(कथा की शुरुआत)
इंदिरा एकादशी, जिसे आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी के रूप में मनाया जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र मानी जाती है। यह एकादशी विशेष रूप से पितरों के उद्धार और पापमोचन के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और वे अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं। इस कथा के माध्यम से हम जानेंगे कि कैसे भगवान विष्णु की भक्ति और इंदिरा एकादशी का व्रत पितरों को मोक्ष दिलाता है और उनके कष्टों का निवारण करता है।
बहुत समय पहले, महिष्मति नगरी में एक अत्यंत धर्मनिष्ठ राजा इंद्रसेन का शासन था। राजा इंद्रसेन न्यायप्रिय, सत्यवादी और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनके राज्य में सभी लोग सुखी और समृद्ध थे। राजा इंद्रसेन के पास हर प्रकार की भौतिक सुख-सुविधा थी, परंतु उनके मन में एक गहरी चिंता थी—उनके पितृलोक में रह रहे पितरों का उद्धार नहीं हो पाया था।
एक दिन राजा इंद्रसेन अपनी प्रजा के साथ सभा में बैठे थे, तभी नारद मुनि उनके दरबार में पधारे। राजा ने नारद मुनि का आदरपूर्वक स्वागत किया और उनसे पूछा, "हे मुनिवर, कृपया मुझे यह बताइए कि मेरे पितरों का उद्धार कैसे हो सकता है? मुझे इस बात की चिंता है कि मेरे पूर्वज अभी भी पितृलोक में कष्ट सह रहे हैं।"
नारद मुनि ने राजा इंद्रसेन की चिंता को समझते हुए कहा, "हे राजन, तुम्हारे पितृलोक में रह रहे पितर अभी तक अपने पापों के कारण कष्ट में हैं। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सकता है। इसके लिए तुम्हें आश्विन कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे पितरों को पापमुक्ति प्राप्त होगी और वे मोक्ष की ओर अग्रसर होंगे।"
राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि से व्रत की विधि पूछी, और नारद मुनि ने उन्हें विस्तार से बताया कि इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा करनी होगी, दिनभर उपवास रखना होगा, और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी होगी। इस व्रत के प्रभाव से पितरों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है।
नारद मुनि के मार्गदर्शन के अनुसार, राजा इंद्रसेन ने इंदिरा एकादशी का व्रत करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने परिवार और प्रजा के साथ मिलकर पूरे विधि-विधान से व्रत किया। दिनभर उपवास और भगवान विष्णु की आराधना के बाद राजा ने पितरों के उद्धार के लिए प्रार्थना की।
इस व्रत के प्रभाव से राजा इंद्रसेन के पितर पितृलोक से मुक्त हो गए और उन्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त हुआ, और राजा इंद्रसेन को पितरों के उद्धार की खुशी मिली।
इंदिरा एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और व्रत का पालन करने से न केवल व्यक्ति के पापों का नाश होता है, बल्कि उसके पितरों को भी मोक्ष प्राप्त होता है। यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने पितरों की आत्मा की शांति और उद्धार की कामना करते हैं। इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितरों को स्वर्ग प्राप्त होता है और उन्हें जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
"इंदिरा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा से उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।"