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'एंटीबॉडी कॉकटेल दवा' आखिर है क्या? कोरोना के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है, एक्सपर्ट्स की राय

Ashish Urmaliya

कोरोना महामारी के बीच 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडी' या 'एंटीबॉडी कॉकटेल' दवा की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। बहुत से विशेषज्ञ इस दवा को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 'Game changer' मान रहे हैं। दिल्ली (एनसीआर), गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांट एंड रिजनरेटिव मेडिसिल के मुखिया डॉ. अरविंदर सोइन का कहना है कि भारत में कम कीमत पर मोनोक्नोलन एंटीबॉडी दवा का उत्पादन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 'गेम चेंजर' साबित हो सकता है। उन्होने कहा, "अगर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Antibody cocktail) दवा को कम कीमत में ज्यादा मात्रा में बनाया जाता है तो ये उच्च जोखिम श्रेणी में आने वाले बच्चों और बुजुर्गों के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है." ऐसा तभी संभव है जब इसका उत्पादन भारत में ही हो।

डॉ. अरविंदर सोइन ने बताया कि अमेरिका के FDA (Food and Drug Administration) ने हाल ही तीन इसी वर्ग की दवाओं को मंजूरी दी है। उन्होंने बताया कि पहली दवा कासिरिविमाब और इम्देवीमाब है जो 70% तक प्रभावी है। दूसरी दवा बाम्लानिविनाब और इतेसेविमाब है, ये भी 70% तक प्रभावी है। तीसरी दवा सोत्रोविमाव है जो कोरोना के खिलाफ जंग में 85% तक प्रभावी है।

इसके साथ ही आईसीएमआर के पूर्व डीजी डॉक्टर निर्मल के. गांगुली ने कहा कि "मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा काफी महंगी है, इसलिए इसे हर मरीज के लिए उपलब्ध कराना काफी मुश्किल कार्य है। इस दवा को सिर्फ गंभीर मरीज व उच्च जोखिम श्रेणी में शामिल लोगों को दिया जा सकता है।" डॉक्टर निर्मल भी इस दवा को प्रभावी मान रहे हैं।

बता दें, 'एंटीबॉडी कॉकटेल' या मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा तब चर्चा में आई थी जब पिछले साल यह दवा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को दी गई थी। इस दवा की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसको लेने से 70% मामलों में मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती। मरीज घर पर रह कर ही ठीक हो सकते हैं। हालांकि, आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research, New Delhi) के पूर्व महामारी वैज्ञानिक डॉ. रमन आर. गंगाखेड़कर इस दवा को लेकर पूरी तरह आश्वस्त दिखाई नहीं दिए। उन्होंने कहा कि "आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा कोविड-19 व उसके विभिन्न वैरिएंट्स के खिलाफ कितनी प्रभावी है।"

'एंटीबॉडी कॉकटेल' क्या है?

अगर आप पीला द्रव्य पीने के शौक़ीन होंगे तो यह बात और भी ज्यादा आसानी से समझ आ जाएगी। दरअसल, मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा दो दवाओं का मिश्रण होती है इसलिए इसे एंटीबॉडी कॉकटेल भी कहा जाता है। इसमें दो दवाओं कासिरिविमाब (Casirivimab) और इम्देवीमाब (Imdevimab) के 600-600 एमजी का डोज मिलाया जाता है जिसके नतीजतन मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा तैयार होती है। दो अन्य उपलब्ध मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवाओं को भी इसी तर्ज पर बनाया जाता है। समस्या ये है कि ये दवा काफी महंगी होती है। हाल ही गुजरात की दवा कंपनी जायडस कैडिला (zydus cadila) ने ZRC-3308 के नाम से एंटीबॉडी कॉकटेल दवा बनाई है और इसके ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी मांगी है। ट्रायल की मंजूरी मिलती है और यह दवा कारगर साबित होती है तो मौजूदा वक्त में हमारे लिए इससे बेहतर कुछ नहीं होगा।

इस कोरोना काल में आप यह तो जान ही चुके होंगे कि किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडी का होना बहुत जरूरी होता है। दरअसल, एंटीबॉडी प्रोटीन होते हैं जो किसी भी बीमारी से शरीर को बचाते हैं। एंटीबॉडी कॉकटेल दवा को किसी खास बीमारी से लड़ने के मकसद से लैब में तैयार किया जाता है। अब तक की सबसे सफल मानी जाने वाली किकासिरिविमाब और इम्देवीमाब दवाओं को स्विट्जरलैंड की फार्मा कंपनी रोशे 'Roche Pharma' ने बनाया है। इन दवाओं का मिक्सचर कोरोना के लिए जिम्मेदार सार्स-कोव-2 'SARS-CoV-2' के खिलाफ प्रोटीन बनाता है और शरीर में कोरोना वायरस को फैलने से रोकता है।

एंटीबॉडी कॉकटेल दवा अमेरिका ने बनाई है। इस दवा का इस्तेमाल दुनियाभर में होने के साथ-साथ हमारे देश में भी हो रहा है। गुरुग्राम का मेदांता अस्पताल, दिल्ली का फोर्टिस एस्कोर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट और अपोलो अस्पताल इसका उपयोग कर रहा है। भारत में इस दवा से एक व्यक्ति हाल ही ठीक भी हुआ है।

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