(कथा की शुरुआत)
योगिनी एकादशी, जो आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है, हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और पुण्यदायी मानी जाती है। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति दिलाने और मोक्ष प्रदान करने वाला है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह कथा राजा कुबेर और उनके सेवक हेममाली की कहानी से जुड़ी है, जो हमें भक्ति, पापमोचन और भगवान विष्णु की कृपा का महत्व सिखाती है।
बहुत समय पहले, अलकापुरी नामक नगर पर कुबेर का शासन था। कुबेर, जो धन के देवता थे, भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। वे प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष प्रकार के फूल चढ़ाते थे। उनका एक सेवक था हेममाली, जो भगवान शिव की पूजा के लिए हर दिन मानसरोवर से फूल लाकर कुबेर को देता था। हेममाली का कार्य था भगवान शिव के लिए सुंदर फूलों को एकत्रित करना और उन्हें अर्पित करना।
हेममाली अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था। एक दिन, जब हेममाली मानसरोवर से फूल लेकर वापस आ रहा था, तब वह अपनी पत्नी के आकर्षण में इतना डूब गया कि अपने कर्तव्यों को भूल गया। वह समय पर कुबेर के पास पूजा के लिए फूल नहीं पहुंचा सका। कुबेर को जब यह बात पता चली, तो उन्हें अत्यधिक क्रोध आया।
कुबेर ने हेममाली की इस लापरवाही को बहुत बड़ा अपराध माना और क्रोधित होकर उसे श्राप दे दिया। उन्होंने कहा, "हे हेममाली, तुमने भगवान शिव की पूजा में बाधा उत्पन्न की है और अपने कर्तव्य से विमुख होकर पाप किया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम कोढ़ी बन जाओ और अपनी पत्नी से दूर जंगलों में भटकते रहो।"
कुबेर के श्राप से हेममाली को तुरंत कोढ़ हो गया और वह अपने घर से निष्कासित होकर जंगल में भटकने लगा। उसकी पीड़ा बढ़ती गई, और वह अत्यंत दुखी हो गया। उसे अपने पापों का एहसास हुआ और उसने भगवान से क्षमा मांगने की ठानी।
हेममाली अपनी पीड़ा और दुख से मुक्ति पाने के लिए जंगल में इधर-उधर भटकता रहा। एक दिन, उसकी भेंट महान ऋषि मार्कंडेय से हुई। ऋषि मार्कंडेय ने हेममाली की दशा देखकर उसे पूछा, "हे पुत्र, तुम कौन हो और इस प्रकार कष्ट क्यों सह रहे हो?"
हेममाली ने ऋषि को अपनी पूरी कहानी सुनाई और कहा, "हे ऋषि, मैं अपने पापों के कारण इस कष्ट में हूँ। कृपया मुझे इससे मुक्त होने का उपाय बताएं।"
ऋषि मार्कंडेय ने उसे सांत्वना दी और कहा, "हेममाली, तुम्हारे पापों का निवारण केवल भगवान विष्णु की कृपा से हो सकता है। तुम्हें आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत का पालन करने से तुम्हारे सभी पाप समाप्त हो जाएंगे और तुम अपने पूर्व स्वरूप में लौट आओगे।"
ऋषि मार्कंडेय के परामर्श के अनुसार, हेममाली ने पूरे विधि-विधान से योगिनी एकादशी का व्रत किया। उसने भगवान विष्णु की पूजा की और पूरे दिन निराहार और निर्जल रहकर उपवास किया। इस व्रत के प्रभाव से हेममाली के सारे पाप नष्ट हो गए, और उसे कोढ़ से मुक्ति मिली। वह अपने पुराने रूप में वापस आ गया और पुनः कुबेर के पास लौट आया। कुबेर ने भी उसे क्षमा कर दिया और उसे पुनः अपने सेवा में नियुक्त कर लिया।
योगिनी एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितने भी पाप क्यों न हो जाएं, भगवान विष्णु की भक्ति और एकादशी व्रत के पालन से उन सभी पापों से मुक्ति पाई जा सकती है। इस व्रत से न केवल व्यक्ति के पापों का नाश होता है, बल्कि उसे भगवान की कृपा से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
"योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।"