टीआरपी का पूरा झोल समझिए !

टीआरपी का पूरा झोल समझिए !
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Ashish Urmaliya | Pratinidhi Manthan

पुलिस कमिश्नर, मुंबई परमबीर सिंह के सनसनीखेज खुलासे के बाद टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है. मुंबई में बीते गुरुवार के दिन मुंबई पुलिस द्वारा एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई जिसमें मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने कहा कि मुंबई काइम ब्रांच ने एक नए रैकेट का भंडाफोड़ किया है. इस रैकेट का नाम है 'फॉल्स टीआरपी रैकेट'. मुंबई पुलिस टीआरपी में हेरफेर से जुड़े एक घोटाले की सख्ती से जांच कर रही है. तो आइए विस्तृत रूप में जानते हैं कि टीआरपी क्या होती है और किसी चैनल को नंबर वन बनाने में इसकी भूमिका क्या है….

टीवी चैनल की टीआरपी क्या होती है?

टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट यानी टीआरपी (TRP) एक ऐसा संसाधन है, जिसके द्वारा यह पता लगाया जाता है कि कौन सा प्रोग्राम या टीवी चैनल देश- विदेश में सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। इसके साथ ही TRP के ही चलते किसी भी प्रोग्राम या चैनल की पॉपुलैरिटी को समझने में मदद मिलती है, यानी कि लोग किसी चैनल या प्रोग्राम को कितनी बार और कितने समय के लिए देख रहे हैं, इस सब का जोड़ घटना टीआरपी की मदद से पता लगता है। प्रोग्राम की टीआरपी(टेलीविजन रेटिंग पॉइंट) सबसे ज्यादा होना मतलब सबसे ज्यादा दर्शक उस प्रोग्राम को देख रहे हैं.

टीवी चैनलों की आय का मुख्य श्रोत विज्ञापन होते हैं इसके साथ ही एक पुरानी कहावत के अनुसार आदमी की औकात उसके जूतों से पता चलती है उसी तरह एक टीवी चैनल की औकात उसकी टीआरपी से पता चलती है. और टीआरपी सबसे ऊंची हो, तो वह चैनल चलाने और चलवाने वालों के लिए स्टेटस सिंबल की तरह हो जाती है. टीआरपी का डाटा विज्ञापनदाताओं के लिए भी बहुत ही उपयोगी होता है, क्योंकि विज्ञापनदाता उन्ही टीवी चैनलों और प्रोग्रामों को विज्ञापन देने के लिए चुनते हैं जिसकी टीआरपी ज्यादा होती है, तभी तो विज्ञापनदाता ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बना पाने में सफल होंगे.

दरअसल, टीआरपी को मापने के लिए कुछ जगहों पर 'पीपल मीटर' (People Meter) लगाए जाते हैं. इसे इस तरह समझ सकते हैं कि कुछ हजार दर्शकों का  न्याय और नमूने के रूप में सर्वे किया जाता है और इन्हीं दर्शकों के आधार पर सभी दर्शक मान लिए जाते हैं जो टीवी देख रहे होते हैं. ये पीपल मीटर (People Meter) विशिष्ट आवृत्ति के द्वारा पता लगाते हैं कि कौन सा प्रोग्राम या चैनल कितनी बार देखा जा रहा है.

टीआरपी तय कैसे की जाती है?

पीपल मीटर के द्वारा टीवी की एक-एक मिनट की जानकारी को इसके निगरानी दल यानी भारतीय टेलीविजन दर्शकों का मापन (INTAM) तक पहुंचा दिया जाता है. INTAM की टीम पीपल मीटर द्वारा दी गई जानकारी का विश्लेषण करने के बाद तय करती है कि किस चैनल या प्रोग्राम की टीआरपी कितनी है. इसकी गणना करने के लिए एक दर्शक के द्वारा नियमित रूप से देखे जाने वाले प्रोग्राम और समय को लगातार रिकॉर्ड किया जाता है और फिर इस डाटा को 30 से गुना करके प्रोग्राम का एवरेज रिकॉर्ड निकाला जाता है. यह पीपल मीटर किसी भी चैनल और उसके प्रोग्राम के बारे में पूरी सटीक जानकारी निकाल लेता है. टेक्नोलोजिकल फैक्टर्स और गणनाएं हैं जो हम आपको यहां डिटेल्ड रूप से नहीं बता सकते. 

टीआरपी का प्रभाव?

टीआरपी के ज्यादा या कम होने का प्रभाव सीधा टीवी चैनल की आय (Income) पर पड़ता है. देश भर में या कह लें दुनियाभर में जितने भी टीवी चैनल हैं जैसे सोनी, स्टार, जी, एमटीवी, न्यूज़ नेटवर्क आदि सभी विज्ञापन द्वारा ही पैसे कमाते हैं. अगर किसी प्रोग्राम या चैनल की टीआरपी कम चल रही है तो इसका मतलब लोग उसे कम देख रहे हैं. इसका मतलब साफ है कि उस प्रोग्राम में विज्ञापन के ज्यादा पैसे नहीं मिलेंगे या फिर विज्ञापनदाता ही बहुत कम मिलेंगे. लेकिन अगर किसी चैनल या प्रोग्राम की टीआरपी ज्यादा होगी तो उसे ज्यादा विज्ञापन मिलेंगे और विज्ञापनदाताओं द्वारा ज्यादा पैसे भी मिलेंगे.

इससे यह बात साफ है कि टीआरपी केवल चैनल ही नहीं बल्कि किसी एक प्रोग्राम पर भी निर्भर करती है. उदाहरण के लिए यदि द कपिल शर्मा शो की टीआरपी अन्य किसी प्रोग्राम से ज्यादा है तो विज्ञापनदाता अपना विज्ञापन उस प्रोग्राम में ही दिखाना चाहेंगे और ज्यादा पैसे देंगे. हालांकि टीआरपी के आधार पर ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी विज्ञापन दाताओं के लिए रेट फिक्स करती है.

टीआरपी रेटिंग क्या कहलाती है?

टीआरपी रेटिंग वह रेटिंग होती है जिसके आधार पर किसी भी टीवी चैनल की टीआरपी(TRP) की गणना की जाती है. किसी भी चैनल या प्रोग्राम की टीआरपी उस पर दिखाए जाने वाले कंटेंट पर निर्भर होती है. इसे इस तरह समझा जा सकता है कि जब कोई बड़ा फिल्म अभिनेता या लोकप्रिय अभिनेत्री अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए किसी प्रोग्राम में जाते हैं तो उनके चलते उस प्रोग्राम की टीआरपी भी बढ़ जाती है क्योंकि लोग उस स्टार को ज्यादा देखना पसंद करते हैं. इसी लोकप्रियता के चलते बड़े स्टार्स बिना  फिल्म का प्रमोशन भी कर आते हैं. वहीं दूसरी तरफ छोटे स्टार्स वाली फिल्मों के प्रोड्यूसरों को इस तरह के प्रोमोशंस के लिए खर्चा करना पड़ता है.

फिलहाल, देश के कुछ प्रमुख मीडिया चैनलों पर फेक टीआरपी खरीदने का आरोप लगा है. इस देश में टीआरपी खरीदी और बेची जा सकती है तो फिर क्या नहीं किया जा सकता यह एक बड़ा सवाल है. बता दें, कुछ बड़े टीवी चैनल्स टीआरपी सिर्फ विज्ञापनों से अपंनी आय को बढ़ाने के लिए नहीं करते, बल्कि टीवी जगत और देश में अपनी साख बढ़ाने के लिए करते हैं ताकि उसकी मदद से आय के अन्य दुसरे तरह के श्रोत पैदा किए जा सकें जिसमें घूसखोरी, भ्रष्टाचारी,  भारी पैसे लेकर बड़े मुद्दों को दबाने जैसी बातें शामिल हैं.   

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