(कथा की शुरुआत)
पवित्रा एकादशी, जिसे श्रावण शुक्ल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है। यह एकादशी भगवान विष्णु की भक्ति का प्रतीक है और इसे करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। इस पवित्र व्रत से जुड़ी एक रोचक और प्रेरणादायक कथा है, जो भगवान विष्णु की कृपा और धर्म के प्रति समर्पण का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है।
बहुत समय पहले, प्राचीन भारत में महिष्मति नामक नगर में राजा महिजीत का शासन था। राजा महिजीत एक धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और प्रजा का ख्याल रखने वाले राजा थे। लेकिन राजा महिजीत का एक बहुत बड़ा दुःख था—उनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने कई वर्षों तक संतान की प्राप्ति के लिए पूजा-अर्चना और यज्ञ किए, परंतु उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। इस कारण से राजा और रानी दोनों अत्यंत दुखी रहते थे और हर दिन भगवान से संतान प्राप्ति की प्रार्थना करते थे।
राजा महिजीत अपनी चिंता से मुक्त नहीं हो पा रहे थे। एक दिन, राजा ने अपने राज्य के विद्वानों और पुरोहितों से इसका उपाय पूछा। उन्होंने राजा को सुझाव दिया कि वे किसी महान तपस्वी या ऋषि से मार्गदर्शन लें। राजा महिजीत ने इस सुझाव को माना और महान तपस्वी लोमश ऋषि की शरण में गए।
लोमश ऋषि ने राजा की व्यथा सुनी और ध्यानमग्न होकर उनके कर्मों का अवलोकन किया। फिर ऋषि ने कहा, "हे राजन, पूर्वजन्म के किसी पाप के कारण ही तुम्हें इस जीवन में संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिल रहा है। लेकिन चिंता मत करो, इसका निवारण संभव है। श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को पवित्रा एकादशी कहा जाता है। यदि तुम और तुम्हारी रानी इस एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करेंगे, तो तुम्हें संतान सुख की प्राप्ति होगी और तुम्हारे जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे।"
राजा महिजीत ने ऋषि लोमश की आज्ञा का पालन करते हुए पवित्रा एकादशी का व्रत किया। उन्होंने और रानी ने पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की और पूरे दिन उपवास रखा। इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, "हे राजन, तुम्हारे सच्चे मन और भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हें शीघ्र ही संतान सुख प्राप्त होगा, और तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।"
भगवान विष्णु के आशीर्वाद से राजा महिजीत और रानी को कुछ समय बाद एक सुंदर और तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म से पूरे राज्य में खुशियाँ मनाई गईं और राजा का जीवन सुख-समृद्धि से भर गया। राजा महिजीत ने भगवान विष्णु की कृपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और अपने राज्य को धर्म और न्याय के मार्ग पर चलाया।
पवित्रा एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त की जा सकती है। चाहे जीवन में कितने भी कष्ट और पाप क्यों न हों, एकादशी व्रत के पालन से उन सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पवित्रा एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपने जीवन में सुख, समृद्धि और संतान की प्राप्ति की कामना करते हैं।
"पवित्रा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, और भगवान विष्णु की कृपा से उसे जीवन में सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।"