एक शासकीय शिक्षक जिन्हें 'मंच संचालन' में महारथ हासिल है!

अगर आप भी एक बड़े मंच पर खड़े होकर निर्भीकता के साथ दर्शकों से बात करने का जूनून रखते हैं तो इस लेख के अंत में प्रसिद्द मंच संचालक व शासकीय शिक्षक श्री ओम प्रकाश दीक्षित जी द्वारा दिए गए अमूल्य टिप्स को ज़रूर पढ़िएगा। इसके साथ ही, इस लेख में उल्लेखित उनके द्वारा मानव कल्याण की दिशा में किए गए कार्य आपको प्रेरित करेंगे।
एक शासकीय शिक्षक जिन्हें 'मंच संचालन' में महारथ हासिल है!

शिक्षक हमेशा मंच पर ही रहता है। एक शिक्षक अगर मंच पर ना हो तो वह अपनी भूमिका कभी निभा ही नहीं सकता। यहां मंच के मेरा मतलब कोई बड़ा भारी स्टेज नहीं है। यहां मंच से मेरा मतलब एक 'क्लास रूम (कक्षा)' से है। लेकिन आज हम यहां एक ऐसे शासकीय शिक्षक के बारे में बात करने जा रहे हैं जो क्लास रूम में अपनी अहम भूमिका निभाने के साथ-साथ, बड़े-बड़े शासकीय व गैर-शासकीय मंचों का भी बड़ी निपुणता के साथ संचालक करते हैं।

एक ऐसे शिक्षक जो 'साहित्य सेवा और मंच संचालक' के अपने जूनून को पूरा करने के साथ ही शासकीय सेवा में भी अपना शत प्रतिशत देते हैं। इन दोनों ज़िम्मेदारियों का बड़ी ही निष्ठा के साथ पालन करने के लिए उन्हें कई तरह के सम्मानों व पुरुस्कारों से भी नवाज़ा जा चुका है। इन सम्मानों में राष्ट्रपति द्वारा दिया गया सम्मान भी शामिल है।

इस हफ्ते के हमारे 'टेलीफोनिक साक्षात्कार' में हमारी रोचक व ज्ञानवर्धक चर्चा श्री ओम प्रकाश दीक्षित जी से हुई। हमारे सवाल और उनके जवाब आप आगे पढ़ेंगे, उससे पहले उनकी संक्षिप्त जीवनी पर नज़र डाल लेते हैं।

श्री ओम प्रकाश दीक्षित जी का जन्म मध्यप्रदेश के दतिया जिले के एक छोटे से गांव 'सेंवढ़ा' में 27 सितंबर 1963 को हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्मे ओम प्रकाश जी के पिता श्री राम प्रसाद दीक्षित जी थे जो तहसील कार्यालय सेंवढ़ा में लिपिक के पद पर कार्यरत थे, कार्यालय अधीक्षक के पद तक पहुंच कर वे सेवा निवृत्त हुए। ओम प्रकाश जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम- सेंवढ़ा से ही प्राप्त की फिर स्नातक की पढ़ाई करने जिला- दतिया चले गए। दतिया के शासकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय से बायोलॉजी विषय में बीएससी (BSc.) की पढ़ाई पूरी की। फिर पोस्ट ग्रेडुएशन (इकोनॉमिक्स) की पढ़ाई के प्रथम वर्ष में ही 1 जनवरी 1984 को शासकीय शिक्षक बनने का अवसर प्राप्त हुआ और इन्होंने अपनी सेवा देना शुरू कर दिया, साथ ही पोस्ट ग्रेजुएशन की पढाई भी पूरी की। शासकीय सेवा में आने के कुछ वर्षों बाद ही इन्होंने 'युवा साहित्य परिषद्' नामक संस्था की स्थापना की और अपने जुनून को एक नई उड़ान देने के साथ-साथ अनेक युवा कवियों को भी बड़ा मंच प्रदान किया।

अब उनके साथ हुई हमारी ख़ास बातचीत को पढ़िए...

सवाल- आप शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सेंवढ़ा में प्राचार्य के पद पर पदस्थ हैं अभी?

जवाब- जी नहीं, मुझे प्राचार्य पद का प्रभार मिला हुआ था, मैं एक सामान्य शिक्षक हूँ। अपने मुख्य दायित्व के अलावा शासन द्वारा जो भी अन्य दायित्व मुझे सौंपा जाता है, मैं उसका निर्वहन करता हूँ।

सवाल- आप एक शिक्षक हैं। इस कोरोना महामारी के चलते शिक्षा के क्षेत्र में जो भारी क्षति हुई है इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब- बिलकुल, कोविड-19 महामारी ने खासतौर पर शिक्षा के क्षेत्र को बड़ी क्षति पहुंचाई है। शिक्षा, जो किसी भी विद्यार्थी के लिए एक मूलभूत आवश्यकता है वह सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। सबसे बड़ी बात ये है कि विद्यार्थियों को अपने विद्यालय से दूर रहना पड़ रहा है। शासन को भी इसके चलते बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मजबूरन बोर्ड की परीक्षाओं को रद्द करना पड़ रहा है। हाई स्कूल की जो परीक्षा होती है वह किसी भी बच्चे के जीवन की पहली बड़ी परीक्षा होती है, जिसमें उसे अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का मौका मिलता है, जो उसके हौसले को मजबूती देने का काम करती है। बच्चे वर्ष भर इसके लिए तैयारी करते हैं लेकिन कोविड के चलते उन्हें हताशा का सामना करना पड़ रहा है। किसी भी विद्यार्थी के लिए एक-एक वर्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है, विद्यालय उस बच्चे के जीवन को नई दिशा देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। माता पिता भी अपने बच्चे को शिक्षित करने के लिए, उसके जीवन को सफल बनाने के लिए बहुत बड़ा त्याग करते हैं।

वैसे भी कहा गया है कि "शिक्षा तीन आयामों पर निर्भर होती है- शिक्षक, पालक और बालक।"

हालांकि शासन अपने स्तर पर शिक्षकों के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा देने का प्रयास कर रहा है, ऑनलाइन कोचिंग क्लासेज एवं गावों में जाकर कार्नर स्कूलों का संचालन पहले फेज में किया गया।

सवाल- जी, अगला सवाल यही है कि हमारे देश में ऑनलाइन शिक्षा कितनी कारगर साबित हो पा रही है?

जवाब- वर्तमान परिस्थिति में यह शिक्षा देने का एक नया आयाम है। ग्रामीण परिवेश में बहुत से विद्यार्थियों के पास स्मार्टफोन, लैपटॉप वगैरह की उपलब्धता नहीं है। राज्य शासन, शिक्षा विभाग, हम शिक्षकों के द्वारा शिक्षा देने के सन्दर्भ में पाठ्यक्रम से संबंधित जो वीडियोज़ बनाए गए हैं, वो उन तक विधिवत नहीं पहूंच पा रहे हैं। यह हमारे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है।

सवाल- इसके अलावा जो एक अन्य बात है कि जो पुराने शिक्षक हैं, उनकी इस अचानक बदली हुई टेक्नोलॉजी के साथ उतनी मित्रता नहीं है। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?

जवाब- आपकी बात बिलकुल सही है जो पुराने शिक्षक हैं वो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उतने एक्सपर्ट नहीं हैं। राज्य सरकार एवं शिक्षा विभाग जो टीचिंग मटेरियल तैयार कर रहा है, ऐसे शिक्षक उसको बच्चों तक प्रभावी रूप से पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन बहुत से शिक्षक इस चुनौती से निपटने के लिए खुद को तैयार करने की निरंतर कोशिश में लगे हुए हैं और बाकी के कुछ शिक्षक अपने घर-परिवार के तकनीकी जानकार लोगों की मदद से इस ऑनलाइन शिक्षण दायित्व को पूरा कर रहे हैं।

सवाल- सर, ये जो नई शिक्षा नीति आई है, इस पर आपके क्या विचार हैं?

जवाब- भारत सरकार के द्वारा यह एक बहुत अच्छा प्रयास किया गया है। वर्तमान में जो शिक्षा पद्धतति संचालित है वह डिग्रीयां, पासिंग मार्कशीट तो दे रही है लेकिन रोजगार नहीं दे पा रही है। सभी माता-पिता जो अपने बच्चे को अध्यन प्रक्रिया से जोड़ते हैं, उनका एक मात्र लक्ष्य रहता है कि हमारे बच्चे पढ़-लिख कर सफल हों, एक अच्छी नौकरी प्राप्त करें, कुशलता पूर्वक एक आदर्श जीवन यापन करें। नई शिक्षा नीति इसी विषय को मद्देनज़र रख कर तैयार की गई है। केंद्र सरकार व शिक्षाविदों द्वारा शिक्षा को रोजगार से जोड़कर देखा गया है और यह नई शिक्षा नीति बनाई गई है। इसमें कक्षा 6 से ही विद्यार्थियों को विभिन्न क्षेत्रों के बारे में अवगत कराया जाएगा और उनकी रूचि के आधार पर उसको शिक्षित किया जायेगा। इससे विद्यार्थी को अपनी आगे की पढ़ाई में विषय का चुनाव करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। विद्यार्थी को अपने रूचि वाले क्षेत्र का पूरा व्याहारिक ज्ञान हो पाएगा, अन्य सभी विषय उसके सहायक के रूप में काम करेंगे। आगे चल कर वह आसानी से रोजगार की प्राप्ति कर सकेगा या फिर हो सकता है वह रोजगार प्रदान करने वाला बने, दूसरों को भी रोजगार देने में सक्षम हो।

नई शिक्षा नीति को लेकर साल 2021 से कार्य शालाएं प्रारम्भ होनी थीं, लेकिन इस महामारी के प्रभाव के चलते इसको लेकर कोई कार्यक्रम संचालित नहीं हो पाया है।

सवाल- आपका अपने शासकीय कार्यक्षेत्र में क्या विशेष योगदान रहा? शिक्षा के क्षेत्र में क्या विशेष योगदान रहा?

जवाब- साल 2011 में जनगणना हुई थी, उसमें सभी कर्मचारियों के कार्य की समीक्षा हुई थी। उस कार्य समीक्षा में मेरे कार्य को प्रशंसा मिली और 26 जनवरी के दिन मुझे राष्ट्रपति द्वारा रजत पद व प्रसस्ति पत्र से सम्मानित किया गया। ये सम्मान मुझे एक आयोजन के माध्यम से प्रभारी मंत्री व जिला अधिकारियों द्वारा प्रदान किया गया।

मध्य प्रदेश शासन द्वारा 'सर्व शिक्षा अभियान' नामक एक मिशन चलाया जा रहा है। उसमें 45 विद्यालयों का एक क्लस्टर था जिसका मैं Cluster Academic Coordinator (CAC) था। इस अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जो शाला त्यागी (ड्रॉपआउट) बच्चे थे, उन्हें पुनः विद्यालयों से जोड़ने का काम किया गया था। इस कार्य के लिए वर्ष 2007 में हमें माननीय शिवराज सिंह द्वारा आचार्य सम्मान निधि से सम्मानित किया गया था। भोपाल से प्रतिविम्ब नामक एक पत्रिका प्रकाशित हुआ करती थी उसने भी मेरे कार्य का मूल्यांकन कर एक बड़ा लेख लिखा था ताकि अन्य लोग भी इससे प्रेरित हो सकें।

दरअसल, इस मिशन के तहत, हमने उन बच्चों को ट्रैक किया जो किसी भी कारणवश विद्यालयों से दूर हो चुके थे, बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुके थे, उन्हें हमने ढूंढा और पुनः विद्यालयों से जोड़ा। हमारे जनशिक्षा केंद्र के अंतर्गत 23 ऐसे गांव हैं जहां बच्चों के माता-पिता शिक्षा के क्षेत्र से नहीं जुड़े हुए हैं और गरीबी रेखा के नीचे हैं। ऐसे माता-पिता अपने बच्चों को प्रारंभ में ही शिक्षा से अलग कर देते हैं। वो अपने बच्चों को अपने ही साथ कृषि कार्य, जानवरों की देख-रेख या मजदूरी में लगा देते हैं। कई ऐसी बालिकाएं भी हैं जो घर पर रह कर अपने छोटे भाई-बहनों का पालन पोषण करने लगती हैं और घर के कामों में सहभागिता निभाने लगती हैं।

ऐसी बालिकाओं की शिक्षा 5 वीं कक्षा तक की पढाई पूरी किए बिना ही छूट जाती है। इस तरह के सभी बच्चों को पुनः विद्यालयों के साथ जोड़ने के लिए मध्य प्रदेश शासन द्वारा एक ब्रिज (सेतु) कोर्स की शुरुआत की गई थी। इसके तहत पहले तो बच्चों को पढ़ना-बढ़ना अभियान के तहत घर-घर जाकर पढ़ाने की व्यवस्था की गई फिर उनके लिए अलग के छात्रावासों का गठन किया गया। उनके लिए रात्रि कक्षाओं का भी आयोजन किया गया।

बालिकाओं को सुरक्षित लाने ले जाने की उचित व्यवस्था हमारी शिक्षकों की पूरी टीम द्वारा की गई। सभी योजनाओं को ग्राउंड लेवल पर सफल बनाने के भरपूर प्रयास किए गए। बालक-बालिकाओं को पांचवी की परीक्षा के लिए तैयार किया गया, उन्हें परीक्षा दिलाई गई ताकि वे 6 वीं कक्षा से नियमित रूप से विद्यालय आ सकें। इन सब के अलावा हमारे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य बालक-बालिकाओं के माता-पिता को समझाना होता।

बालक तो फिर भी ठीक, लेकिन वहां के लोग बालिकाओं को पढ़ाने के पक्ष में नहीं होते थे। फिर भी मैंने और मेरे सभी साथियों ने हार नहीं मानी, हम सभी बालिकाओं के माता-पिता को शिक्षा के मायने समझाने में सफल रहे और तमाम कोशिशों के बाद हमने इस मिशन को सफल कर दिखाया।

सवाल- साहित्य में आपकी कितनी क्या रूचि है?

जवाब- मैं साहित्य पढ़ने और खासतौर पर सुनने में बेहद रूचि रखता हूँ। इसके अलावा जो भी साहित्यिक कार्यक्रम होते हैं हम उनके आयोजन, संयोजन और संचालन का काम भी करते हैं।

सवाल- 'युवा साहित्य परिषद् संस्था के माध्यम से आप क्या काम करते हैं?

जवाब- मेरा जो गृह क्षेत्र है वह साहित्य की दृष्टि से हमेशा से ही समृद्ध रहा है। यहां पर बड़े विद्वान कवि, विशेषकर बुंदेली भाषा में शसक्त लेखन करने वाले कवि हमेशा रहे हैं। सेंवढ़ा क्षेत्र को महान बुंदेली लेखकों की भूमि कहना उचित रहेगा। हमनें यहां पर युवा साहित्य मंच का गठन कर के जो युवा प्रतिभाएं हैं उनको प्रोत्साहन व मंच देने का काम किया है।

वसंत पंचमी के अवसर पर प्रतिवर्ष गांधी पुस्तकालय, सेंवढ़ा में राष्ट्रीय कवि सम्मलेन का बहुत बड़ा आयोजन होता है उसमें प्रतिवर्ष हम 2-3 युवा कवियों को अपना काव्य पाठ करने का अवसर प्रदान कराते हैं। इसके अलावा हम मासिक गोष्ठियों का भी आयोजन करते हैं जिनके माध्यम से युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने का काम किया जाता है।

ये मासिक गोष्ठियां एक कार्यशाला की तरह होती हैं जिनमें युवा कवियों, साहित्यकारों को वरिष्ठ साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी मिलता है। इन गोष्ठियों में कई जिलों के बड़े साहित्यकार हिस्सा लेते हैं, वे खुद काव्यपाठ करते हैं साथ ही साथ युवा साहित्यकारों के काव्य पाठ की समीक्षा कर उनकी गलतियां बताते हैं, उन्हें कहां सुधार की आवश्यकता है यह भी बताते हैं। उनके मार्गदर्शन के चलते युवा कवि निरंतर अपने लेखन व प्रस्तुति को धार देने के प्रयास में लगे रहते हैं।

मैं संयोजक होने के नाते सभी को एक मंच पर लाने, इन कार्यक्रमों का सभी के सहयोग से आयोजन करवाने का काम करता हूँ। देश का शायद ही कोई ऐसा बड़ा साहित्यकार, कवि होगा जिसनें यहां पर बसंत पंचमी के दिन आयोजित होने वाले राष्ट्रीय कवि सम्मलेन में आकर अपना काव्यपाठ ना किया हो। आज के इस व्यावसायिक दौर में पैसे को उतना महत्त्व ना देकर यहां लगभग सभी जाने-माने साहित्यकार आते हैं।

इस कवि सम्मलेन का हमेशा ही बड़ा नाम रहा है। हमारे इस कार्यक्रम को राज्य, आंचलिक व जिला स्तर पर कई बार सम्मानित किया जा चुका है। हमें कई प्रसस्ति पत्र व सम्मान पत्र भी दिए गए हैं। इस सम्मान के पीछे मेरे सभी साथियों, वरिष्ठ जनों का मार्गदर्शन व मेहनत होती है, अपनी तो एक छोटी सी भूमिका रहती है जिसका मैं निर्वहन करता हूँ।

सवाल- इन सभी कार्यक्रमों के संयोजन के अलावा आप मंच संचालन की ज़िम्मेदारी भी संभालते हैं। मुझे जानकारी लगी है, आप बेहद कुशल मंच संचालक हैं। इसकी शुरुआत कहां से हुई?

जवाब- जी, बहुत से राज्य स्तरीय एवं ग्राम स्तरीय साहित्यिक, सामाजिक एवं शासकीय कार्यक्रम होते हैं उनमें मैं मंच संचालन का काम करता हूँ। कुशल तो मैं खुद को नहीं मानता, इसका निर्णय मैंने आप सब पर छोड़ रखा है बाकी ये है कि काम चल जाता है।

स्कूल के दिनों में शनिवार के दिन बालसभाएं हुआ करती थीं, उन बालसभाओं में आयोजक, प्रतिभागी एवं मंच संचालक विद्यार्थी ही हुआ करते थे। प्रतिभागी तो अपनी कविताएं, रामायण की चौपाइयां सुना कर बैठ जाते थे लेकिन संचालक मंच पर बना रहता था। पूरे कार्यक्रम के दौरान वह सबकी नज़रों में बना रहता था। वहां से मुझमे मंच संचालक बनने का जूनून सवार हुआ फिर धीरे-धीरे मैं इस दिशा में आगे बढ़ता गया। कॉलेज में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने का अवसर मिला और विभिन्न मंचों का भी संचालन करता रहा।

साल 2004 में रेडक्रॉस सोसाइटी, मध्य प्रदेश द्वारा धार, इंदौर में एक बहुत बड़ी 7 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया था। उस कार्यशाला में पूरे मध्य प्रदेश के कॉलेज के प्रोफेसर्स से लेकर प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन करने वाले शिक्षक तक शामिल थे। कार्यशाला में एक तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, उसमें कई वरिष्ठ कवियों, साहित्यकारों, शिक्षकों, प्रोफेसरों ने हिस्सा लिया था।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय राज्यपाल महोदय थे। उस तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता में पूरे प्रदेश में मेरा प्रथम स्थान आया था। ईश्वर की कृपा से मुझे विषय भी अच्छा मिला था, "परहित सरस धरम नहीं भाई"। हमें बहुत सारी पर्चियों में से एक पर्ची उठानी थी उसमें हमारा विषय लिखा हुआ था, उसी विषय पर हमें तत्काल बिना किसी तैयारी के बोलना था।

सवाल- मंच संचालन के लिए एक मंच संचालक के भीतर क्या खूबियां होनी चाहिए? उसे किन चीज़ों पर ध्यान देना चाहिए ताकि कोई गलती ना हो और उसको सराहा जाए? साथ ही, एक मंच संचालक के लिए मंच पर क्या चुनौतियां होती हैं?

जवाब- इस लंबे प्रश्न का उत्तर एक ही लाइन का है, 'एक मंच संचालक के भीतर आत्मविश्वाश होना चाहिए।'

एडिटर- आपका उत्तर प्रभावशाली है, लेकिन फिर भी यह लेख पढ़ने वालों को अपने अनुभव के आधार पर कुछ अन्य टिप्स भी दे सकें तो बेहतर होगा।

दीक्षित जी- आत्मविश्वास अचानक से नहीं आता, जब आप निरंतर आयोजनों में भाग लेते हैं तब आता है। अगर आपके अंदर मंच संचालक बनने का जूनून है तो आप यह आसानी से कर लेंगे। मन में किसी भी प्रकार का डर होने के बावजूद आपको बार-बार मंच पर जाना चाहिए। जैसे ही अनुभव बढ़ता जायेगा और लोगों का प्रोत्साहन मिलता जायेगा, आपके अंदर आत्मविश्वास आता जायेगा।

Ø साथ ही, आपको हमेशा अपडेटेड रहने की ज़रुरत भी होती है। सामयिक विषयों की जानकारी आपकी तार्किक क्षमता का विकास करती है जो मंच के लिए बेहतर है।

Ø मंच संचालन के वक्त कुछ ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जिनका पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता। वहां पर हमारी जागरूकता, सक्रियता और अनुभव काम आता है। इसके बावजूद भी कुछ बिगड़ जाता है तो हमें मानसिक रूप से तैयार रहने की ज़रुरत होती है। कुछ बिगड़ते ही हमें आगे का पूरा कार्यक्रम बिगड़ने से बचाना होता है।

Ø मंच संचालक का मुख्य काम होता है मंच को श्रोताओं से निरंतर जोड़े रखना। इसलिए मंच संचालक को शारीरिक रूप के साथ-साथ मानसिक रूप से भी निरंतर कार्यक्रम में बने रहने की आवश्यकता होती है। कभी-कभी क्या होता है कि फ्लो-फ्लो में मंच संचालक ही इतना बोल जाते हैं कि अन्य आए हुए अतिथियों के बोलने का समय कम हो जाता है। इससे कार्यक्रम के खराब होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

Ø मंच संचालक की आवश्यकता तब सबसे अधिक होती है जब मंच पर उपस्थित कुछ कवि श्रोताओं पर उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाते। उस वक्त श्रोताओं को कार्यक्रम से जोड़ कर रखने में मंच संचालक को अपनी भूमिका निभानी पड़ती है।

Ø माननीय मंच संचालक की पूरे कार्यक्रम में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उनकी ही ज़िम्मेदारी होती है कि कार्यक्रम जिस उद्देश्य से आयोजित किया गया है, उस उद्देश्य की प्राप्ति हो सके। कार्यक्रम अपनी दिशा ना भटकने पाए।

Ø आजकल कार्यक्रमों में मंच संचालक के लिए एक नई समस्या आन खड़ी हुई है। जब भी आप किसी कवि को कविता पाठ करने के लिए मंच पर आमंत्रित करते हैं तो उनके पाठ करने का समय पहले से ही निर्धारित होता है लेकिन वे इस समय पर ध्यान नहीं देते, धारा प्रवाह हो जाते हैं। उनसे बार-बार विनम्रता पूर्वक निवेदन करना पड़ता है कि आपका समय समाप्त हो चुका है अन्य कवियों को भी आने का मौका दीजिए। इससे मंच संचालक की दिक्कत बढ़ती है क्योंकि उसके ऊपर एक निश्चित समय में कार्यक्रम को पूरा कराने की ज़िम्मेदारी होती है।

जितने भी शासकीय आयोजन होते हैं उनमें अक्सर मंत्री, मुख्यमंत्री, नेता आदि मुख्य अतिथि होते हैं। मंच संचालक को आने वाले अतिथियों की सूचि मिलती है लेकिन कई बार ऐसा होता है कि नेताओं के साथ कई अन्य पदाधिकारीगण कार्यक्रम का हिस्सा बन जाते हैं और मंच संचालक उनका नाम उल्लेखित नहीं कर पाता, तो वे बुरा मान जाते हैं, उनके मन में असंतुष्टि पैदा हो जाती है। हालांकि समय के साथ सब समझदार होते जा रहे हैं।

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