(कथा की शुरुआत)
अपरा एकादशी, जिसे ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत जीवन में सफलताओं की ओर अग्रसर करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। अपरा एकादशी की कथा न केवल भक्ति का महत्व बताती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि धर्म के पथ पर चलने से जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
बहुत समय पहले, महिष्मति नामक नगर पर एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ राजा महीध्वज का शासन था। राजा महीध्वज अपने राज्य की प्रजा का पालन धर्मपूर्वक करता था और उसकी प्रजा उससे अत्यंत प्रसन्न रहती थी। राजा धार्मिक अनुष्ठानों और भक्ति में लीन रहता था, लेकिन उसके छोटे भाई वज्रध्वज के मन में राजा के प्रति जलन और ईर्ष्या थी। वह हमेशा राजा के प्रति द्वेषपूर्ण भावनाएं रखता था और सोचता था कि राजा को नष्ट कैसे किया जाए।
एक दिन, ईर्ष्या से भरे वज्रध्वज ने राजा महीध्वज की हत्या कर दी। उसने राजा की हत्या कर उसके शरीर को जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। राजा महीध्वज की आत्मा इस अन्याय से दुखी हो गई और वह प्रेत योनि में भटकने लगी। अब वह प्रेत रूप में जंगल में घूमने लगी और अपनी हत्या का बदला न लेने के कारण अशांत हो गई।
राजा की आत्मा को शांति नहीं मिल रही थी और उसका प्रेत रूप जंगल के आसपास के लोगों को परेशान करने लगा। राजा महीध्वज, जो पहले एक धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय राजा था, अब प्रेत बनकर अपने पाप के कारण दुखी और त्रस्त हो गया था।
एक दिन, महान ऋषि वशिष्ठ जंगल से गुजर रहे थे। उन्होंने राजा की प्रेत आत्मा को देखा और उसकी दशा को समझा। ऋषि वशिष्ठ ने राजा की प्रेत आत्मा से संवाद किया और उसे इस दशा से मुक्ति दिलाने का उपाय बताया।
ऋषि वशिष्ठ ने कहा, "हे राजा, तुम्हारे पिछले पापों और तुम्हारी हत्या के कारण तुम्हारी आत्मा प्रेत योनि में भटक रही है। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से तुम्हें मुक्ति मिल सकती है। इसके लिए तुम्हारे परिजन या किसी भक्त को अपरा एकादशी का व्रत करना होगा। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पाप धुल जाएंगे और तुम्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलेगी।"
ऋषि वशिष्ठ ने राजा के छोटे भाई वज्रध्वज को उसके पापों का बोध कराया और उसे अपरा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। वज्रध्वज ने अपनी गलती को समझा और ऋषि वशिष्ठ की आज्ञा का पालन करते हुए अपरा एकादशी का व्रत किया। उसने पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की और व्रत का पालन किया।
इस व्रत के प्रभाव से राजा महीध्वज की आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। भगवान विष्णु की कृपा से राजा की आत्मा स्वर्गलोक को चली गई और उसे शांति प्राप्त हुई। वज्रध्वज ने भी अपने पापों का प्रायश्चित किया और उसे भी जीवन में शांति और समृद्धि की प्राप्ति हुई।
अपरा एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितने भी पाप या कष्ट क्यों न हों, भगवान विष्णु की भक्ति और एकादशी व्रत के पालन से उन सभी पापों से मुक्ति पाई जा सकती है। अपरा एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए है, जो अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते हैं और धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष की प्राप्ति करना चाहते हैं।
"अपरा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।"