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Ashish Urmaliya || Pratinidhi Manthan
Indian Council of Medical Research (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) के अनुसार, प्लाज्मा थेरेपी को लेकर किए गए क्लिनिकल ट्रायल से पता चला है कि यह कोविड-19 के मरीजों के लिए ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई है। इसी के चलते इसे कोविड-19 के इलाज के लिए बनाई गयी गाइडलाइन्स से हटाए जाने पर विचार किया जा रहा है। जानकारी के लिए बता दें, ICMR भारतीय सरकार के अंतर्गत आने वाली एक बॉयो-मेडिकल शोध एजेंसी है। दरअसल, आईसीएमआर ने पिछले यानी सितंबर के महीने में देश के 39 अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 के 464 मरीजों पर अध्ययन किया और यह पाया कि प्लाज्मा थेरेपी ने कोविड से लड़ने में बिलकुल भी मदद नहीं की है।
ICMR के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने एक प्रेस वार्ता में जानकारी दी कि इस बात पर भी चर्चा चल रही है कि क्या क्लिनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइन्स से रेमडेसिवियर और कोरोना काल की बहु चर्चित हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वी को भी हटाया जाना चाहिए या इन्हें शामिल रखना चाहिए, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सॉलीडेरिटी ट्रायल में चार दवाएं- लॉपिनावियर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, इंटरफेरॉन-बी और रेमडेसिवियर कोविड-19 के मरीजों के इलाज में बहुत ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई हैं।
ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव के मुताबिक, 'हाल ही प्लाज्मा थेरेपी पर एक बड़ा ट्रायल किया गया है। इस पर नेशनल टास्क फोर्स द्वारा विचार किया गया, साथ ही एक संयुक्त निगरानी समूह से भी इस पर चर्चा की जा रही है। प्लाज्मा थेरेपी को नेशनल गाइडलाइन्स से हटाया जा सकता है।' यह फैसला जल्द ही लिया ही जा सकता है।
आईसीएमआर के महानिदेशक द्वारा जारी किए गए इस बयान के बाद दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि प्लाज़्मा थेरेपी ने ही कोरोना वायरस से उनकी जान बचाई है। उन्होंने कहा कि, 'दिल्ली में इसका फायदा होता दिख रहा है और अब तक 2000 से ज्यादा लोगों को प्लाज्मा बैंक के जरिए प्लाज्मा दिया गया है और कइयों ने खुद प्लाज्मा का इंतजाम किया। प्लाज्मा थेरेपी प्रभावी नहीं है, ऐसा कहना गलत होगा।' कुल मिलाकर दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने ICMR की बात को दरकिनार कर दिया है।
इसी साल जून के महीने में दिल्ली सरकार ने देश का सबसे पहला प्लाज्मा बैंक खोला था जिसका शुभारंभ स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन द्वारा ही किया गया था. शुरुआत के वक्त उन्होंने कहा था कि इस थेरेपी से कोरोना से होने वाली मौतों में कमी आएगी। साथ ही लोगों से प्लाज्मा डोनेट करने की अपील भी की थी। नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट(NHI) के प्रमुख डॉ ओ.पी. यादव के अनुसार प्लाज्मा थेरेपी को लेकर आईसीएमआर और दिल्ली सरकार की तरफ से अलग-अलग बातें कहीं जा रही हैं। कहीं न कहीं इसमें से एक राजनैतिक एंगेल निकल कर सामने आ रहा है जबकि इसे तकनीकी बिंदु की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।
डॉ. ओ.पी. यादव ने कहा, 'किसी भी कोविड-19 के मरीज को प्लाज्मा थेरेपी 72 घंटों में दी जानी चाहिए। अगर प्लाज्मा थेरेपी छह या सात दिन बाद दी जाती है तो इसका कोई फायदा नहीं होता है, अपितु नुकसान ही होता है। सही चीज का इस्तेमाल अगर सही समय पर न की जाए तो इसकी उपयोगिता समाप्त हो सकती है। एक हाई न्यूट्रालाइजिंग एंटीबॉडी प्लाज्मा वाले डोनर से मरीज को जल्द फायदा मिल सकता है और वो उसके लिए एक तरह से पैसिव इम्यूनिटी या प्रतिरोधक क्षमता बना देता है। लेकिन अगर कोई लो न्यूट्रालाइजिंग एंटीबॉडी वाला डोनर है तो उससे मरीज को फायदा नहीं होगा।' यह भी एक कंडीशन है।
इसके साथ ही डॉ. ओपी ने जानकारी दी कि प्लाज्मा थेरेपी से एलर्जी-रिएक्शन होने की आशंका भी हो सकती है। ट्रांसफ्यूजन से संबंधित लंग-इन्जरी हो सकती है। शरीर में दाने आ सकते हैं और अगर अगली बार आपका ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो तो बॉडी रिएक्ट भी कर सकती है। दरअसल ब्लड ट्रांसफ्यूजन बहुत गंभीर माना जाता है और इसके भारी नुकसान भी होते हैं। इसलिए इससे सतर्क रहने की ज़रुरत है. उन्होंने कहा कि जब ये वायरस आया तब हड़बड़ाहट में उन दवाओं को दिया जाने लगा जो कारगर साबित होती दिख रही थीं और उन्हें इमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन के तहत इस्तेमाल किया जाने लगा था। इसी में एक कोशिश प्लाज्मा बैंक भी था, लेकिन अब हम देख रहे है कि सोलिडेरिटी ट्रायल के तहत चार दवाइयां हटाई जा रही हैं। वो वक्त ऐसा था कि हम सभी ज़रुरत के हिसाब से कदम उठाने ,को मजबूर थे।
उन्होंने कहा, 'अब प्लाज्मा थेरेपी को लेकर दिल्ली सरकार और आईसीएमआर के पास जो डेटा है वो वैज्ञानिकों को सुपुर्द करना चाहिए ताकि वो इसका सही आकलन कर सकें।जैसा कि हम सभी देख रहे हैं, अब आर्थिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं, कई जगह किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, चुनाव का भी माहौल है, राजनीतिक रैलियां चल रही हैं, वहीं सर्दियां भी शुरू हो चुकी हैं, जिसके चलते प्रदूषण का खतरा भी बढ़ता दिखाई दे रहा है। ऐसे में अभी कोरोना की दूसरी लहर आना बाकी है। हालांकि संक्रमितों की संख्या कम हो रही है लेकिन स्थिति गंभीर है।' उन्होंने बताया, 'लोगों को ही एहतियात बरतनी होगी, क्योंकि वैक्सीन कब आएगी, कितनी और कब तक प्रभावी होगी ये देखना होगा।' हम पूरी तरह उस पर निर्भर नहीं रह सकते। इनपुट- बीबीसी हिंदी