषा ने उसके बाद स्वर और रजत पदक जीते और देश का नाम रोशन किया।
1984 में उन्हें खेल की तरफ अपनी लगन और मेहनत के लिए "अर्जुन अवार्ड" से सम्मानित किया गया उसके बाद 1985 में उन्हें पद्मश्री और फिर "स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ़ दी सेंचुरी" और "स्पोर्ट्स वीमेन ऑफ़ दी मिलेनियम" का ख़िताब मिला।
1985 में हुए जकार्ता "एशियान एथलीट मीट" में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए उन्हें "ग्रेटेस्ट वीमेन एथलीट" का पुरस्कार मिला। 1985 और 1986 में बेस्ट एथलीट के लिए उन्हें "वर्ल्ड ट्रॉफी" से सम्मानित किया गया। और फिर एक के बाद एक पुरस्कार वह अपने नाम करती गई।
उषा आज केरल में एथलीट स्कूल चलाती हैं, जहाँ वह नई पीढ़ी के उभरते एथलीट को ट्रेनिंग दिया करती हैं।
उनका साथ देने के लिए वहाँ टिंट लुक्का भी हैं जो लंदन 2012 के ओलम्पिक में विमेंस सेमीफइनल 800मी. को दौड को क़्वालिफय कर चुकी है।
उषा की प्रतिभा और काबिलीयत का सम्मान पूरा देश करता है। उनकी मेहनत और हौसले ने बहुत से लोगों को प्रेरित किया है।
उषा की लगन, जज़्बे और प्रयास ने देश को छोटे-बड़े शहर से कई पी.टी.उषा दी हैं।