झाँसी की वन दुर्गा देवी जी की महिमा

झाँसी की वन दुर्गा देवी जी
झाँसी की वन दुर्गा देवी जी

झाँसी की वन दुर्गा देवी जी की महिमा

आचार्य श्री हरिओम पाठक जी से खास बातचीत

यह माँ दुर्गा जी की बहुत प्राचीन मूर्ति है ,जो ग्वालियर रोड पर जी0 आई0 सी0 की स्थापना से पहले की है । जब यहां जंगल होता था परकोटे के बाहर आने में लोग दिन में भी डरते थे ।

आप जब जी आई सी गेट के अंदर प्रवेश करते है तो वाईं ओर एक पुराना कुंआ है इसी कुंए के पास दुर्गा जी का छोटा मन्दिर था जहां सुबह घूमने आने बाले कुछ लोग यहीं स्नान करके देवी को जल चढ़ाते थे ।और नबरात्री में तो नगर से महिलाएं गाते हुए जल चढ़ाने आतीं थीं ,देहात से भी पद यात्रा करके माताएं आकर यहां जल चढ़ातीं थीं ।इस प्रकार महिलाएं पहले बनदुर्गा फिर पंचकुइया देवी ,लहर देवी ,कैमासन ,मैंमासन , पर जल चढ़ाकर झाँसी की पांच कुलदेवियों को मानतीं थीं ।।

समय की गति बदली सिद्धेश्वर पर 1990 से 1995 तक चले श्री लक्षचंडी महायज्ञ में सवा लाख दुर्गा सप्तशती शक्ति ग्रन्थों के पाठ हुए और विशाल महायज्ञ हुआ जिसमें भारत के सभी प्रदेशो से भक्त आये थे 15 दिन चले इस यज्ञ में सभी शंकराचार्यो ,सन्तों विद्वानों के साथ ही वाहर से पधारे 50 हजार लोगों का रोज भंडारा चलता था ,यहां माँ पीताम्बरा जी ,लक्ष्मी जी की स्थापना की गई थी ,साथ ही प्रतिदिन इन बनदेवी दुर्गा जी की भी पूजा होती थी ।

सब ठीक चल रहा था सिद्धेश्वर पीठ पर सवा करोड़ पीताम्बरा मन्त्र जाप का अनुष्ठान चल रहा था ।तभी जी आई सी में नगर की कुछ माताएं बनदुर्गा माता पर कन्या भोज कराने आईं उन्ही में से एक 5 साल की बच्ची चिल्लाने लगी में यहां नही रहूंगी ,मुझे मेरी बहनों के साथ रहना है भोले के पास रहूंगी ।किसी की समझ नही आ रहा था वह क्या बोल रही है ।महिलाएं डर गईं की कोई भूतनी लग गई लड़की को वह सब सिद्धेश्वर मन्दिर ले कर आईं ,यहां एक बाहर से पधारे सन्त ने कन्या के चरण धोकर पूजा करके मनाया और कहा आपकीं आज्ञा पूरी होगी ।लड़की ठीक हो गई सन्त भी चले गए ,किसी ने उस घटना पर अधिक ध्यान नही दिया ।

जनवरी 2000 में एक तूफान आया और कुंए के समीप खड़ा बड़ा पेड़ उखड़कर दुर्गा मंदिर पर गिरा ,वह छोटा मन्दिर पूरा टूट कर बिखर गया और मोटी डालियों में दब गया । लोगों को बड़ा दुख लगा कि इतनी प्राचीन बनदुर्गा मैया की मूर्ति टूट गई ।

किन्तु आश्चर्य तो तब हुआ जब डालियां काट कर हटाई गई तो मन्दिर तो चूर चूर हो गया पर मूर्ति को खरोंच तक नही आई ,जल्दी से यह खबर फेल गई तो गुरुकुल के आचार्य भी पहुच गए व माँ को कुंए के जल से स्नान कराके सभी के कहने पर सिद्धेश्वर ले आये ,और शंकर जी के मन्दिर के उत्तर द्वार में विराजमान कर दिया । एक भक्त ने तो इस छोटी मूर्ति को हटाकर दूसरी जगह ले गया और यहां नई बड़ी मूर्ति लगबाने लगे किन्तु वह नई मूर्ति ही टूट गई , फिर वही प्राचीन मूर्ति ही विराजमान की और क्षमा मागी ।।

उसके बाद सिद्धेश्वर प्रांगण में ही बड़ा दुर्गा मंदिर हनुमान जी के पीछे बना किन्तु माता वहां नही गईं ।

आज भी बनदेवी जी सिद्धेश्वर भगवान के साथ ही विराजी हैं , प्रतिदिन व नबरात्री में तो हजारों माताएं बहने जल चढ़ाकर परिवार की खुशहाली हेतु मन्नतें मागतीं है , जो माताएं इनको जल चढ़ाती व सुहाग चढ़ाती है उनकी मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं ।

गुसाईंयों के बलबंत नगर झाँसी की यह पाँच कुलदेवियाँ है

1, सिद्धेश्वरी बनदेबी दुर्गा जी ,

2,सीतला जी पंचकुइया ,

3,रणचंडी लहरदेवी ,

4,कामाख्या कैमासन ,

5,मीनाक्षी मैंमासन ।

व यह 2 सिद्ध माता हैं ,रानी साहब की आराध्य देवी महालक्ष्मी जी ,व पूज्य पंडा जी की इष्टदेवी महाकाली जी

लक्ष्मीताल ।। रानी साहब ने लक्ष्मी ताल के चारों ओर नवग्रह के नौ मन्दिर बनवाये थे जो आज भी हैं पुराने नागरिक जानते हैं ।। जय माई ||

आचार्य श्री हरिओम पाठक, सिद्धेश्वर सिद्ध पीठ, ग्वालियर रोड, झाँसी

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