DSP और विधायक एक साथ बनने वाले, दलित नेता 'राम विलास पासवान'

पिछले 50 साल से अधिक समय से एक नाम लगातार सुर्ख़ियों में बना रहा और आज भी बना हुआ है। वो नाम है 'रामविलास पासवान'।
Ram Vilas Paswan
Ram Vilas Paswan

5 जुलाई, 1946 को जिस गांव में राम विलास पासवान जी का जन्म हुआ था, उस गांव का नाम है 'फरकिया'। इस गांव के नाम का संधि विच्छेद करें, तो होगा- 'फर्क किया'। दरअसल, राम विलास का ये गांव है तो बिहार में लेकिन हमेशा फर्क में रहा, सबसे अलग, अकेला। यह गांव बिहार का वो इलाका था जो अंग्रेज़ों की पहुंच से भी दूर था। तीन से चार नदियों और खेतों से घिरा हुआ ये गांव जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर था।

गांव का ज़िक्र हमने इसलिए किया ताकि आप अंदाजा लगा सकें कि राम विलास पासवान ने अपना शुरूआती जीवन कितने पिछड़े क्षेत्र में बिताया।

एक इंटरव्यू में खुद राम विलास पासवान ने कहा था कि,'मैं उस इलाके में पला-बढ़ा जहां प्राइमरी स्कूल तक नहीं था। हमारे शहरबन्नी गांव से स्कूल 3 किलोमीटर दूर जगमोहरा में था। हमें शिक्षा प्राप्त करने के लिए 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। जब आठवीं कक्षा में पहुंचा तो पढ़ने के लिए हर रोज़ 2 नदियां पार करके स्कूल जाना पड़ता था।' अब आप सोच कर देखिए श्री राम विलास पासवान ने कितने जतन कर के शिक्षा प्राप्त की होगी।

राम विलास पासवान पूर्वी बिहार एक दलित एवं गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे, इस दलित वर्ग के पढ़े-लिखे लोग अपना सरनेम पासवान लिखने लगे जबकि आज भी अशिक्षित लोग अपने आप को 'दुसाध' कहते हैं। रामविलास भी इसी जाति वर्ग में पैदा हुए थे (यह वर्ग पहले अछूत, अब आधिकारिक तौर पर जाति सूची में शामिल है)।

डीएसपी और विधायक एक साथ बने-

बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि राम विलास पासवान IPS अधिकारी बनना चाहते थे। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही वे आईपीएस बनने की तैयारी में जुट चुके थे। मास्टर्स और कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने बिहार सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की और पुलिस उपाधीक्षक चुन लिए गए। पढाई में जितने शानदार थे राजनीति में उससे भी ज्यादा जानदार। जब उन्होंने बिहार सिविल सेवा के लिए परीक्षा दी थी उसी दौरान (60 के दशक में) उन्होंने छोटी उम्र में राजनीति में कदम न रखने की सोच के उलट लोगों के कहने पर अलौली सीट से विधायकी का फार्म भर दिया। एक इंटरव्यू में पासवान ने खुद बताया था कि उन्हें चुनाव जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी। वे अपने मन में हार निश्चित मान कर बैठे थे। वे वैसे भी इतनी छोटी उम्र राजनीति में नहीं आना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सोचा चुनाव हार कर कुछ दिन के लिए राजनीति से छुटकारा मिल जाएगा। लेकिन नियति ने तो कुछ और सुनिश्चित कर रखा था। पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर भयंकर मतों से चुनाव जीते और विधायक बन गए। आज से 52 साल पहले श्री राम विलास पासवान 23 साल की उम्र में DSP (पुलिस उपाधीक्षक) और विधायक एक साथ बने थे। इस घटना के बाद समूचे बिहार में हंगामा मच गया था, दिग्गज से दिग्गज व्यक्तित्व की जुबान पर एक ही सवाल था- आखिर कौन है ये युवा?

आगे की कहानी...

1969 में विधायक बनने के बाद उन्होंने DSP के रुतवे को छोड़कर राजनीति की राह चुनी। रामविलास के इस फैसले से उनके पिता जी जामुन दास काफी रुष्ट हुए। कारण यह था कि उस समय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी लोग बड़े क्रांतिकारी हुआ करते थे। उनका अधितर समय प्रदर्शनों और जेलों में बीता करता था। पिता चाहते थे कि बेटा खुद जेल जाने की बजाय जेल भेजने वाला बने। बाबू जी के लाख मना करने पर भी रामविलास ने राजनीति के माध्यम से जनसेवा का रास्ता चुना। फिर खुद को बिहार के दलितों, अन्य निचली जाति के हिंदुओं और मुस्लिम समुदाय के नेता के रूप में प्रचारित किया। 1970 में उन्हें बिहार में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी शाखा का सचिव बनाया गया।

चार वर्ष बाद, बिहार की सबसे प्रभावी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बड़े स्टार पर विरोध करने के मकसद से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) ने अन्य कांग्रेस विरोधी दलों के साथ गठबंधन कर के एक नई लोक दल (पीपुल्स पार्टी) का गठन किया। रामविलास लोक दल की बिहार शाखा के महासचिव बने।

फिर लगी इमरजेंसी......बाद में सवा चार लाख वोट से जीते!

रामविलास का राजनीतिक करियर सातवें आसमान पर था. फिर साल 1975 देश में इमरजेंसी लग गई। रामविलास इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों में से एक थे, इसलिए उन्हें जेल में डाल दिया गया। फिर 1977 में रिहाई हुई। उसी साल आम चुनाव हुए। नतीजों का दिन था। ऑल इंडिया रेडियो की इलेक्शन कमेंट्री की एक सूचना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। वह सूचना थी कि रामविलास पासवान ने हाजीपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी को सवा चार लाख वोट से हराया। इस ऐतिहासिक जीत ने रामविलास को एक बड़ी राष्ट्रीय शख्सियत और दलितों का आइकन बना दिया। इसके बाद रामविलास ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, अपने 50 साल के राजनीतिक जीवन में 9 बार सांसद बने। वह अपने कुल राजनीतिक जीवन में केवल दो लोकसभा चुनाव हारे- साल 1984 और 2009 में। साल 2009 में उन्होंने राज्यसभा (भारतीय संसद के ऊपरी सदन) में एक सीट जीती, फिर से बिहार जिले का प्रतिनिधित्व किया।

साल 1985 में लोक दल के राष्ट्रीय महासचिव बने। फिर 1988 में जनता दल का गठन करने वाले घटकों में से एक रहे। जनता दाल के महासचिव बने। दलीय राजनीति में उनका करियर लगातार आगे बढ़ता चला गया। साल 2000 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) गठबंधन में शामिल होने के मुद्दे पर जेडी दो गुटों में विभाजित हो गया था। उसी वर्ष पासवान और कुछ अन्य जनता दल सदस्यों ने लोक जनशक्ति (LJP) का गठन कर लिया। पासवान पार्टी के अध्यक्ष बने और अंत तक बने रहे।

इसके बाद कहानी तो आप सब जानते हैं, रामविलास की पार्टी कांग्रेस के शासन काल में कांग्रेस समर्थित रही फिर 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्हें भाजपा में आने का न्योता दिया गया, वे भाजपा के साथ आ गए। रामविलास के बारे में एक बात बहुत प्रचलित है- देश में सरकार किसी की भी बनी हो रामविलास हमेशा केंद्रीय मंत्री रहते थे।

देश का हर गरीब गर्व से कहे कि रामविलास हमारा आदमी है...

रामविलास जी से एक पत्रकार ने सवाल किया, आपके जीवन का टारगेट क्या है? तो उन्होंने जवाब दिया था कि 'मुझे इस बात की ख़ुशी है कि देश के करोड़ों दलित जो एक समय बेजुबान सा महसूस करते थे। जो देश के गरीब तबके के लोग थे और अल्पसंख्यक पूरे पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि रामविलास मेरा आदमी है। उनका शुरूआती राजनीतिक नारा हुआ करता था- 'मैं उन घरों में दीया जलाने निकला हूं, जिन घरों में सदियों से अंधेरा था।' कुछ दिनों बाद उनके महंगे-महंगे सूट-बूटों को निशाना बनाते हुए उनसे सवाल किया गया कि क्या आप फ़ाइव स्टार दलित नेता हैं? तो उन्होंने टपक से जवाब देते हुए कहा कि वे लोगों के प्रति दलितों को लेकर मानसिकता बदलना चाहते हैं। उन्होंने पत्रकार से कहा क्या दलित हमेशा भीख मांगे, गरीबी में रहे? अगर हम इस मिथक को तोड़ रहे हैं तो क्यों दिक्कत हो रही है? रामविलास हमेशा इस मिथक के खिलाफ रहे जो सामज में फैला था कि दलित हमेशा दबा कुचला, सिंपल-साधारण और गरीब सा दिखता है।

श्री राम विलास पासवान की मृत्यु- 8 अक्टूबर, 2020, दिल्ली, भारत।

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