(कथा की शुरुआत)
पद्मिनी एकादशी, जिसे आश्विन शुक्ल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण और पुण्यदायी व्रत माना जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से मोक्ष प्राप्ति, पापों के नाश और भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए की जाती है। पद्मिनी एकादशी की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और व्रत के पालन से जीवन की सबसे बड़ी कठिनाइयों का भी समाधान प्राप्त हो सकता है।
प्राचीन काल की बात है। हरिशचंद्रपुर नामक नगर में एक धर्मनिष्ठ और तपस्वी राजा हरिशचंद्र का शासन था। राजा हरिशचंद्र अपनी सत्यनिष्ठा और धर्मप्रियता के लिए पूरे ब्रह्मांड में विख्यात थे। उन्होंने जीवन में कभी असत्य का सहारा नहीं लिया, चाहे कैसी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो। लेकिन उनके जीवन में एक समय ऐसा आया जब उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
राजा हरिशचंद्र पर एक भयंकर विपत्ति आ पड़ी। वह अपने राज्य और धन-संपत्ति से वंचित हो गए और अत्यधिक दुख और कष्टों में जीवन व्यतीत करने लगे। उन्होंने सत्य और धर्म का पालन करने के कारण अपने परिवार को भी खो दिया। राजा हरिश्चंद्र अत्यधिक दुखी और कष्टमय जीवन जीने लगे, लेकिन फिर भी उन्होंने सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा।
राजा हरिशचंद्र की यह कठिनाई भोगते-भोगते बहुत समय बीत गया। एक दिन, उनकी भेंट महर्षि गौतम से हुई। ऋषि गौतम ने राजा की दुर्दशा को देखा और उनसे पूछा, "हे राजन, तुम इतने धर्मनिष्ठ और सत्यवादी हो, फिर भी तुम्हें इस प्रकार कष्ट क्यों हो रहा है?"
राजा हरिशचंद्र ने अपनी व्यथा महर्षि गौतम को बताई। ऋषि गौतम ने कहा, "हे राजन, यह तुम्हारे पिछले जन्म के कुछ पापों का फल है, जिसके कारण तुम इस जन्म में इतनी कठिनाइयों का सामना कर रहे हो। लेकिन चिंता मत करो, इसका निवारण संभव है। तुम्हें आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पद्मिनी एकादशी कहा जाता है, का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के पालन से तुम्हारे समस्त पाप धुल जाएंगे और तुम्हें जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त होगी।"
ऋषि गौतम की आज्ञा का पालन करते हुए, राजा हरिशचंद्र ने पद्मिनी एकादशी का व्रत करने का निश्चय किया। उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा की और इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिशचंद्र के सभी पाप नष्ट हो गए और उनके जीवन की कठिनाइयाँ समाप्त हो गईं।
भगवान विष्णु ने राजा हरिशचंद्र की भक्ति और व्रत से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। उनके आशीर्वाद से राजा को पुनः अपना राज्य, परिवार और संपत्ति प्राप्त हो गई। राजा हरिशचंद्र ने भगवान विष्णु की कृपा के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और पुनः धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
पद्मिनी एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी बड़ी कठिनाइयाँ क्यों न हों, भगवान विष्णु की भक्ति और व्रत का पालन करने से सभी समस्याओं का समाधान मिल सकता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी है, जो जीवन में पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं।
"पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।"