Delta Varient
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डेल्टा+ वेरिएंट कितना खतरनाक है? सबकुछ जानिए...

Ashish Urmaliya

भारतीय कोरोना वायरस शब्द को लेकर पिछले दिनों भयंकर विवाद हो गया था। क्योंकि वायरस की उत्पत्ति तो चीन से हुई है तो फिर उसके म्यूटेंट को भारतीय वायरस क्यों कहा जाए?

दरअसल, समस्या ये हुई कि जैसे ही चीन के कोरोना वायरस ने इटली जाकर नया रूप धारण कर लिया तो लोग उसे इटालियन वायरस कहने लगे। यही समस्या कई देशों के साथ हुई। ये देश WHO के पास पहुंचे और बोले, ये सब बर्दास्त नहीं किया जाएगा भैया। तो फिर WHO ने इस समस्या का समाधान निकाला अलग-अलग देशों के म्यूटेंट्स को अल्फ़ा, बीटा, गामा, डेल्टा जैसे नाम दे दिए. कोरोना का जो खतरनाक म्युटेंट भारत आकर तैयार हुआ उसे डेल्टा नाम दे दिया गया।

भारत में कोरोना की दूसरी लहर इसी डेल्टा वायरस की ही कारिस्तानी थी। इतनी तबाही का ज़िम्मेदार कोरोना का यही डेल्टा म्युटेंट ही था। लेकिन अब जो नया 'Delta Plus Variant' सामने आया है यह और भी ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के बताए अनुसार, डेल्टा प्लस वेरिएंट के केस दुनिया के 80 देशों में मिल चुके हैं। इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, भारत, जापान, रूस, स्विट्जरलैंड, पुर्तगाल, नेपाल और चीन जैसे देश भी शामिल हैं।

वेरिएंट ऑफ कंसर्न घोषित कर दिया गया है...

महाराष्ट्र, केरल, मप्र में ‘डेल्टा प्लस’ वेरिएंट के कुछ केस मिलने के बाद ही सरकार ने इसे वेरिएंट ऑफ कंसर्न (Variant of concern) घोषित कर दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जानकारी दी गई है कि भारतीय सार्स कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) ने सूचित किया था कि वर्तमान में डेल्टा प्लस वेरिएंट, 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' है, इसके प्रसार की क्षमता बहुत ज्यादा तेज़ है। फेफड़े में जो कोशिकाएं होती हैं उनके रेसेप्टर में यह बहुत मजबूती के साथ चिपकता है। इसके साथ ही इस वेरिएंट में 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ की प्रतिक्रिया में संभावित कमी करने जैसी विशेषताएं हैं।

सबसे पहले मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में मिला था...

डेल्टा वेरिएंट ने ही दुनिया में तबाही मचा रखी थी लेकिन अब ये वायरस म्यूटेट होकर डेल्टा प्लस या AY.1 में भी तब्दील हो गया है। यह भी ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है। सरकार इसको लेकर चिंतित है और इसके प्रसार को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने का प्रयास भी कर रही है। वैज्ञानिक लोग जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए इसका गहराई से अध्ययन करने में लगे हुए हैं। बता दें, डेल्टा प्लस वेरिएंट से संक्रमित होने वाली पहली मरीज मध्य प्रदेश की थी। मध्य प्रदेश के भोपाल शहर की एक 64 साल की महिला में सबसे पहली बार यह नया वेरिएंट पाया गया था। अच्छी खबर ये रही कि वह महिला होम आइसोलेशन में रहते हुए ही स्वस्थ हो गई। हालांकि महाराष्ट्र के रत्नागिरि, जलगांव, मुंबई, पालघर, ठाणे तथा सिंधुदुर्ग जिले में डेल्टा वेरिएंट के 21 केस एक्टिव हैं। इसके साथ ही केरल में एक 4 साल का मासूम भी 'डेल्टा प्लस' की चपेट में है। अधिकतर एक्सपर्ट्स का मानना है कि 'भारत में इस वेरिएंट के फैलने की रफ़्तार धीमी है।' लेकिन हमारी दृष्टि में इसे लॉकडाउन का असर माना जा सकता है।

डेल्टा वेरिएंट पर मौजूदा वैक्सीन कितनी प्रभावी हैं...

डेल्टा प्लस वेरिएंट के बारे में तो जांच चल ही रही है। लेकिन स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने जानकारी देते हुए कहा कि स्पूतनिक तो काफी देरी से आई है इसलिए पुष्टि नहीं की जा सकती लेकिन Delta Variant पर दोनों भारतीय वैक्सीन असरदार हैं। इसके अलावा अमेरिकी विशेषज्ञ और वैज्ञानिक एरिक फीगल-डिंग ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ एस्ट्राजेनेका वैक्सीन सीमित तौर पर प्रभावशाली रही है। एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ 60 फीसदी प्रभावी रही है। वहीं फाइजर (Pfizer Vaccine) डेल्टा वेरिएंट पर 88 प्रतिशत प्रभावी है. यह बात नॉन ट्रायल स्टडी में सामने आई है। इन वैक्सीनों का एक डोज औसतन 33 प्रतिशत प्रभावी है। कई देशों में इन वैक्सीनों का एक ही डोज़ दिया गया है।

Delta Plus Variant की बात की जाए तो स्वास्थ्य विशेषज्ञ व वायरोलॉजिस्ट इस बात को ले कर आशंकित हैं कि यह वैरिएंट वैक्सीन और इन्फेक्शन इम्यूनिटी दोनों को चकमा दे सकता है। कुछ अन्य विशेषज्ञों ने कहा है कि 'डेल्टा प्लस वेरिएंट कैसा रंग दिखाएगा, इस पर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हर वेरिएंट एक अलग तरह के क्लिनिकल रिस्पॉन्स के साथ आता है जैसे कि पिछला डेल्टा वेरिएंट शरीर में ऑक्सिजन लेवल को घटा रहा था।लेकिन हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि डेल्टा प्लस वेरिएंट क्या नतीजे दिखाएगा।

डेल्टा प्लस वेरिएंट को लेकर एक चिंता जनक खबर यह भी है कि इस पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल ट्रीटमेंट का ज्यादा असर दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि यह ट्रीटमेंट डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित मरीजों के लिए बहुत कारगर रहा है। हालांकि संक्रमण अभी सीमित है और सरकार सूझबूझ दिखते हुए इसके बुरे प्रभाव से देश को बचा सकती है। सरकार इस दिशा में कार्यरत भी है। इस वेरिएंट के हर एक मामले पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है।

INSACOG फुल एक्टिव है...

न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक इंडियन सार्स-सीओवी-2 जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्सिया (INSACOG) डेल्टा प्लस वेरिएंट पर तेज़ी से रिसर्च का काम कर रहा है। इसको लेकर जल्द ही जीनोमिक सर्विलांस बुलेटिन जारी किया जा सकता है। बता दें INSACOG के अंतर्गत देश के 10 बड़े लैब आते हैं जो लगातार जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस का अध्ययन करने में लगे हुए हैं। इन बड़े लैबों में नई दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे के लैब शामिल हैं।

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