रिजर्व बैंक की मॉनीटरी कमेटी के फैसलों से कैसे प्रभावित होते हैं आप, डिटेल में जानिए

रिजर्व बैंक की मॉनीटरी कमेटी के फैसलों से कैसे प्रभावित होते हैं आप, डिटेल में जानिए

Ashish Urmaliya | PM

भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में अचानक आई उछाल के बीच भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिन की बैठक 5 अप्रैल से शुरू हो चुकी है। हाल ही में सरकार ने केंद्रीय बैंक (Central Bank) को खुदरा मुद्रास्फीति(Retail inflation) को 4 प्रतिशत के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया है। ऐसे में जानकारों का आंकलन है कि रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया अपनी मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत(पहले जैसा ही) रख सकता है। जानकारों के मुताबिक Monitory Policy Committee अपने नरम नीतिगत रुख को जारी रख सकती है। बता दें, MPC की बैठक के नतीजों की घोषणा कल यानी 7 अप्रैल को हो जाएगी। यह घोषणा ही निर्धारित करेगी कि इस नीति का हम पर क्या असर पड़ेगा।

सबसे पहले ये जानिए कि मौद्रिक नीति है क्या?

दरअसल मौद्रिक नीति एक तरह का ब्रम्हास्त्र है, जिसकी बिनाह पर बाजार में मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित किया जाता है। मौद्रिक नीति (Monitory Policy) ही यह तय करती है कि RBI अन्य बैंकों को किस दर पर कर्ज देगा और उन बैंकों से किस दर पर पैसा वापस वसूलेगा।

मौद्रिक नीति (Monitory Policy) को तय कौन करता है? इसका अधिकारी कौन है?

देश की मौद्रिक नीति को रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया अपने केंद्रीय बोर्ड की सिफारिशों के आधार पर तय करता है। जब केंद्रीय बोर्ड के सभी सदस्य विस्तृत सलाह मशविरा करके एक उचित नतीजे पर पहुंचते हैं उसके बाद नई मौद्रिक नीति लागू करने की सिफारिश की जाती है। बता दें, इस बोर्ड में जाने-माने अर्थशास्त्री, नीति निर्माता और उद्योगपति शामिल होते हैं। मौद्रिक नीति के लिए RBI समय-समय पर भारत सरकार के आर्थिक विभागों से सलाह-मशविरा करता रहता है। हालांकि अंतिम निर्णय रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया का ही होता है।

आम जनता यानी हम और आप क्या उम्मीदें कर सकते हैं?

साधारण सी बात है रिज़र्व बैंक जिन ब्याज दरों पर बैंकों को पैसा देगा उसी आधार पर सभी बैंक भी आम लोगों को कर्ज व बैंकों में हमारी जमा राशि पर ब्याज देंगे।

यही वजह है कि थोड़े बहुत जानकार लोगों की हमेशा ही मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक पर पैनी नजर रहती है, क्योंकि स्वाभाविक सी बात है, अगर RBI ब्याज दरों में कटौती करता है तो फिर होम लोन समेत तमाम लोन धारकों को EMI में थोड़ी राहत मिलती है। और अगर ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी होगी तो उसका प्रभाव बैंकों के साथ-साथ हम पर भी पड़ेगा।

अर्थव्यवस्था की दृष्टि से इस नीति के क्या मायने हैं?

हो सकता है आपके मन में सवाल उठ रहा हो कि मौद्रिक नीति की समीक्षा या इसका निर्धारण कितने समय अंतराल के बाद होता है? साल में कितने बार होता है तो हम आपको बता दें, आरबीआई (RBI) हर दूसरे महीने देश

मौद्रिक नीति की समीक्षा करता है। इस समीक्षा पर अर्थव्यवस्था से जुड़े पक्षों की बारीक नजर होती है। आमतौर पर इसमें अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए नीतिगत ब्याज दरें घटाने या बढ़ाने का फैसला किया जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी मदद से भारतीय रिजर्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। यह तो एक सामान्य सी बात हो गई लेकिन इस मौद्रिक नीति के जरिए एक साथ कई मकसद साधे जाते हैं जैसे हर एक चीज़ की कीमतों में स्थिरता, महंगाई पर अंकुश और टिकाउ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करना आदि। इसके साथ ही देश के अंदर रोजगार के अवसरों को उत्पन्न करना भी इसके प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। जब RBI मौद्रिक नीति में नरम रुख रखता है तब प्रमुख ब्याज दरों को घटोत्तरी होती है। ब्याज दरों की इस कटौती से देश की अर्थव्यवस्था में पैसों की आपूर्ति बढ़ने का रास्ता खुल जाता है और बाजार में नकदी बढ़ने के चलते आर्थिक गतिविधियां बढ़ जाती हैं। महंगाई स्थिरता पकड़ने लगती है और रोजगार बढ़ने लगते हैं। लेकिन ब्याज दरों के कटौती करने के लिए RBI सक्षम होना भी ज़रूरी है।

एमपीसी(MPC) की इस बैठक में कितने सदस्य होते हैं?

जैसा कि आप ऊपर जा चुके हैं एमपीसी की यह समीक्षा बैठक हर दो महीने के अंतराल में होती है। यह कमेटी रेपो रेट (Repo Rate) और रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) जैसे गंभीर मुद्दों पर फैसला लेती है। भारतीय रिजर्व बैंक की इस कमेटी में छह सदस्य होते हैं और इन छह सदस्यों में बड़े आर्थिक जानकार दिग्गजों के साथ ही रिजर्व बैंक का गवर्नर भी शामिल होता है। मौद्रिक नीति समिति का गठन अक्टूबर 2016 हुआ था। RBI एक्ट के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति(MPC) में बाहरी सदस्यों का कार्यकाल चार साल का होता है।

रेपो रेट (Repo Rate) समझ लेते हैं!

रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किया गया रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर SBI समेत अन्य बैंकों को RBI द्वारा कम समय के लिए कर्ज दिया जाता है। अगर मौद्रिक नीति समिति(MPC) की तरफ से Repo Rate में कटौती होती है तो बैंकों को RBI को कम ब्‍याज देना होता है। जिसका सीधा असर आपकी EMI पर भी पड़ता है। और अगर रिजर्व बैंक द्वारा Repo rate को बढ़ा दिया जाता है तो स्वाभाविक सी बात है बैंकों के लिए उसे कर्ज लेना महंगा हो जाता है और इसी वजह से Home loan, Car loan और दूसरे लोन की ब्‍याज दरें बढ़ जाती हैं। जो हमारी जिंदगी में मुश्किल हालात पैदा कर देती हैं।

रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) लेते हैं!

बैंक RBI ने अपना पैसा रखते हैं या कह लें जमा करते हैं, उस जमा रकम पर RBI द्वारा जो ब्याज दिया जाता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। बाजार में नगदी बढ़ने पर RBI इस रेट में भी बढ़ोत्तरी कर देता है ताकि बैंक ज्‍यादा ब्‍याज कमाने के लिए बड़ी रकम उसके पास गिरवी रखें। ये दो दरें तो आपको समझ आ ही गई होंगी। इसके बाद जो सबसे अहम् रोल प्ले करता है वह है- कैश रिजर्व रेशियो (CRR). यह सीधे तौर पर ग्राहकों की emi से संबंध रखता है। विदित हो कि किसी भी बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निर्धारित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा करना होता है जो बैंक के मुसीबत के वक्त काम आता है। अगर बैंक के पार कैश रिज़र्व बढ़ता है तो बैंकों को बड़ी रकम रिजर्व बैंक में रखनी होगी और इस वजह से बैंक कम कर्ज बांटने को मजबूर हो जाते हैं।

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