सुप्रीम कोर्ट से राज्य शासन को बड़ा झटका लगा है कोर्ट ने उस एसएलपी (स्पेशल लीव पिटीशन) को खारिज कर दिया, जिसमेे नगर निमग के महापौर व नगर पालिका, नगर पंचायत के अध्यक्ष पद के आरक्षण पर हाई कोर्ट के स्टे को चुनौती दी थी इस एसएलपी के खारिज होने के बाद अब मामला फिर से हाई कोर्ट में सुना जाएगा।
हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण को चुनौती देने के लिए अलग-अलग नौ जनहित याचिकाएं दायर की गई थी युगलपीठ में सभी जनहित याचिकाओं को एक साथ सुना जा रहा है कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को अंतरिम आदेश पारित करते हुए दो नगर निगम, 79 नगर पालिका, नगर परिषद के आरक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी कोर्ट ने राज्य शासन से जवाब मांगा था राज्य शासन ने अपने जवाब में आरक्षण की प्रक्रिया को सही बताया था लेकिन ये याचिकाएं जबलपुर की प्रिसिंपल बैंच में स्थानांतरित हो गई हैं राज्य शासन ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी है। कोर्ट ने रोक बरकरार रखते हुए याचिकाओं की तारीख बढ़ा दी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राज्य शासन की एसएलपी पर सुनवाई हुई एसएलपी को खारिज कर दिया इस एसएलपी के खारिज होने से अब हाई कोर्ट अंतिम फैसला होगा है। हाई कोर्ट में सुनवाई होने से नगरीय निकाय के आरक्षण पर भी जल्द फैसला हो सकता है क्योंकि कोर्ट के स्टे के कारण नगरीय निकाय के चुनाव नहीं हो पा रहे हैं।
फैक्ट फाइल
- 79 नगर पालिका व नगर परिषद के आरक्षण पर रोक ली है।
- 2 नगर निगम के महापौर के आरक्षण पर रोक लगी है।
- हाई कोर्ट ने 10 दिसंबर 2020 की अधिसूचना पर रोक लगाई है।
रोटेशन की प्रक्रिया का होना था पालन
- याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में तर्क दिए थे कि महापौर व नगर पालिका, नगर परिषद के अध्यक्ष पद के आरक्षण में रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। जो नगर निगम व नगर पालिका के अध्यक्ष पद लंबे समय से आरक्षित हैं। इस कारण दूसरे लोगों को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल पा रहा है। आरक्षण के रोस्टर का पालन करना चाहिए।
- रवि शंकर बंसल ने डबरा नगर पालिका के अध्यक्ष पद के आरक्षण को चुनौती दी थी। इस याचिका में स्टे आदेश आने के बाद 8 याचिकाएं और आ गईं। मनवर्धन सिंह की जनहित याचिका में 2 निगम व 79 नगर पालिका व नगर परिषद के आरक्षण पर रोक लगा दी। राज्य शासन ने इन दोनों याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।