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एक ऐसा फ़कीर बाबा जिसके सामने देश के कई प्रधानमंत्री सर झुका चुके थे

Pramod

Ashish Urmaliya || Pratinidhi Manthan

भारत ऋषि-मुनियों का देश है, यहां संतों का बहुत पुराना और बड़ा इतिहास है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कलयुग चल रहा है, यहां असली और नकली संत में फर्क कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। हमने देखा बीते कुछ वर्षों में संत समाज को बदनाम करने वाले कुछ असामाजिक संतों का भांडा फोड़ हुआ है, सच्चाई सामने आने से पहले ऐसे संतों के चरणों में भी देश की जानी मानी दिग्गज हस्तियां अपना सर झुका चुकी हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे दिव्य संत के बारे में बताने जा रहे हैं जो एकदम फ़कीर थे और उनके सामने देश की देश विदेश की दिग्गज हस्तियां तो सर झुकाती ही थी इसके साथ ही कई प्रधानमंत्री उनका आशीर्वाद ले चुके थे।

उस दिव्य संत को लोग 'देवरहा बाबा' के नाम से जानते थे। सहज, सरल और शांत प्रवृति के बाबा के पास ज्ञान का अकूत भंडार था। उनसे मिलने और दर्शन करने वालों में देश-दुनिया के बड़े-बड़े लोगों के नाम शामिल हैं।

इनको देवरहा बाबा क्यों कहा जाता था?

बाबा के नाम के पीछे दो तरह की कहानियां सामने आती हैं। कुछ लोग मानते हैं कि उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में रहने के कारण इनका नाम देवरहा पड़ा। और कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, बाबा दैवीय शक्तियों से संपन्न थे, इसलिए भक्तों ने उन्हें देवरहा बाबा का नाम दे दिया। ध्यान, योग, आयु और आशीर्वाद, वरदान देने की क्षमता के कारण लोग उन्हें सिद्ध संत मानते थे। बाबा के अनुयायियों की माने तो बाबा इस धरती पर 250 से 500 वर्ष तक जीवित रहे। बाबा कितने वर्ष तक यहां रहे इसका हमारे पास तो कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है लेकिन यह बात पता है कि 19 जून 1990 के दिन बाबा ने अपना देह त्याग किया था। 

चमत्कारी थे बाबा-

देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्तियों के बारे में तरह-तरह की बातें प्रचलन में हैं। ऐसा कहा जाता है कि बाबा के पास जल पर विचरण करने तक की शक्ति थी। उन्हें प्लविनी सिद्धि प्राप्त थी इसलिए वह कहीं भी पानी के ऊपर आसानी से चल फिर सकते थे। अनुयायियों के मुताबिक, किसी भी गंतव्य पर पहुंचने के लिए उन्होंने कभी सवारी नहीं की। बाबा हर साल माघ मेले के समय प्रयाग जाते थे। यमुना किनारे वृंदावन में वह आधा घंटे तक पानी में, बिना सांस लिए रह लेते थे. हालांकि देवरहा बाबा ने खुद अपनी उम्र, तप और सिद्धियों के बारे में कभी कोई दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की ऐसी भी भीड़ रही, जो उनमें चमत्कार तलाशती थी और उन्हें दिख भी जाते थे। ये सब बातें उन्हीं सब देखने वालो की जुबानी हैं।

भारत में इमरजेंसी लगने के बाद पुनः चुनाव हुए थे तब इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं. ऐसा कहा जाता है कि उस दौरान वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गई थीं। तब बाबा ने उन्हें हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया था। ऐसी प्रबल मान्यता है कि वहां से लौटने के बाद ही इंदिरा ने कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा ही तय किया था। फिर इसी चिन्ह पर साल 1980 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने प्रचंड, ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त किया था और वे फिर वापस से देश की प्रधानमंत्री बनी थीं। मचान पर बैठे-बैठे ही बाबा श्रद्धालुओं को धन्य करते थे। कई लोगों का ऐसा दावा है कि भक्तों की बात उनके होंठों तक आने से पहले ही बाबा उनके मन की बात जान लेते थे। यही बाबा की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण था।

बाबा दिखते ही दिव्य थे, मौसम कोई भी हो बाबा निर्वस्त्र होते थे उनके शरीर पर सिर्फ मृगछाल होता था जो वह नीचे लपेटते थे। साल 1911 में बाबा के मईल आश्रम पर दर्शन के लिए जार्ज पंचम भी पहुंचे थे.  देश के महान विभूति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मदनमोहन मालवीय, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मुलायम सिंह यादव, वीरबहादुर सिंह, विंदेश्वरी दुबे, जगन्नाथ मिश्र आदि नेताओं सहित प्रशासनिक अधिकारी बाबा का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम पहुंचते थे।

जब 1911 में जॉर्ज पंचम भारत आए, तो देवरिया जिले के मइल गांव में बाबा के आश्रम पहुंचे। हालांकि उनके बाबा के बीच क्या बात हुई, उनके शिष्यों द्वारा यह बात कभी जगजाहिर नहीं की गई। चार खंभों पर टिका मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन कर लिया करते थे। साल के आठ महीने वह मइल गांव में ही बिताते थे।

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