अपने साथ सायनाइड ले कर क्यों चलती थी यूपी की पहली महिला मुख्यमंत्री? पूरी कहानी

बंगाल की धरती में जन्म, पंजाब में पढ़ाई लिखाई और फिर यूपी की सीएम बनीं। देश के सबसे बड़े राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने से पहले कानपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित सुचेता कृपलानी यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री थीं। उन्होंने श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्रालय संभाला था।
अपने साथ सायनाइड ले कर क्यों चलती थी यूपी की पहली महिला मुख्यमंत्री? पूरी कहानी
अपने साथ सायनाइड ले कर क्यों चलती थी यूपी की पहली महिला मुख्यमंत्री? पूरी कहानी

बात 1962 की है। चन्द्रभानु गुप्ता कांग्रेस के दिग्गज नेता बनते जा रहे थे। कहीं न कहीं जवाहर लाल नेहरू के मन में ये शंका थी कि कुछ ही समय में चन्द्रभानु का कद कांग्रेस पार्टी में उनसे भी बड़ा हो जायेगा। कांग्रेस पार्टी ने कामराज अभियान की शुरआत की। इस अभियान का मकसद अधिक उम्र के लोगों को पार्टी की मुख्य धारा से अलग कर मार्गदर्शक मंडल में शामिल करना था। इस अभियान के चलते चन्द्रभानु गुप्ता को यूपी के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा। अब कांग्रेस किसी निर्विवादित व्यक्तित्व को नया सीएम बनाना चाहती थी क्योंकि चंद्रभानु का गुट पहले से ही खुन्नस में बैठा था।

इस बात का फायदा सुचेता को मिला। सुश्री सुचेता कृपलानी को उत्तर प्रदेश का नया मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस तरह वे यूपी की चौथी मुख्यमंत्री व पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। वे 2 अक्टूबर से 1962 से 13 मार्च 1967 तक यूपी की मुख्यमंत्री बनी रहीं। मुख्यमंत्री बनने से पहले सुचेता विधानसभा क्षेत्र कानपुर से निर्वाचित हुईं थीं और चन्द्रभानु गुप्ता वाली सरकार में केबिनेट मंत्री थीं। उन्होंने श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्रालय संभाल रखा था। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया और खूब वाहवाही बटोरी।

कर्मचारियों को झुकना पड़ा था-

सुश्री सुचेता के कुशल प्रशासन से जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रचलित है। दरअसल, सुचेता के कार्यकाल के दौरान राज्य के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी. तकरीबन 62 दिनों तक चली इस हड़ताल में कर्मचारियों ने वेतन वृद्धि की मांग रखी थी। लेकिन सुचेता टस से मस नहीं हुईं। विपक्षी दलों को तो छोड़िये उनके ही दाल यानि कांग्रेस के नेता उन पर सवाल खड़े करने लगे थे लेकिन जब जब कर्मचारियों ने हड़ताल वापस लेकर समझौता करने की बात मानी तभी सुचेता ने उनकी बात को स्वीकार किया।

पति 20 साल बड़े थे-

25 जून, 1908 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मीं सुचेता का पालन पोषण पंजाब में हुआ था। पिता एस.एन. मजूमदार सरकारी डॉक्टर थे। पढ़ाई-लिखाई में बचपन से ही तेज़ थीं। नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से अपना हायर एजुकेशन पूरा किया। सेंट स्टीफंस कॉलेज से और उच्च शिक्षा प्राप्त की। फिर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में 'संवैधानिक इतिहास' विषय पढ़ाने लगीं। आज़ादी के पहले की बात है- लाहौर यूनिवर्सिटी में ज्यादा वेतन पर नौकरी मिल रही थी लेकिन उन्होंने बीएचयू को ही चुना। क्योंकि उनका मानना था कि बीएचयू के छात्र देश सेवा में अधिक रूचि रखते हैं। 28 साल की उम्र में सुचेता की मुलाक़ात उम्र में उनसे 20 साल बड़े आचार्य जे.बी.कृपलाणी से हुई और फिर दोनों शादी के बंधन में बंध गए। परिवार के अलावा इस शादी का विरोध महात्मा गांधी तक ने किया था लेकिन किसी की न चली। गांधी के शादी विरोध के पीछे का कारण कुछ अलग था। उनको लग रहा था कि जे.बी. कृपलाणी शादी कर लेंगे तो उनके आंदोलन से दूर हो जायेंगे। हालांकि सुचेता ने गांधी को यह कह कर मना लिया कि ऐसा कुछ नहीं होगा बल्कि उन्हें कृपलाणी के साथ आंदोलन के लिए एक और कर्मचारी मिल जायेगा।

पति के माध्यम से हुआ राजनीति में प्रवेश-

आचार्य कृपलाणी गांधीवादी थे। उन्होंने ही सुचेता को गांधी जी से मिलवाया था. उसके बाद से ही सुचेता स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गईं। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन कर लिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सुचेता, अरुणा आसफ अली और अन्य महिला नेताओं के साथ बढ़चढ़ कर आगे आईं और मोर्चा संभाला। उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें कांग्रेस पार्टी की महिला मोर्चा की पहली अध्यक्ष बनाया था।

कहा जाता है, अपने साथ हमेशा सायनाइड रखती थीं-

राजनीतिक के प्रति सुचेता के समर्पण भाव से गांधी भी बेहद प्रभावित थे। इसी के चलते उन्होंने सुचेता को 1946 में कस्तूरबा गांधी नैशनल मेमोरियल ट्रस्ट की आयोजक सचिव नियुक्त कर दिया। 1946 में ही 'नोआखली' (जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है) में भयंकर सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए। सुचेता ने महात्मा गांधी और अपने पति आचार्य कृपलाणी के साथ दंगा प्रभावित छेत्रों का दौरा किया। इस नरसंहार में सबसे ज्यादा अत्याचार महिलाओं के साथ हुआ था। सुचेता ने नरसंहार के पीड़ितों की सेवा की। कहा जाता है इस दौरान सुचेता हमेशा अपने साथ सायनाइड का कैप्सूल साथ ले कर चलती थीं। जब वह मुख्यमंत्री बन कर भी यहां आईं तो उनके साथ सायनाइड का कैप्सूल ज़रूर होता था।

(जिनको नहीं पता उनको बता दें, सायनाइड दुनिया का एक ऐसा खतरनाक ज़हर है जिसको जीभ पर रखते ही इंसान की मौत हो जाती है। मौत इतनी जल्दी होती है कि इंसान को अपनी पालक झपकना तक मुश्किल पड़ता है। दुनिया का कितना भी बड़ा वैज्ञानिक क्यों न हो सायनाइड का टेस्ट किसी को भी नहीं पता क्योंकि टेस्ट लेने के वक्त तक किसी की जान ही नहीं बचती। सायनाइड, मूल रूप से कार्बन और नाइट्रोजन परमाणु से मिलकर बनता है और इसका रासायनिक योग CN है।)

साल 1949 में सुचेता संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रतिनिधि के तौर पर चुनी गईं। इसके कुछ वर्षों बाद सुचेता के पति आचार्य कृपलाणी ने कांग्रेस छोड़ दी। कहते हैं उनका पंडित जवाहरलाल नेहरू से किसी बात को ले कर मनमुटाव हो गया था। आचार्य कृपलाणी ने 'कृषक मजदूर प्रजा पार्टी' नामक एक नई पार्टी बनाई। सुचेता कुछ वर्षों के लिए पति की बनाई पार्टी में चली गईं फिर वापस कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया।

1971 में राजनीति छोड़ी और महज तीन वर्ष बाद निधन हो गया-

सुचेता अपने पति आचार्य कृपलाणी की कृषक मजदूर प्रजा पार्टी के टिकट पर 1952 में (देश के पहले आम चुनावों में) नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतीं और सांसद बनीं। उन्होंने देश की पहली लघु उद्योग राज्यमंत्री का कार्यभार संभाला। दूसरे आम चुनावों (लोकसभा चुनावों) में उन्होंने पुनः नई दिल्ली सीट से चुनाव जीता फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार पार्टी कांग्रेस थी. फिर साल 1967 तक यूपी की मुख्यमंत्री रहीं। देश के चौथे आम चुनावों (1967) में उत्तर प्रदेश के गोंडा से चुनाव जीता। चार साल बाद यानि 1971 में उन्होंने राजनीति से अपने सन्यास की घोषणा कर दी। 1 दिसंबर, 1974 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका देहांत हो गया।

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