तालिबानी हुकूमत में महिलाओं की रूह कांपती थी, समझौते से क्या हासिल होगा?

तालिबानी हुकूमत में महिलाओं की रूह कांपती थी,  समझौते से क्या हासिल होगा?

Ashish Urmaliya || Pratinidhi Manthan

– हो चुका है अमेरिका तालिबान का समझौता

-14 महीने में अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे।    

– समझौते पर 30 देशों के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर

अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता होने वाला है, जिस पर भारत समेत दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई हैं। इस समझौते को लेकर भारत की भी अपनी अलग ही चिंताएं हैं। लेकिन सबसे ज्यादा इस समझौते को लेकर किसी को चिंता है, तो वह हैं अफगानिस्तान की महिलाएं। महिलाओं को चिंता होना स्वाभाविक भी है क्योंकि उन्होंने तालिबान के उस भयावह दौर को बेहद करीब से देखा है जो आज भी उनके मन में भविष्य को लेकर भय पैदा करता है।   बता दें, 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था।

तालिबानी हुकूमत समझते हैं

जब अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत थी, तब उसका नाम 'इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफगानिस्तान' हुआ करता था। साल 1990 तक अफगानिस्तान में सोवियत संघ की सेनाएं तैनात रहती थीं, उस वक्त तक तालिबान एक बड़े आतंकी संगठन का रूप धारण कर चुका था। रूस के वहां से जाते ही वह लगातार अपने पैर पसारता रहा. साल 1996 आते-आते तक वह अफगानिस्तान के एक तिहाई हिस्से पर कब्ज़ा कर चुका था। 1996 के बाद उसने पूरे अफगानिस्तान पर कब्ज़ा मार दिया और काबुल तक अपनी पहुंच बढ़ा ली। उस वक्त दुनियाभर के देशों ने तालिबानी हुकूमत का विरोध किया था,  पाकिस्‍तान और क़तर देश को छोड़ कर। इन दोनों देशों ने अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत को मान्यता दी थी। क़तर में तो आज भी तालिबान का राजनीतिक कार्यालय मौजूद है, जो बदस्तूर काम कर रहा है। पाकिस्तान से भी तालिबान को हमेशा हर संभव मदद मिलती रही है, चाहे वह आर्थिक हो या राजनैतिक। 

तालिबानी हुकूमत शरीयत कानून के आधार पर ही देश को चलाने की पक्षधर रही है। शरीयत कानून का अर्थ साधारण भाषा में समझें तो, 'वह कानून जो इस्लाम के भीतर सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से जीवन जीने की व्याख्या करता है। वही कानून जिससे पूरी दुनिया में इस्ला‍मिक समाज संचालित किया जाता है।' जबकि अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार व पिछली सभी सरकारें इसके इतर सोच रखती हैं। बस यही कारण है, कि अफगानिस्तान सरकार के ठिकाने और अधिकारी तालिबान का निशाना बनते आए हैं। अमेरिका भी तालिबान का का बड़ा दुश्मन माना जाता है, उसकी वजह है, कि अमेरिका ने तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में अपनी सेना तैनात कर रखी है और अफगानी सरकार का साथ दे रहा है। इसीलिए अमेरिका हमेशा तालिबान के निशाने पर रहता है। 

महिलाएं क्यों है चिंतित-

कई आंकड़े बताते हैं, कि दुनिया में सबसे बदत्तर जीवन अगर कहीं की महिलाओं का रहा है, तो वो तालिबानी शासन में अफगानिस्तान की महिलाएं थीं।तालिबानी हुकूमत के दौरान

-महिलाओं को बिना बुर्के के घर से बाहर निलकने की आजादी नहीं थी।

-अकेली घर से बाहर नहीं जा सकती थीं, उनके साथ किसी मर्द का होना जरूरी था।

-किसी भी तरह के खेल में हिस्सा लेना, उनके लिए एक सपने जैसा हुआ करता था। यहां तक कि उन्हें स्टेडियम जाने तक की इजाज़त नहीं थी।

-हुकूमत के दौरान देश के सिनेमाघरों को या तो तबाह कर दिया गया था या फिर ताला लटका दिया गया।

-यकीन नहीं मानेंगे महिलाओं को संगीत सुनने तक की पाबंदी थी।

-महिलाओं की शिक्षा को लेकर भी स्थिति बेहद गंभीर थी.

इस हुकूमत के दौरान ही बामियान में बनी बौद्ध की प्रतिमा को गोले दागकर तोड़ दिया गया था। पूरी दुनिया ने इस कृत्य की आलोचना की थी।

मानवाधिकार कार्यकर्ता की मुजुबानी-

मानवाधिकार कार्यकर्ता फवाजिया कूफी उन महिलाओं में से हैं, जिन्होंने उस दंश को झेला। बता दें, फ़वाजिया वर्तमान में अफगानिस्तान की संसद में चुनी गई पहली महिला प्रतिनिधि हैं। उन्होंने बीबीसी से बातचीत के दौरान बताया, कि अगर तालिबानी शासन होता, तो मेरा सांसद बनना कभी मुमकिन नहीं हो पाता। उस वक्त वे घर के भीतर बंद रहने को मजबूर थीं। लेकिन उसी दौरान वे मानव अधिकार कार्यकर्ता भी थीं, तो आवाज उठाने से खुद को रोक नहीं पाईं और उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। उनके पति को भी जान से मरने की साजिश तक रची गई। बीबीसी के मुताबिक, तालिबान से हुई समझौता वार्ता में बतौर महिला प्रतिनिधि वो और उनके साथ एक और कार्यकर्ता शामिल हुई थीं। इस वार्ता के दौरान जब उन्होंने कहा, कि अफगानिस्तान के भविष्य से जुडी किसी भी वार्ता में महिलाओं की मौजूदगी जरूरी है, इस बात को सुनते ही वहां बैठे सभी तालिबानी प्रतिनिधि ठहाका मार कर हंसने लगे थे। तालिबान की इसी तरह की विचारधारा से आज भी अफगानिस्तान की महिलाएं सेहमी हुई हैं।

तालिबानी सोच महिलाओं को एक घंऱ में बंद रखना चाहती है, लेकिन पुरुषों को सभी अधिकार देती है। जबकि अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक, अफगानिस्‍तान के निचले सदन में 250 सीटों में से 68 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। वहींं ऊपरी सदन की 102 सीटों में से 17 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। तालिबान 16 वर्ष की उम्र में लड़की की शादी का समर्थन करता है। उसी दौरान आई अमे‍नेस्‍टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबानी हुकूमत के दौरान करीब 80 फीसद महिलाओं की शादी बलपूर्वक कराई जाती थी। 

अब हो रहा है समझौता-   अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें बेहद मजबूत हैं, जो अभी तक वहां अपना दबदबा बनाये हुए हैं। आये दिन सरकारी अफसरों और अमेरिकी सैनिकों की हत्याएं होती रहती हैं, तालिबान अफगानिस्तान में फिर से अपनी हुकूमत चलाना चाहता है।   

तालिबान अमेरिका समझौता

वर्षों से अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में हैं, तालिबानियों की जाने ले भी रहे हैं और दे भी रहे हैं। लेकिन अब अमेरिका को इसका कोई फायदा नजर नहीं आ रहा, इसलिए वह तालिबान के साथ एक शांति समझौता करने जा रहा है। जिसमें दोनों ओर से कुछ शर्ते पेश की जाएंगी। हालांकि अमेरिका और तालिबान के बीच पिछले 18 महीने से शांति वार्ता चल रही है, लेकिन अभी कुछ ही दिनों पहले तालिबानियों ने अमेरिकी ठिकानों पर हमला किया था जिसके चलते इस समझौते पर आशंका के बादल मड़रा रहे हैं। 

माइक पोंपियो के बयान की वजह से महिलाओं को लेकर चिंता हो रही है-

अमेरिकी मीडिया में ये बात खासी चर्चा में है, कि संभावित समझौते में महिलाओं की आजादी का कोई जिक्र नहीं है. वहीँ अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो के एक बयान ने भी इन आशंकाओं को बल दे दिया जिसमें उन्होंने कहा था, कि यह संभावित समझौता अमेरिकी सेना की वापसी को सुनिश्चित करने और वहां पर वर्षों से जारी युद्ध पर विराम लगाने के मकसद से किया जा रहा है. हालांकि जब भी समझौता होगा, तो वहां के लोग, सरकार, तालिबान, अमेरिका और कुछ मुख्य हितैषी मुल्क मिलकर तय करेंगे। 

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