पापमोचनी एकादशी (चैत्र कृष्ण एकादशी)

Papamochani Ekadashi (Chaitra Krishna Ekadashi)
Papamochani Ekadashi (Chaitra Krishna Ekadashi)Papamochani Ekadashi (Chaitra Krishna Ekadashi)
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पापमोचनी एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है, और उसमें से पापमोचनी एकादशी (चैत्र कृष्ण एकादशी) का स्थान विशेष है। इस एकादशी को पापों का नाश करने वाली माना गया है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति अपने जीवन के सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए, इस अद्भुत व्रत की कथा को विस्तार से जानें, जो हमें भक्ति और पापमोचन का गूढ़ संदेश देती है।

कथा का प्रारंभ

प्राचीन समय की बात है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन एक महान तपस्वी मुनि मेधावी ऋषि वन में तपस्या कर रहे थे। वह बहुत ही तपस्वी और धर्मप्रिय थे। उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि देवता भी उनकी साधना से प्रभावित थे। उनके तप से चारों दिशाओं में शांति और पवित्रता फैली हुई थी।

मुनि मेधावी का आश्रम एक घने वन के बीचों-बीच था, जहाँ वह नित्य भगवान विष्णु की आराधना में लीन रहते थे। उनके तप से प्रभावित होकर देवताओं ने उनकी तपस्या में विघ्न डालने का निर्णय लिया, ताकि उनका तप कमजोर हो जाए और वह स्वर्ग के लिए संकट पैदा न कर सकें।

अप्सरा की आगमन

देवताओं ने अपनी योजना के तहत अप्सरा मंजुघोषा को मुनि मेधावी की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। मंजुघोषा अत्यंत सुंदर और मनमोहक अप्सरा थी। वह मुनि मेधावी के आश्रम के पास जाकर नृत्य और संगीत का प्रदर्शन करने लगी। उसकी सुंदरता और मधुर संगीत ने मुनि मेधावी का ध्यान खींच लिया।

मुनि मेधावी का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो गया, और वह उसकी मोहिनी माया में फंस गए। उनकी तपस्या भंग हो गई, और उन्होंने मंजुघोषा के साथ कई वर्षों तक अपना समय व्यतीत किया। उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहा कि कितने वर्ष बीत चुके हैं।

मुनि मेधावी की आत्मग्लानि

कई वर्षों बाद, मुनि मेधावी को अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने देखा कि उनकी तपस्या भंग हो चुकी है और वह मंजुघोषा के मोह में फंस गए थे। आत्मग्लानि और पश्चाताप से उनका हृदय भर गया। उन्होंने अपनी साधना को खो दिया था और अब उन्हें यह चिंता सताने लगी कि उनके पाप कैसे धुलेंगे।

मंजुघोषा ने भी मुनि की दशा देखकर अपनी गलती मानी और उनसे क्षमा मांगी। मुनि मेधावी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और उनसे अपने पापों के निवारण के लिए मार्गदर्शन मांगा।

ऋषि च्यवन का परामर्श

अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए मुनि मेधावी अपने पिता ऋषि च्यवन के पास गए। उन्होंने अपनी भूल और पापों का निवारण करने का उपाय पूछा। ऋषि च्यवन ने कहा, "हे पुत्र, तुमने भटक कर अपनी तपस्या और धर्म का त्याग किया है, लेकिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद से तुम्हें पुनः मुक्ति प्राप्त हो सकती है। चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन यदि तुम पूरे विधि-विधान से व्रत करोगे और भगवान विष्णु की आराधना करोगे, तो तुम्हारे सभी पाप धुल जाएंगे।"

पापमोचनी एकादशी का पालन

मुनि मेधावी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। उन्होंने पूरी श्रद्धा और नियम के साथ पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से मुनि मेधावी के सारे पाप धुल गए और उन्हें पुनः मोक्ष का मार्ग प्राप्त हुआ। भगवान विष्णु ने उनकी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें मुक्त किया।

कथा का संदेश

पापमोचनी एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी बड़ी भूल क्यों न हो जाए, भगवान विष्णु की शरण में आकर और पवित्र व्रत का पालन कर सभी पापों से मुक्ति पाई जा सकती है। यह व्रत हमें आत्मशुद्धि और मोक्ष का मार्ग दिखाता है।

"पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और वह भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष प्राप्त करता है।"

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