निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी)

Nirjala Ekadashi (Jyestha Shukla Ekadashi)
Nirjala Ekadashi (Jyestha Shukla Ekadashi)
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निर्जला एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

निर्जला एकादशी, जिसे "भीमसेनी एकादशी" के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक मानी जाती है। यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन किया जाता है और इसका पालन बिना जल के उपवास करने से होता है। कहा जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए इस अद्भुत निर्जला एकादशी की कथा को जानें, जो भीमसेन की कथा से जुड़ी हुई है।

कथा का प्रारंभ

महाभारत काल में, पांडवों के पांच भाई धर्म और कर्तव्य का पालन करते थे। इनमें भीमसेन सबसे बलशाली और भोजनप्रिय थे। युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, और सहदेव सभी नियमित रूप से एकादशी व्रत का पालन करते थे, लेकिन भीमसेन के लिए उपवास करना अत्यधिक कठिन था। वह भोजन के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे और इसलिए एकादशी का व्रत नहीं कर पाते थे।

भीमसेन ने यह महसूस किया कि वह अपने भाइयों की तरह भगवान विष्णु की भक्ति नहीं कर पा रहे हैं, और इससे उन्हें बहुत दुःख हुआ। उन्होंने अपने गुरु श्री व्यास जी से मार्गदर्शन मांगा और पूछा, "हे गुरुदेव, मैं अपने भाइयों की तरह एकादशी व्रत नहीं कर सकता क्योंकि मैं भोजन के बिना नहीं रह पाता हूँ। क्या मेरे लिए कोई ऐसा उपाय है जिससे मैं भी एकादशी का पुण्य प्राप्त कर सकूं?"

व्यास जी की सलाह

व्यास जी ने भीमसेन की बात सुनी और कहा, "हे भीम, यदि तुम सभी एकादशियों का फल एक ही व्रत से प्राप्त करना चाहते हो, तो तुम्हें निर्जला एकादशी का व्रत करना होगा। इस व्रत में तुम्हें पूरे दिन जल भी ग्रहण नहीं करना होगा। यह व्रत कठिन है, लेकिन इसका फल सभी एकादशियों के बराबर होता है। जो व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष की प्राप्ति करता है।"

भीमसेन ने गुरुदेव व्यास जी की आज्ञा का पालन करने का निश्चय किया। उन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत करने की प्रतिज्ञा ली और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गए।

निर्जला व्रत का पालन

निर्जला एकादशी के दिन भीमसेन ने पूरे नियम और श्रद्धा के साथ व्रत किया। उन्होंने दिनभर न तो अन्न ग्रहण किया, न ही जल। वह दिनभर उपवास करते रहे और भगवान विष्णु की पूजा करते रहे। इस कठिन व्रत को निभाते हुए भीमसेन को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति और दृढ़ संकल्प से व्रत को पूरा किया।

इस व्रत के पूर्ण होने के बाद, भगवान विष्णु ने भीमसेन को दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद दिया। भगवान ने कहा, "हे भीम, तुमने अत्यंत कठिन निर्जला एकादशी का व्रत पूरा किया है। इस व्रत के फलस्वरूप तुम्हें सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा और तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति करता है।"

व्रत का महत्व

निर्जला एकादशी का व्रत करने से न केवल व्यक्ति के सारे पाप समाप्त होते हैं, बल्कि वह भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति भी करता है। यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो किसी कारणवश अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते। इस व्रत का एक दिन का फल अन्य सभी एकादशियों के व्रतों के बराबर होता है।

भीमसेन के कठिन प्रयास और दृढ़ निश्चय ने उन्हें यह अद्वितीय पुण्य प्रदान किया। इसी कारण से, इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

कथा का संदेश

निर्जला एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति और संकल्प से जीवन की कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। भगवान विष्णु की भक्ति और निर्जला व्रत का पालन करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।

"निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।"

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