वरूथिनी एकादशी (वैशाख कृष्ण एकादशी)

Varuthini Ekadashi (Vaishakh Krishna Ekadashi)
Varuthini Ekadashi (Vaishakh Krishna Ekadashi)Varuthini Ekadashi (Vaishakh Krishna Ekadashi)
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वरूथिनी एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

वरूथिनी एकादशी, जिसे वैशाख कृष्ण एकादशी के रूप में मनाया जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है। यह एकादशी विशेष रूप से जीवन के कष्टों से मुक्ति, पापों का नाश, और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए, इस अद्भुत वरूथिनी एकादशी की कथा को विस्तार से जानें, जो हमें धर्म, तपस्या और भगवान की कृपा का महत्व सिखाती है।

कथा का प्रारंभ

प्राचीन समय में, नर्मदा नदी के किनारे मांडव्य नामक एक राजा का राज्य था। राजा मांडव्य धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और दयालु थे। वे सदैव प्रजा की भलाई के कार्यों में लीन रहते थे और अपने राज्य को सुख-शांति से संचालित करते थे। राजा मांडव्य के राज्य में किसी को भी किसी प्रकार की कठिनाई या दुख नहीं था, क्योंकि राजा खुद धर्म के मार्ग पर चलते थे और अपने राज्य को भी उसी दिशा में ले जाते थे।

एक दिन, जब राजा मांडव्य अपने राज्य की देखरेख के लिए वन की ओर गए, तो उन्हें एक भयानक घटना का सामना करना पड़ा। जंगल में अचानक एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया। राजा मांडव्य ने उस भालू से लड़ने का बहुत प्रयास किया, लेकिन दुर्भाग्यवश, भालू ने उनके पैर को अपने जबड़ों में फंसाकर उसे घायल कर दिया। राजा का एक पैर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया, और वह भयंकर पीड़ा में डूब गए।

राजा मांडव्य की पीड़ा

राजा मांडव्य अत्यंत दुखी हो गए। उनका शारीरिक कष्ट इतना बढ़ गया कि वह अपने राज्य की जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ हो गए। उन्होंने अपनी समृद्धि और वैभव को खोते हुए देखा और यह सोचने लगे कि उनका यह दुखदायी जीवन कब समाप्त होगा। उनकी यह दशा देखकर उनके राज्य के लोग भी अत्यंत दुखी थे।

इस पीड़ा और संकट की घड़ी में, राजा मांडव्य ने तपस्या का मार्ग अपनाने का निर्णय लिया। उन्होंने नर्मदा नदी के तट पर जाकर भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होकर तपस्या शुरू कर दी। उनका उद्देश्य था भगवान की कृपा प्राप्त करना ताकि उन्हें इस कष्ट से मुक्ति मिल सके।

ऋषि वसिष्ठ का परामर्श

एक दिन, जब राजा मांडव्य नर्मदा नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे, तब वहां से महर्षि वसिष्ठ का आगमन हुआ। ऋषि वसिष्ठ ने राजा की कठिन तपस्या और कष्टों को देखा और उनसे पूछा, "हे राजन, तुम्हारी यह दशा कैसे हुई? और तुम इस पीड़ा से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे हो?"

राजा मांडव्य ने अपनी पूरी कहानी ऋषि वसिष्ठ को सुनाई और उनसे समाधान का उपाय पूछा। ऋषि वसिष्ठ ने कहा, "हे राजन, भगवान विष्णु की कृपा से ही तुम्हें इस कष्ट से मुक्ति मिल सकती है। तुम वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की वरूथिनी एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के पालन से तुम्हारे सभी पाप धुल जाएंगे और तुम्हें शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलेगी। भगवान विष्णु स्वयं तुम्हारी रक्षा करेंगे।"

वरूथिनी एकादशी व्रत का पालन

राजा मांडव्य ने महर्षि वसिष्ठ की आज्ञा का पालन करते हुए वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। उन्होंने पूरे नियम और श्रद्धा के साथ व्रत का पालन किया और भगवान विष्णु की पूजा की। इस व्रत के प्रभाव से राजा मांडव्य के सभी पाप नष्ट हो गए, और उनके शरीर के कष्ट भी समाप्त हो गए। उनका टूटा हुआ पैर पुनः ठीक हो गया और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए। भगवान विष्णु की कृपा से राजा मांडव्य को न केवल शारीरिक मुक्ति मिली, बल्कि उन्होंने अपने राज्य में पुनः शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया।

कथा का संदेश

वरूथिनी एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और एकादशी व्रत का पालन करने से जीवन के सबसे बड़े कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं। इस व्रत से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो कोई इस व्रत का पालन करता है, वह भगवान विष्णु की कृपा से जीवन के सभी संकटों से मुक्त हो जाता है।

"वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं, और भगवान विष्णु की कृपा से उसे जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।"

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