(कथा की शुरुआत)
पाशंकुशा एकादशी, जिसे आश्विन शुक्ल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और समस्त पापों के नाश के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। पाशंकुशा एकादशी की यह कथा हमें भक्ति, धर्म और भगवान विष्णु की अनंत कृपा का महत्व सिखाती है।
बहुत समय पहले, महिष्मति नगरी में महाराज धर्मराज का शासन था। राजा धर्मराज धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाले, भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी, क्योंकि राजा का शासन न्याय, धर्म और सत्य पर आधारित था। राजा ने अपनी प्रजा के कल्याण के लिए कई यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान किए। लेकिन समय के साथ, राजा धर्मराज अपने कर्मों में इतना व्यस्त हो गए कि उन्होंने भगवान विष्णु की आराधना और व्रत करना छोड़ दिया। धीरे-धीरे, उनके जीवन में कई कठिनाइयाँ आने लगीं और राज्य में अशांति फैलने लगी।
राजा धर्मराज अपनी प्रजा और राज्य के दुखों को देखकर अत्यंत परेशान हो गए। वह सोचने लगे कि ऐसा क्यों हो रहा है, जबकि वह धर्म का पालन कर रहे थे। एक दिन, उन्हें भगवान विष्णु के दिव्यदूत नारद मुनि का आगमन हुआ। नारद मुनि ने राजा से कहा, "हे राजन, तुमने धर्म और सत्य का पालन किया है, लेकिन भगवान विष्णु की भक्ति को तुमने भुला दिया है। यह समय है कि तुम पाशंकुशा एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करो। इस व्रत का पालन करने से तुम्हारे सभी पापों का नाश होगा और तुम्हारे राज्य में शांति और समृद्धि लौट आएगी।"
नारद मुनि ने राजा को बताया कि पाशंकुशा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की भक्ति का विशेष पर्व है। इस व्रत को करने से न केवल व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं, बल्कि भगवान विष्णु की कृपा से जीवन की समस्त समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। जो कोई इस व्रत का पालन करता है, उसे स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है और भगवान विष्णु के सान्निध्य में रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
नारद मुनि की बातों से प्रेरित होकर राजा धर्मराज ने पाशंकुशा एकादशी का व्रत करने का निर्णय लिया। उन्होंने पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की और दिनभर उपवास रखा। उनके साथ उनके राज्य की प्रजा ने भी इस व्रत का पालन किया। भगवान विष्णु की आराधना और व्रत के प्रभाव से राज्य में शांति और समृद्धि लौट आई। राजा के पाप धुल गए और उनका जीवन फिर से सुखमय हो गया।
भगवान विष्णु ने राजा धर्मराज से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और कहा, "हे राजन, तुमने सच्चे मन से पाशंकुशा एकादशी का व्रत किया है। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो गए हैं और तुम्हारे राज्य में शांति लौट आई है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को न केवल जीवन में सुख प्राप्त होता है, बल्कि मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।"
पाशंकुशा एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, भगवान विष्णु की भक्ति और व्रत का पालन करने से सभी कष्टों का निवारण होता है। इस व्रत से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
"पाशंकुशा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।"