(कथा की शुरुआत)
देवउठनी एकादशी, जिसे कार्तिक शुक्ल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। देवउठनी एकादशी से ही सभी शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ आदि की शुरुआत होती है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है। इस एकादशी से जुड़ी कथा भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने और फिर जागने की अद्भुत लीला को दर्शाती है।
बहुत समय पहले, सतयुग में, जब संसार में पाप और अधर्म का प्रकोप बढ़ गया था, देवताओं ने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वे पृथ्वी पर जाकर अधर्म का नाश करें और धर्म की स्थापना करें। भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना को स्वीकार किया, लेकिन उससे पहले उन्होंने चार महीने की योगनिद्रा में जाने का निश्चय किया। इस योगनिद्रा को चातुर्मास कहा जाता है। यह चार महीने आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है।
इस दौरान सभी देवता और ब्रह्मांड की गति धीमी हो जाती है, और कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इस अवधि के समाप्त होने पर भगवान विष्णु जागते हैं, और उनके जागने के साथ ही सभी प्रकार के शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इसी कारण से कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है।
जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में गए, तो पृथ्वी पर सभी जीव-जंतु और प्राणियों को उनकी कृपा से वंचित होना पड़ा। चार महीनों तक कोई भी देवता उनकी पूजा-अर्चना करने में सक्षम नहीं थे। इस अवधि में सारे शुभ कार्य रुक गए थे और पृथ्वी पर भी शांति का वातावरण था।
चार महीनों के पश्चात, जब कार्तिक शुक्ल एकादशी आई, तब देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को जगाने के लिए उनके चरणों की सेवा शुरू की। उन्होंने भगवान विष्णु के चरणों की मालिश की और मधुर भजन गाए। उनकी सेवा और भक्ति से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर जागे और अपने भक्तों को आशीर्वाद दिया।
देवउठनी एकादशी का संबंध राजा बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी है। राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया था, और भगवान विष्णु ने उनके त्याग और भक्ति से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगा था। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने बलि से कहा था कि वह पाताल लोक का शासन करे और जब भगवान विष्णु जागेंगे, तब वह राजा बलि को उनके राज्य का वरदान देंगे।
जब भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन जागे, तब उन्होंने राजा बलि से किया हुआ वादा पूरा किया और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया। इस घटना से देवताओं को भी प्रसन्नता हुई, और उन्होंने भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान किया।
देवउठनी एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की कृपा और भक्ति से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। यह दिन न केवल धर्म और सत्य का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भगवान की भक्ति में अद्भुत शक्ति है, जो जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर देती है। देवउठनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसका जीवन सुख, समृद्धि और शांति से भर जाता है।
देवउठनी एकादशी से चातुर्मास की समाप्ति होती है, और इसके साथ ही सभी प्रकार के शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा से उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान और व्रत करता है, उसे जीवन में सुख-शांति मिलती है और उसे मोक्ष का मार्ग मिलता है।