कामदा एकादशी (चैत्र शुक्ल एकादशी)

Kamada Ekadashi (Chaitra Shukla Ekadashi)
Kamada Ekadashi (Chaitra Shukla Ekadashi)Kamada Ekadashi (Chaitra Shukla Ekadashi)
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कामदा एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

कामदा एकादशी, जिसे चैत्र शुक्ल एकादशी के रूप में मनाया जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और विशेष महत्व रखती है। यह एकादशी उन लोगों के लिए अत्यधिक फलदायी मानी जाती है जो अपने जीवन में इच्छा की पूर्ति और पापों से मुक्ति की कामना रखते हैं। इस व्रत का पालन करने से न केवल इच्छाओं की पूर्ति होती है, बल्कि व्यक्ति के सभी पापों का भी नाश होता है।

आइए, इस अद्भुत कामदा एकादशी की कथा को विस्तार से जानें, जो हमें भक्ति, क्षमा और भगवान विष्णु की कृपा के बारे में सिखाती है।

कथा का प्रारंभ

बहुत समय पहले, भोगीपुर नामक नगर में एक राजा पुंडरीक का शासन था। यह नगर बेहद सुंदर और समृद्ध था, और यहाँ अप्सराओं, गंधर्वों, किन्नरों और अन्य दिव्य प्राणियों का निवास था। नगर में हमेशा नृत्य, संगीत और कला का आयोजन होता रहता था। नगर के सभी लोग अत्यंत सुखी और समृद्ध जीवन व्यतीत करते थे।

इसी नगर में ललित नामक एक गंधर्व अपनी पत्नी ललिता के साथ रहता था। ललित एक बहुत ही कुशल गायक और कलाकार था, और उसकी पत्नी भी अत्यंत सुंदर और गुणी थी। दोनों का जीवन अत्यंत प्रेमपूर्ण और सुखद था। वे एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे।

ललित का दोष

एक दिन, राजा पुंडरीक के दरबार में एक भव्य आयोजन हुआ, जिसमें सभी गंधर्वों को अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया गया। ललित को भी अपनी गायकी का प्रदर्शन करना था, लेकिन उस दिन उसका मन अपनी पत्नी ललिता में लगा हुआ था। वह ललिता के बारे में ही सोचता रहा और सही ढंग से गान नहीं कर सका।

राजा पुंडरीक को ललित की इस गलती पर अत्यधिक क्रोध आया। उन्होंने इसे गंभीर अपराध माना और ललित को श्राप दे दिया, "तुमने मेरे दरबार का अपमान किया है, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम एक भयंकर राक्षस में परिवर्तित हो जाओ।"

राजा के श्राप से ललित तुरंत ही राक्षस बन गया। उसका शरीर भयानक और विकराल हो गया, और उसकी सुंदरता गायब हो गई। वह जंगलों में भटकने लगा और अपना मानवीय रूप खो बैठा। उसकी पत्नी ललिता इस घटना से अत्यंत दुखी हो गई।

ललिता का संघर्ष और तपस्या

अपनी पति की इस दशा को देखकर ललिता अत्यंत दुखी हो गई। उसने निश्चय किया कि वह अपने पति को इस श्राप से मुक्त करवाएगी। ललिता ने भगवान विष्णु की तपस्या शुरू की और अपनी संपूर्ण भक्ति से भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे उसके पति को राक्षस रूप से मुक्त करें।

कई वर्षों तक तपस्या करने के बाद, ललिता एक दिन ऋषि श्रृंगी के पास पहुंची। उसने ऋषि से अपने पति की दशा और श्राप के बारे में बताया। ऋषि श्रृंगी ने उसकी बात सुनी और कहा, "हे देवी, तुमने अत्यंत कठिनाई और धैर्य से तपस्या की है। तुम्हें कामदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत का पालन करने से तुम्हारे पति के सभी पाप धुल जाएंगे, और वह अपने पुराने स्वरूप में लौट आएगा।"

कामदा एकादशी का पालन और भगवान विष्णु की कृपा

ललिता ने ऋषि श्रृंगी के बताए अनुसार चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन कामदा एकादशी का व्रत किया। उसने पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की और व्रत का पालन किया। उसकी भक्ति और व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए।

भगवान विष्णु ने ललिता को दर्शन दिए और कहा, "हे देवी, तुम्हारी भक्ति और व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पति को श्राप से मुक्ति मिलेगी। वह अब राक्षस रूप से मुक्त होकर पुनः गंधर्व रूप में वापस आ जाएगा।"

भगवान विष्णु की कृपा से ललित को श्राप से मुक्ति मिली और वह अपने पुराने सुंदर स्वरूप में वापस आ गया। ललिता और ललित ने पुनः एक साथ सुखमय जीवन बिताया।

कथा का संदेश

कामदा एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति, धैर्य और श्रद्धा से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत का पालन न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि इच्छाओं की पूर्ति भी करता है। यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो अपने जीवन में किसी विशेष इच्छा की पूर्ति चाहते हैं और पापमुक्ति की कामना करते हैं।

"कामदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं, और उसे भगवान विष्णु की कृपा से अपनी इच्छाओं की पूर्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।"

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