
यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता; तो विज्ञान के जो विशेष आविष्कार किसी भी देश में हुए हैं, वह सभी आविष्कार भारतीय भाषा में ही होते तथा भारतीय भाषा में ही उन के अनुसंधान पत्र लिखे जाते। ऐटम, कंप्यूटर आदि की आविष्कार भी भारत में तथा भारतीय भाषा से होता। क्योंकि, एटम (परमाणु) के अस्तित्व का आविष्कार तो ‘महर्षि कणाद’ द्वारा भारत में कई हजार वर्ष पहले हो चुका है तथा कंप्यूटर की भाषा का आधार भी संस्कृत है। इस प्रकार से, भारतीय भाषा पूरे विश्व में लोगों की एक आवश्यकता बना कर हरमन प्यारी हो जानी थी; जैसा कि आज अंग्रेज़ी हरमन प्यारी हो चुकी है। लोगों को भारतीय भाषा में बात करके गर्व महसूस करना था, जिस प्रकार वह आज अंग्रेज़ी में बात करके गर्व महसूस करते हैं तथा अंग्रेज़ी बोल कर ही समाज में भी प्रतिष्ठित अनुभव करते हैं।
संस्कृत भाषा के 52 अक्षर हैं तथा 13 मात्रा हैं। व्याकरण व उच्चारण शुद्ध व पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर है। जब कि, अंग्रेज़ी के केवल 26 अक्षर हैं, जिस में से 5 तो मात्राएं (vowels) ही हैं; जिसका व्याकरण व उच्चारण बिल्कुल तर्कहीन व असंगत है। फिर भी इंग्लैंड का विश्व पर शासन होने के कारण, अंग्रेज़ी ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ बन कर विश्व में लागू हो गई। यदि भारत ने विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो संस्कृत जैसी भारतीय भाषा ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’, बन कर विश्व में लागू हो चुकी होती।
इंग्लैंड का विश्व पर साम्राज्य स्थापित होने कारण, केवल भारत में ही नहीं, विश्व की अधिकत्तर दुकानों व कंपनियों के नाम तथा बोर्ड अंग्रेज़ी में होते हैं, उन की अपनी राष्ट्र-भाषा में नहीं होते। यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो भारत सहित विश्व में ही दुकानों व कंपनियों के नाम तथा बोर्ड अंग्रेजी में न हो कर, भारतीय भाषा में होते। पूरे विश्व की सभी वस्तुओं पर ‘भारतीय’ भाषा लिखी होने कारण, भारतीय भाषा पढ़ना: प्रत्येक व्यक्ति की एक आवश्यकता एवं मजबूरी बन जाती।
इंग्लैंड का विश्व पर साम्राज्य स्थापित होने कारण, अंग्रेज़ी ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ होने के कारण पूरे विश्व में प्रत्येक वस्तु की पैकिंग पर अंग्रेज़ी लिखनी आवश्यक है। यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो विश्व की सभी वस्तुओं की पैकिंग पर भारतीय भाषा लिखना आवश्यकता बन जाती।
आधुनिक युग में विश्व भर में अंग्रेज़ी के अनुसार ‘हाए-हैलो-बाय–टाटा’ कहा जाता है। यदि भारत ने विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो भारतीय सभ्यता के अनुसार ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’, ‘सति श्री अकाल’ आदि कहा जाना था। आजकल, विश्व में जीव-जंतु तथा वनस्पति की जातियों, सितारे, ग्रह, आकाश गंगा, रोग आदि अन्य सभी वस्तुओं के नामकरण भी अंग्रेज़ी में होते हैं जैसे: ज़ेबरा, एलर्जी, प्लूटो, बस, कार, ग्लास, प्लेट, रेड सी, ब्लैक सी, एंटलाटिक ओशन आदि। यदि भारत ने विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो इन सभी के नामकरण भी ‘भारतीय’ भाषा में होते। आजकल, हर जगह भारतीय भाषा की अत्यंत विद्वता पूर्ण उद्धरण (कोटेशन) छोड़ कर, अंग्रेज़ी विद्वानों द्वारा अंग्रेज़ी में लिखी उद्धरण का प्रयोग किया जाता है। यदि भारत ने विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो अंग्रेज़ी की जगह भारतीय भाषा में से, भारतीय विद्वानों द्वारा लिखी उद्धरणों (कोटेशन) का प्रयोग होता। जिस प्रकार अंग्रेज़ी के बिना आज पूरे विश्व में व्यापार करना अत्यंत कठिन है, यदि भारत ने विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो भारतीय भाषा के बिना भी व्यापार करना अत्यंत कठिन हो गया होता।
आजकल पूरे विश्व में अंग्रेज़ी के अंकों/गिनती (1,2,3)का प्रयोग किया जाता है। चीन, जापान, अरब आदि किसी भी देश की भाषा के अंकों का प्रयोग नहीं किया जाता। यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो भारतीय भाषा के अंकों/गिनती (१,२,३) का प्रयोग होता।
आजकल भारत सहित पूरे विश्व में अपनी संख्या-पद्धति के शब्दों की जगह बिलियन, ट्रिलियन शब्दों का गिनती के लिए प्रयोग होने लग गया है। यदि भारत ने विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो भारतीय भाषा के अंक/गिनती के ढंग लाख-करोड़, जो कि अत्यंत वैज्ञानिक तथा सर्वतः समान रहने वाले हैं; वह ही विश्व भर में प्रचलित होते। अंग्रेज़ी का मिलियन, बिलियन, ट्रिलियन प्रचलित न होता। पूर्ण रूप से वैज्ञानिक होने के कारण, भारत के अरब, खरब, नील, पद्म, शंख, महाशंख आदि लिखते समय शून्य (0)की गिनती एक सामान ही रहती है। जैसे: लाख में पाँच शून्य (1,00,000),करोड़ में सात शून्य (1,00,00,000),अरब में नौ शून्य (1,00,00,00,000),खरब में ग्यारह शून्य (1,00,00,00,00,000), नील में तेरह शून्य (1,00,00,00,00,00,000), पद्म में पंद्रह शून्य (1,00,00,00,00,00,00,000),शंख में सत्रह शून्य (1,00,00,00,00,00,00,00,000),महाशंख मेंउन्नीसशून्य(1,00,00,00,00,00,00,00,00,000)होते हैं। अंग्रेजी में तो लाख, करोड़, अरब, खरब, नील, पद्म, शंख, महाशंख जैसे कोई बढ़िया शब्द ही नहीं हैं। जिस कारण, उन्हें लाख को ‘सौ हजार’ लिखना पड़ता है, करोड़ को ‘दस मिलियन’ लिखना पड़ता है आदि।
अंग्रेजी भाषाई लोगों को यह ही नहीं पता कि असली बिलियन, ट्रिलियन कौन सा है? अमरीका का, या इंग्लैंड का? क्योंकि, इंग्लैंड तथा अमरीका की एक ही भाषा तथा नस्ल के होते हुए भी, इन के बिलियन, ट्रिलियन में आपस में ही बहुत बड़ा अंतर है। उदाहरणत: इंग्लैंड के बिलियन में बारह शून्य (1,000,000,000,000)तथा ट्रिलियन में पंद्रह शून्य (1,000,000,000,000,000)होते हैं। जब कि, अमरीका के बिलियन में नौ शून्य (1,000,000,000) तथा ट्रिलियन में बारह शून्य (1,000,000,000,000)होते हैं। इंग्लैंड का विश्व पर साम्राज्य स्थापित होने के कारण इंग्लैंड, अमरीका वालों की अवैज्ञानिक संख्या पद्धति के बिलियन, ट्रिल्यन आदि शब्द विश्व भर में प्रचलित हो गए हैं। जब कि, भारतीय संख्या पद्धति व उस के शब्द: पूर्णतः वैज्ञानिक होते हुए भी प्रचलित नहीं हुए एवं भारत में भी लुप्त होते जा रहे हैं। क्योंकि, भारत के लोग भी, भारतीय शब्दों को छोड़ कर; विदेशियों की नकल करते हुए बिलियन, ट्रिल्यन आदि विदेशी, अवैज्ञानिक संख्या पद्धति वाले शब्दों का प्रयोग करने लग गए हैं।
वास्तव में, सम्राट तो आज भी इंग्लैंड, अमरीका वाले अंग्रेजी भाषाई लोग ही हैं। क्योंकि, विश्व की अर्थव्यवस्था, विज्ञान, सैनिक बल आदि पर उन का ही नियंत्रण है। भारत के खाकी अंग्रेज़ विद्वान (भारतीय मूल के, अंग्रेज़ी मानसिकता वाले ‘ब्राउन साहब’,जिनकी बात को समाज मान्यता देता है), वह आज भी अंग्रेज़ी की प्रोढ़ता कर के, उसे हर प्रकार से स्थापित करने व उस का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं। यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता, तो ब्राउन साहब ने भी भारतीय भाषा की प्रोड़ता करनी थी। क्योंकि, ब्राउन साहब देश-भक्त नहीं; यह तो सत्ता के अधीन हैं। यदि ब्राउन साहब देश-भक्त होते, तो यह ‘अंग्रेजी’ की जगह, भारतीय संस्कृति एवं भारतीय भाषाओं को अपनाते। भारतीय भाषाओं मे साहित्य रचना करते एवं उस का प्रचार करते।
कुछ पाठक सोचें गे: भारत की तो अनेक भाषाएं हैं, तो विश्व में लागू होने वाली कौन-सी भारतीय भाषा होनी चाहिए? इस का उत्तर यह है: “भारत के सम्राट/साम्राज्य की उस समय जो भी भारतीय भाषा होती, वही भाषा विश्व में लागू हो सकती थी। भारत की तरह इंग्लैंड में भी कई भाषाएं थी। परंतु, उन में से इंगलैंड की राष्ट्रीय भाषा ‘अंग्रेज़ी’ बन जाने के कारण, आज वही ‘अंग्रेज़ी’ भाषा विश्व में प्रचलित हो कर ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ बन गई है।
कुछ पाठक कहें गे “भारत द्वारा विश्व को गुलाम बनाए जाने से, भारतीय संस्कृति की निंदा हो जाती और भारत की बहुत बदनामी होती”। जिन के ऐसे विचार हैं, उन्हें यह कटू सत्य भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि बदनामी: शक्ति-विहीन की होती है, शक्तिशाली की नहीं होती। शक्तिशाली की यदि बदनामी हो भी जाए; तो भी उस पर बदनामी का कुप्रभाव कभी नहीं पड़ता। शक्ति एवं सत्ता प्राप्ति, कुकर्मों के बिना संभव नहीं। इस का प्रत्यक्ष प्रमाण सभी के समक्ष है: अमरीका कई देशों पर बम बरसा चुका है, कई देशों की लोकतांत्रिक ढंग से बनी, बढ़िया ढंग से चलती हुई सरकारों को पलट चुका है, विश्व के किसी न किसी देश में युद्ध करवाता ही रहता है। विश्व भर में, बहुत लोग अमरीका की बदनामी करते हैं। परन्तु, उस बदनामी का अमरीका पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता। अमरीका की बुराई करने वाले भी, आवश्यकता पड़ने पर सहायता के लिए, अमरीका के आगे ही हाथ फैलाते हैं।
कुछ लोग कहेंगे, “बुरे कर्मों का अंत सदैव बुरा ही होता है। अमरीका को भी किए पापों का दंड भविष्य में अवश्य मिलेगा।” किंतु प्रश्न यह है; भविष्य को देखा किस ने है? मैं तो आज की बात कर रहा हूँ। जो दंड, अपराध के तुरंत पश्चात न मिले, उस की प्रभावशीलता समाप्त हो जाती है। जब दंड देने में विलंब होता है, तो अपराध और भी अधिक प्रफुल्लित होता है। यदि अमरीका को दो सौ वर्षों के पश्चात कोई दंड मिल भी जाए, तो आज की पीढ़ी उस दंड को देखेगी ही नहीं। फिर ऐसा दंड, जो जनता के समक्ष प्रकट ही न हो, उस से साधारण लोगों को क्या लाभ? जब दंड से भय ही न फैले, तो न अपराध रुकते हैं, न अपराधी रुकते हैं।
अगले लोक में मिलने वाला दंड; पृथ्वी के लोगों के लिए अदृश्य होता है। इसी लिए, वह उस से भयभीत नहीं होते। यदि भविष्य, या परलोक में मिलने वाले दंड से ही, भय उत्पन्न होता; तो विश्व में न्यायालयों की, एवं दंड प्रणाली की आवश्यकता न होती। अमरीका को, या किसी भी अपराधी को अगले जन्म में, या भविष्य में दंड मिलेगा: यह बात धार्मिक ग्रंथों में चाहे जितनी भी सत्य कही गई हो! परंतु, व्यावहारिक दृष्टि से, यह केवल असहाय लोगों के मन को सांत्वना देने के लिए अतिअंत लाभकारी होती हैं।
अमरीका अपनी युवावस्था में, लाखों लोगों को मार कर, करोड़ों लोगों को उजाड़ चुका है। यदि प्रकृति के अनुसार वृद्ध हो कर, शक्तिविहीन हो कर; अमरीका स्वयं ही टूट जाए; तो इसे उस के पापों का फल नहीं कहा जा सकता। क्योंकि, अमरीका तो अपनी आयु भोग कर, वृद्ध हो कर, शक्तिहीन हुआ है एवं टूटा है; अपराधों के दंड कारण नहीं हुआ। प्रकृति के अटल नियम अनुसार: आयु भोग कर, एक समय के साथ, प्रत्येक देश व प्रत्येक व्यक्ति; पुनी-पापी, धर्मी-अधर्मी ने, शक्तिहीन होना ही होता है। चाहे वह अमरीका जैसा अपराधिक व कर्म करने वाला देश हो, या अत्यंत पर-उपकारी व शुभ कर्म करने वाला देश हो।
शक्तिशाली को आम तौर पर, दंड नहीं मिलता, पाप नहीं लगता। अमरीका के षड्यंत्रों कारण, पिछले कई वर्षों से, अनेक देशों के कई कार्य खराब हो गए हैं तथा कई देश ध्वस्त हो गए हैं; वह आने वाले समय में उन्नत हो कर वहाँ नहीं पहुँच पाएंगे, जहां वह अमरीका के षड्यंत्रों कारण ध्वस्त होने से पहले थे। किसी को दंड मिल जाने से, कोई खराब हुआ कार्य, वापिस ठीक नहीं हो जाता। जिस प्रकार, किसी का कत्ल हो जाने पर, कातिल को भले ही मृत्यु दंड भी दिया जाए; तब भी वह मृत प्राणी जीवित नहीं हो पाता, एवं उस के परिवार को जो कष्ट आ चुके होते हैं; उन का भी निवारण नहीं हो जाता।
इस पूरे लेख का तात्पर्य यह है: अपनी भाषा को प्रफुल्लित करने के लिए भारत को विश्व पर साम्राज्य स्थापित करना चाहिए था। यदि पहले नहीं किया, तो अब विश्व पर साम्राज्य स्थापित करने की सोच बना लेनी चाहिए। क्योंकि, जिस का विश्व पर साम्राज्य स्थापित होता है; उसी की भाषा प्रफुलित हो कर, ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ बन कर, अपने आप लागू हो जाती है एवं हरमन प्यारी हो जाती है।
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