(कथा की शुरुआत)
आमलकी एकादशी, जिसे फाल्गुन शुक्ल एकादशी के नाम से जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा से जुड़ा है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस कथा के माध्यम से हम जानेंगे कि कैसे आंवले के पेड़ की पूजा और आमलकी एकादशी का व्रत एक राजा के लिए अद्भुत परिणाम लाया।
प्राचीन समय में, व्रत नामक नगर में चैतन्य नामक एक अत्यंत धर्मपरायण राजा राज्य करता था। राजा चैतन्य अपनी प्रजा का ख्याल रखने वाला और भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसकी प्रजा भी उसकी तरह धर्म-कर्म में विश्वास करती थी और सदैव धार्मिक अनुष्ठानों में संलग्न रहती थी।
उस नगर में सभी लोग एकादशी व्रत का पालन करते थे और विशेष रूप से आमलकी एकादशी को बड़े धूमधाम से मनाते थे। इस व्रत का पालन करने के पीछे एक प्राचीन मान्यता थी कि इस दिन भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में वास करते हैं। इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती थी।
राजा चैतन्य ने एक दिन अपनी प्रजा के साथ मिलकर फाल्गुन शुक्ल एकादशी पर एक विशाल पूजा का आयोजन किया। उन्होंने नगरवासियों से कहा, "आज हम सभी भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करेंगे और आमलकी एकादशी का व्रत रखेंगे। इस व्रत के पालन से भगवान विष्णु की कृपा से हमारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे और हमें मोक्ष की प्राप्ति होगी।"
पूरे नगर में उत्सव का माहौल था। सभी लोग एक साथ आंवले के पेड़ के नीचे एकत्रित हुए और भगवान विष्णु की पूजा करने लगे। राजा चैतन्य ने विशेष रूप से आंवले के पेड़ की पूजा की और भगवान विष्णु से आशीर्वाद की कामना की।
जब पूजा का आयोजन चल रहा था, उसी समय एक भयानक राक्षस उस नगर पर आक्रमण करने के लिए आया। वह राक्षस अत्यंत बलशाली और क्रूर था, और उसका उद्देश्य नगर को नष्ट करना था। नगरवासियों में भय व्याप्त हो गया। उन्होंने राजा से कहा, "हे महाराज, इस राक्षस से हमारी रक्षा करें। यह हमारे नगर को नष्ट कर देगा।"
राजा चैतन्य और नगरवासी भगवान विष्णु की पूजा में लीन थे, इसलिए उन्होंने राक्षस से लड़ने के लिए तुरंत कुछ नहीं किया। उन्होंने अपनी भक्ति और श्रद्धा को भगवान पर छोड़ा और आंवले के पेड़ के नीचे प्रार्थना करने लगे कि भगवान विष्णु उनकी रक्षा करें।
राजा और नगरवासियों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने आंवले के पेड़ से एक दिव्य योद्धा को प्रकट किया। उस दिव्य योद्धा ने अपने अद्भुत पराक्रम से राक्षस का वध किया और नगर की रक्षा की। नगरवासियों ने भगवान विष्णु की इस लीला को देखकर अत्यंत प्रसन्नता महसूस की और भगवान विष्णु का आभार व्यक्त किया।
इस प्रकार, भगवान विष्णु की कृपा से राजा चैतन्य और उसकी प्रजा को राक्षस के आतंक से मुक्ति मिली और नगर में शांति और समृद्धि बनी रही।
आमलकी एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और व्रत का पालन हमें हर प्रकार की कठिनाइयों से बचाता है। इस व्रत में आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि भगवान विष्णु का वास आंवले के पेड़ में माना जाता है। जो कोई इस व्रत को सच्चे मन से करता है, उसे पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
"आमलकी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।"