Rama Ekadashi (Kartik Krishna Ekadashi)
Rama Ekadashi (Kartik Krishna Ekadashi)

रमा एकादशी (कार्तिक कृष्ण एकादशी)

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रमा एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

रमा एकादशी, जिसे कार्तिक कृष्ण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी और महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। आइए, इस पवित्र व्रत से जुड़ी कथा को विस्तार से जानें, जो धर्म, भक्ति और भगवान विष्णु की कृपा का अद्भुत उदाहरण है।

कथा का प्रारंभ

बहुत समय पहले, एक प्राचीन नगर में मुचुकुंद नामक एक महान राजा का शासन था। राजा मुचुकुंद अत्यंत धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और सत्यवादी थे। उनके राज्य में सभी लोग सुखी और समृद्ध थे, क्योंकि राजा भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। वे नियमित रूप से भगवान विष्णु की पूजा करते थे और सभी धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते थे। उनके शासन में धर्म का पालन करना सर्वोपरि था, और राजा ने कभी भी अधर्म का साथ नहीं दिया।

लेकिन राजा मुचुकुंद के जीवन में एक समस्या थी—उनका पुत्र दुर्व्यसनी और अधर्म के मार्ग पर चल पड़ा था। राजा ने अपने पुत्र को बार-बार समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह अपने दुष्कर्मों से पीछे नहीं हटा। इससे राजा अत्यंत दुखी थे। राजा ने भगवान विष्णु की शरण में जाकर अपने पुत्र के उद्धार के लिए प्रार्थना की।

राजा की प्रार्थना और नारद मुनि का आगमन

एक दिन, नारद मुनि राजा मुचुकुंद के दरबार में पधारे। राजा ने नारद मुनि का स्वागत किया और अपने पुत्र की दुष्ट प्रवृत्तियों के बारे में बताया। नारद मुनि ने राजा की पीड़ा को समझा और कहा, "हे राजन, यदि तुम अपने पुत्र का उद्धार चाहते हो और उसे पापों से मुक्ति दिलाना चाहते हो, तो तुम्हें रमा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस एकादशी का व्रत भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का सबसे उत्तम साधन है। इसके पालन से समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।"

रमा एकादशी का व्रत और पुत्र का उद्धार

नारद मुनि की सलाह से राजा मुचुकुंद ने रमा एकादशी का व्रत किया। उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की और दिनभर उपवास रखा। इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुए और राजा के पुत्र को उसके सभी पापों से मुक्त कर दिया। राजा का पुत्र दुर्व्यसन और अधर्म से मुक्त होकर धर्म के मार्ग पर लौट आया और उसने अपने जीवन में सत्य और धर्म का पालन करने का संकल्प लिया।

भगवान विष्णु की कृपा

भगवान विष्णु ने राजा मुचुकुंद से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और कहा, "हे राजन, तुमने सच्चे मन से रमा एकादशी का व्रत किया है, इसलिए तुम्हारे पुत्र को पापों से मुक्ति मिली है। इस व्रत का पालन करने से तुम्हें और तुम्हारे परिवार को हमेशा सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होगी।"

राजा मुचुकुंद ने भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का आभार प्रकट किया और अपने राज्य में सभी लोगों को इस व्रत के पालन के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार रमा एकादशी का व्रत उनके राज्य में बहुत ही महत्व रखने लगा।

कथा का संदेश

रमा एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की भक्ति और व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन के सभी पापों का नाश हो सकता है। इस व्रत से व्यक्ति को न केवल पापमुक्ति मिलती है, बल्कि उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी आती है। रमा एकादशी का व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपने परिवार और स्वयं के कल्याण के लिए भगवान की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं।

"रमा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं, और भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।"

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