Ashish Urmaliya || Pratinidhi Manthan
एक सामान्य परिवार का उदाहरण लें, तो आमतौर पर लोग सबसे पहले अपने परिवार का पेट भरने की कोशिश करते हैं. लेकिन हम यहां किसी सामान्य परिवार या देश की बात नहीं करने वाले, हम यहां बात करने जा रहे हैं दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में से एक चीन के बारे में. चीन के जितने भी सरकारी बैंक हैं, वे अपने देश में लोगों को कर्ज़ देने से ज़्यादा दूसरे देशों को कर्ज दे रहे हैं. कूटनीतिज्ञों द्वारा चीनी बैंकों के इस क़दम को वहां की सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है.
वन बेल्ट वन रोड परियोजना- चीन की कूटनीति को डिटेल में समझने के लिए हमें इस परियोजना का ज्ञान होना बेहद ज़रूरी है. दरअसल, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत कई देशों में आधारभूत ढांचा के विकास के लिए समझौते किए हैं. वो बात अलग है कि इन समझौतों को एकतरफ़ा बताया जा रहा है. चीन ने दुनियाभर के कई देशों को लालच दिया है कि वह उन देशों के आधारभूत ढांचे के विकास पर काम करेगा और उसने इस योजना पर भारी निवेश भी कर दिया है.
वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार, चीन के चार बड़े सरकारी बैंकों में से तीन ने साल 2016 में पहली बार देश के कॉर्पोरेट को लोन देने से ज़्यादा बाहरी देशों को कर्ज़ दिया. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चीन अपनी देसी कंपनियों को दुनिया के उन देशों में बिज़नेस करने के लिए आगे कर रहा है जहां से एकतरफ़ा मुनाफ़ा कमाया जा सके या कह लें जहां कोई ख़ास कॉम्पिटीटर ही ना हो. रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के कमजोर देशों में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए चीन अपनी कर्ज़ रणनीति को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है.
चीन के कर्ज का दायरा लगतार बढ़ता जा रहा है-
दक्षिण एशिया के ये तीन देश देश चीन का सबसे बड़ा टारगेट हैं- सबसे पहला पाकिस्तान फिर श्रीलंका और मालदीव। इन तीनों देशों पर चीन का बेशुमार कर्ज़ हैं.
- श्रीलंका की ही बात करें तो पिछले साल श्रीलंका को एक अरब डॉलर से ज़्यादा चीनी कर्ज़ के चलते चीन को अपना हम्बनटोटा पोर्ट ही सौंपना पड़ गया था. - - पाकिस्तान की तो क्या ही बात करनी अब पकिस्तान को मिनी चीन ही कहा जाने लगे तो कोई बुराई नहीं। एक बार फिर पकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है और हमेशा की तरह चीन ही उसका पनाहगार है.
- मालदीव देश में भी चीन कई विकास परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है. सोचिए मालदीव में जिन प्रोजक्टों पर भारत काम कर रहा था उसे भी चीन को सौंप दिया गया है. परिणामस्वरूप मालदीव चीन के भारी कर्ज तले दब चुका है. बता दें, पिछले दिनों मालदीव ने भारतीय कंपनी Grandhi Mallikarjuna Rao (GMR) से 511 अरब डॉलर की लागत से विकसित होने वाले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की डील को रद्द कर दिया था.
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक की तरफ़ दिए जाने वाले विदेशी कर्ज़ों में भी 31 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. देश के भीतरी कर्जों से इसकी तुलना की जाए तो यह वृद्धि दरमात्र 1.5 फ़ीसदी ही है. साल 2016 की तुलना में 2017 में बैंक ऑफ चाइना की ओर से बाहरी मुल्कों को कर्ज़ देने की दर 10.6 फ़ीसदी का इजाफ़ा हुआ था. साल 2013 में चीन की कमान शी जिनपिंग के हाथों में आने के बाद से ही उनकी महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड परियोजना में भयंकर तेज़ी आई है.
वन बेल्ट वन रोड-
यह परियोजना तीन ख़रब अमरीकी डॉलर से ज़्यादा की लागत वाली परियोजना है. इसके अंतर्गत चीन द्वारा अन्य देशों का आधारभूत ढांचा विकसित किया जाना है. इस परियोजना के माध्यम से चीन सेंट्रल एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया और मध्य-पूर्व में तेज़ी से अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है. वन बेल्ट वन रोड परियोजना के दायरे में कई देश हैं या कह लें कई देश इसके को-फाउंडर हैं, लेकिन अधिकतर पैसा चीन समर्थित विकास बैंक और वहां के सरकारी बैंकों से आ रहा है.
इन परियोजना के ज़रिए चीन एशियाई देशों में ही नहीं बल्कि अफ़्रीकी देशों में भी आधारभूत ढांचा विकसित करने के काम में ज़ोरों से लगा हुआ है. और उन्हीं अफ़्रीकी देशों में से एक देश है जिबुती. जिबुती में अमरीका का सैन्य ठिकाना है. चीन की एक कंपनी को जिबुती ने एक अहम पोर्ट दिया है जिससे अमरीका नाख़ुश है. चीन ने जिबूती को मनचाहे मुनाफे वाला लालच दे रखा है.
बीते वर्ष 2020 में 6 मार्च को अमरीका के तत्कालीन विदेश मंत्री रेक्स टिलर्सन ने कहा था, कि 'चीन कई देशों को अपने ऊपर निर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. वो जिन अनुबंधों को हासिल कर रहा है वो पूरी तरह से अपारदर्शी हैं. नियम और शर्तों को लेकर स्पष्टता नहीं है. चीन द्वारा बेहिसाब कर्ज़ दिए जा रहे हैं जिससे ग़लत कामों को बढ़ावा मिलेगा. चीन का समर्थन करने वाले और उसकी पनाह में रहने वाले देशों की आत्मनिर्भता तो ख़त्म होगी ही इसके साथ ही उन देशों की संप्रभुता पर भी गहरा असर पड़ेगा. बेशक चीन में क्षमता है कि वो आधारभूत ढांचों का विकास करे, लेकिन वो इसके नाम पर अन्य कमजोर देशों पर कर्ज़ के बोझ को बढ़ाने का काम कर रहा है.'
Center For Global Development का कहना है कि वन बेल्ट वन रोड में भागीदार बनने वाले आठ देश चीनी कर्ज़ के भयंकर बोझ तले दबे हुए हैं. ये देश- जिबुती, किर्गिस्तान, लाओस, मालदीव, मंगोलिया, मोन्टेनेग्रो, पाकिस्तान और तजाकिस्तान हैं. विशेषज्ञों के कहे मुताबिक, इन देशों ने यह अनुमान तक नहीं लगाया कि इस कर्ज़ के चलते उनकी प्रगति किस हद तक प्रभावित होगी. कर्ज़ ना चुका पाने की स्थिति में कर्ज़ लेने वाले देशों को पूरा प्रोजेक्ट उस देश के हवाले करना पड़ता है और उनका कर्जा लगातार बढ़ता चला जाता है साथ ही उनका देश पर कब्ज़ा कम होता चला जाता है.
कई देशों में चीनी कर्ज का बेहद खौफ है-
जानकारों का मानना है कि भारत और चीन पर पड़ोसी देश नेपाल भी चीन की मदद चाहता है, लेकिन उसके मन में एक किस्म का खौफ रहता है कि कहीं उसकी हालत भी श्रीलंका और पाकिस्तान के जैसी न हो जाए कहीं वह भी चीन के बेहिसाब कर्ज़ के बोझ तले दब न जाए. आप सोच कर देखिए, एशियाई देश लाओस और चाइना के बीच रेलवे परियोजना को वन बेल्ट न रोड के तहत ही शुरू किया गया है. इस परियोजना की पूरी लागत 6 अरब डॉलर है यानी यह लाओस देश की कुल जीडीपी का आधा है. अब क्या करेगा, कहां जाएगा लाओस?
कई जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट भी इसी राह पर अग्रसर है. चीन-पाकिस्तान के बीच 55 अरब डॉलर की अलग-अलग परियोजनाओं पर काम चल रहा है. फिलहाल खर्च चीन कर रहा है, पकिस्तान में कर रहा है और पकिस्तान कर्ज तले दबता चला जा रहा है. पाकिस्तान के बारे में कहा जा रहा है कि दबाव के बावजूद इस प्रोजेक्ट के अनुबंधों को सार्वजनिक नहीं किया गया है. विश्लेषकों के मुताबिक, इस रक़म का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान पर कर्ज़ के तौर पर है. चीन के मीडिया संस्थान साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में ग्वादर और चीन के समझौते को लेकर कहा जा रहा है कि पाकिस्तान चीन का आर्थिक उपनिवेश बन रहा है. पकिस्तान के ग्वादर में पैसे के निवेश की साझेदारी और उस पर नियंत्रण को लेकर चीन और पकिस्तान के बीच 40 सालों का समझौता है. चीन का इसके राजस्व पर 91 फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी ही मिलेगा. कुल मिलकर ठुल्लू! कागजी कार्यवाही के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास 40 सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा. मुनाफा चीन ही कमाएगा और 40 सालों बाद तो ग्वादर भगवान ही भरोसे है.
आइये उन देशों को जानते हैं जो पूरी तरह चीन के कर्ज तले दब चुके हैं-
1. पाकिस्तान
जाने माने गैर लाभकारी संगठन Center For Global Development की रिपोर्ट के अनुसार चीनी कर्ज़ का सबसे ज़्यादा ख़तरा पाकिस्तान पर है. वर्तमान में चीन का पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर की परियोजना पर काम चल रहा है और अकेले चीन का इसमें 80 फ़ीसदी हिस्सा है.
इसके साथ ही चीन ने पाकिस्तान को उच्च ब्याज़ दर पर कर्ज़ दिया है. जिससे कर्ज के डर को और बल मिलता है और यह दर साफतौर पर दर्शाता है कि आने वाले वक़्त में पाकिस्तान पर चीनी कर्ज़ का बोझ और बढ़ेगा.
2. जिबुती
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष(IMF) ने साफतौर पर कहा है कि दक्षिण अफ्रीकी देश जिबुती जिस तरह से कर्ज़ ले रहा है वो उसके लिए ही ख़तरनाक है. महज दो सालों में ही वहां के लोगों पर बाहरी कर्ज़ उसकी जीडीपी का 50 फ़ीसदी से 80 फ़ीसदी हो गया. इसी के चलते जिबुती दुनिया के कम आय वाले देशों में पहले स्थान पर पहुंच गया है. जिबुती के ऊपर ज़्यादातर कर्ज़ चीन के एक्ज़िम बैंक के हैं.
3. मालदीव
मालदीव के जितने भी बड़े प्रोजेक्ट हैं उनमें चीन व्यापक रूप से शामिल है. चीन मालदीव में 830 करोड़ डॉलर की लागत से एक एयरपोर्ट भी बना रहा है. उसी एयरपोर्ट के पास ही चीन एक पुल भी बना रहा है जिसकी लागत 400 करोड़ डॉलर है. IMF और वर्ल्ड बैंक के अनुसार, मालदीव बुरी तरह से चीनी कर्ज़ में फंसता दिख रहा है. बता दें, मालदीव की घरेलू राजनीति में टकराव है और वर्तमान में मालदीव की सत्ता जिसके हाथ में है उसे चीन का विश्वास हासिल है. वह पद की लालच में मौजूदा विकास देख रहा है उसे भविष्य के खतरों से शायद कुछ लेना-देना नहीं है.
4. लाओस
दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश लाओस एशिया के ग़रीब मुल्कों में से एक है. लाओस में भी चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना के अंतर्गत रेलवे परियोजना पर काम कर रहा है. इस रेल परियोजना की लागत 6.7 अरब डॉलर है जो कि लाओस की जीडीपी का आधा है.अन्य देशों के साथ ही IMF ने लाओस को भी चेतावनी दी है कि वो जिस रास्ते पर है उसमें वह अंतरराष्ट्रीय कर्ज़ हासिल करने की योग्यता खो देगा भविष्य में चीन के भारी दबाव में आ जाएगा.
5. मंगोलिया
भविष्य में मंगोलिया की अर्थव्यवस्था कैसी होगी ये आधारभूत ढांचा के विकास में हुए बड़े निवेशों पर निर्भर करता है. 2017 की शुरुआत में चाइना का एग्ज़िम बैंक मंगोलिया को एक अरब अमरीकी डॉलर का फंड देने के लिए तैयार हुआ था.
इसकी शर्त के तौर पर चीन ने हाइड्रोपावर और हाइवे प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी रखी थी. माना जा रहा है कि वन बेल्ट वन रोड के तहत चीन अगले पांच सालों में मंगोलिया में 30 अरब डॉलर का निवेश करेगा. अगर ऐसा होता है तो मंगोलिया के लिए इस कर्ज़ से बाहर निकलना आसान नहीं होगा. मंगोलिया पूरी चीन की गिरफ्त में आ जाएगा.
6. मोन्टेनेग्रो
वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि साल 2018 में मोन्टेनेग्रो के लोगों पर कर्ज़ उसकी जीडीपी का 83 फ़ीसदी पहुंच गया. इस देश की समस्या भी यहां के बड़े प्रोजेक्ट हैं. मोन्टेनेग्रो के ये प्रोजेक्ट हैं पोर्ट विकसित करना और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क को बढ़ाना. इन भारी प्रोजेक्टों के लिए साल 2014 में मोन्टेनेग्रो के चीन के एग्ज़िम बैंक से एक समझौता हुआ था, जिसमें पहले चरण की लागत एक अरब डॉलर में 85 फ़ीसदी रक़म चीन देगा. और इस तरह मोन्टेनेग्रो चीनी कर्ज से दब जाएगा.
7. तजाकिस्तान
इस देश की गिनती एशिया के सबसे ग़रीब देशों में होती है. IMF तजाकिस्तान को पहले ही चेतावनी दे चुका है कि वो कर्ज़ के बोझ तले दबा हुआ है. और तजाकिस्तान पर इस कर्ज में सबसे ज़्यादा कर्ज़ चीन का है. आंकड़ों के मुताबिक 2007 से 2016 के बीच तजाकिस्तान पर कुल विदेशी कर्ज़ में चीन का हिस्सा 80 फ़ीसदी था जो अब तक और भी ज्यादा हो चुका होगा.
8. किर्गिस्तान
यह देश भी चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना का हिस्सा है. किर्गिस्तान की विकास परियोजनाओं में चीन का एकतरफ़ा निवेश है. साल 2016 में चीन ने किर्गिस्तान में 1.5 अरब डॉलर का निवेश किया था. IMF द्वारा जारी के गए आंकड़ों के मुताबिक, किर्गिस्तान पर कुल विदेशी कर्ज़ में से अकेले चीन का 40 फ़ीसदी हिस्सा है. और इस कर्ज में लगातार इजाफा भी होता जा रहा है.